भारत में राजनीतिक दलों की फंडिंग के लिए लाए गए इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक कह दिया. साथ ही, 12 अप्रैल 2019 के बाद के बॉन्ड की खरीद-बिक्री से जुड़ी जानकारी भारत के स्टेट बैंक से चुनाव आयोग को देने की बात की. मामला ये फिर से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है और भारतीय जनता पार्टी को मिले ‘बेतहाशा चंदे’ पर सवाल भी उठ रहे हैं. भारत में जारी विवाद के बीच क्यों न आज ये जानें की अमेरिका में राजनीतिक दलों और पार्टियों की फंडिंग किस तरह होती है.
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में कुछ महीने रह गए हैं. अब ये तय हो गया है कि मुकाबला डोनाल्ड ट्रंप और जो बाइडेन के बीच होने जा रहा है. भारत में तो राजनीतिक दलों की फंडिंग से जुड़े इलेक्टोरल बॉन्ड पर विवाद सभी को मालूम है लेकिन अमेरिका में राजनीतिक पार्टियों या फिर उम्मीदवारों की फंडिंग किस तरह होती है, क्या आप जानते हैं.
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव इसी साल के आखिर में होने हैं. निक्की हेली के चुनावी दौड़ से बाहर हो जाने के बाद राष्ट्रपति के लिए अब ये तय हो चुका है कि डोनाल्ड ट्रंप और जो बाइडेन आमने-सामने होंगे. अमेरिका का ये चुनाव भी अनुमानों के मुताबिक काफी महंगा होने वाला है. 2020 के राष्ट्रपति चुनाव की अगर बात करें तो तब तकरीबन 1 लाख, 15 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए थे. कहा गया कि ये 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में हुए खर्च की तुलना में दोगुना था. अमेरिका में साल दर साल महंगा होता चुनाव समूची दुनिया में सुर्खी का विषय रहा.
फंडिंग अमेरिका में कैसे होती है
यहां चुनाव में खड़े होने वाले प्रत्याशी दो तरह से फंड जुटाते हैं. एक तो फंडिंग का सरकारी तरीका होता है और दूसरा तरीका होता है प्राइवेट यानी निजी संस्थानों से पैसे जुटाने का. सरकारी फंडिंग को लेकर नियम कायदे कानून ऐसे हैं कि प्रत्याशी इसके बजाय निजी फंडिंग ही का सहारा लेते हैं. निजी फंडिंग की कोई सीमा नहीं है. निजी फंडिंग के मातहत कैंडिडेट प्राइवेट संस्थानों, कॉर्पोरेशंस और लोगों से चंदा हासिल करते हैं. जबकि सरकारी फंड अगर आपने लिया तो फिर आप प्राइवेट फंडिंग पर दावा नहीं ठोक सकते.
सरकारी फंडिंग को लेक शर्तें मोटामाटी कुल दो हैं. पहला – बतौर प्रत्याशी आपकी लोकप्रियता हो. सवाल है कि इसका आकलन कैसे किया जाए तो जवाब है कि इसके लिए उम्मीदवारों को प्राइमरी इलेक्शन में 50 में से 20 राज्यों में फंड जुटाना होता है. सवाल है कितना फंड जुटाना होता है. दरअसल, अमेरिका में व्यवस्था है कि सरकारी फंडिंग पर दावा ठोकने के लिए आपको इन 20 राज्यों में से हर एक में कम से 5 हजार डॉलर जुटाना होता है. इस तरह आपको 1 लाख से ज्यादा का फंड जुटाना होता है. दूसरी शर्त है कि उम्मीदवार 50 हजार डॉलर से ज्यादा अपने चुनावों में खर्च नहीं कर सकते और जब भी चुनाव आयोग ऑडिट करेगी, आपको पूरा हिसाब-किताब देना होगा.
किसके पास फिलहाल कितना फंड
राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सितंबर तक तकरीबन 600 करोड़ रुपये की फंड को जुटाया है. हालांकि अगर हम अमेरिका में बाइडेन को मिलने वाले दान की राशि को देखें तो पाएंगे कि उनको मिलने वाले चंदे बेहद कम राशि के हैं. बाइडेन का औसत दान 40 डॉलर का है. दिलचस्प बात ये है कि ट्रंप का भी चुनावी फंड पिछले 9 महीने का बाइडेन के आसपास ही है. जो बाइडेन ही के बराबर ट्रंप भी करीब 600 करोड़ ही का फंड जुटा पाए हैं. निक्की हेली तो अब राष्ट्रपति की रेस से बाहर हो घई हैं मगर हम उनके फंड पर गौर करें तो उनको कुल 340 करोड़ रुपये का चंदा मिला था.
– एजेंसी
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