कांग्रेस: समस्याओं की हो गई पहचान अब दूर करेगा कौन ?

Politics

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारक इकाई सीडब्ल्यूसी में सब कुछ साफ साफ कह दिया। इतनी स्पष्टवादिता की उम्मीद किसी को नहीं थी। लेकिन देश की सबसे पुरानी और आजादी के आन्दोलन का नेतृत्व करने वाली पार्टी के अध्यक्ष को इस संक्रमण काल में इतना कड़ा बोलना जरूरी था।

अब इंतजार है नेक्स्ट फेज का। खरगे ने पार्टी की समस्याएं बता दीं। सवाल किया कि हरियाणा में माहौल पक्ष में होने के बावजूद उसे जीत में क्यों नहीं बदल पाए? और खुद जवाब दिया कि एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी के कारण। कहा ऐसे में विरोधियों को कैसे शिकस्त दोगे? पार्टी की सबसे दुखती रग गुटबाजी पर उंगली रख दी।

कांग्रेस की हर हार का अलग अलग कारण है। मगर राजस्थान और अब हरियाणा यह दोनों प्रदेश ऐसे हैं जहां कांग्रेस सिर्फ भयानक गुटबाजी की वजह से हारी। राजस्थान में तो फिर भी चुनाव के वक्त दोनों गुटों में युद्ध विराम हो गया था। मगर हरियाणा में तो मतदान तक मैं बनुंगा मुख्यमंत्री, मुझे बनाओ की रट चालू रही। हार के कारणों की बात हो रही है तो फिर लोग दूसरे प्रदेशों के बारे में भी पूछते हैं। यह काम तो कांग्रेस को करना चाहिए कि हर राज्य का अलग अलग विश्लेषण करे। लेकिन एकाध राज्य का हम और बता देते हैं।

मध्य प्रदेश की हार का जिक्र बहुत होता है। राहुल गांधी को वहां से बहुत उम्मीदें थीं। यहां तक उन्होंने वहां की सीटें भी बता दी थीं। मगर कांग्रेस बुरी तरह हारी। कारण?

कमलनाथ पर पूरी तरह निर्भरता। उन्हें सारे अधिकार सौंप देना। उन्होंने खुद को भावी मुख्यमंत्री घोषित कर दिया था। रोज प्रभारी बदलवाते थे। और कार्यकर्ताओं से तो छोड़िए नेताओं तक से नहीं मिलते थे। हाल अभी भी वही है। अभी अपने जन्मदिन पर एक कार्यक्रम करवाया कुमार विश्वास को बुलवाया और वह मंच से उनके सामने राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह को ट्रोल करता रहा। दिग्विजय ने इसका नोटिस लिया। उन्होंने कमलनाथ को टेग करके वह वीडियो ट्वीट किया। मगर अभी यह भी सबने देखा कि किस तरह राहुल गांधी उनके यहां लंच पर गए। कमलनाथ ने ही ट्वीट करके फोटो डाला। दो घंटे बैठे।

तो मध्य प्रदेश का कारण एक ही व्यक्ति था। यहां कोई गुट नहीं था। ज्योतिरादित्य सिंधिया के जाने के बाद से कमलनाथ अकेले का राज मध्यप्रदेश में चल रहा था। अब जीतू पटवारी ने अपनी मेहनत से कांग्रेस की वापसी की शुरूआत की है। विजयपुर में तो मंत्री रामनिवास रावत को हरवाया। और बुधनी जो शिवराज सिंह चौहान का विधानसभा क्षेत्र है वहां भाजपा की जीत का मार्जन केवल 13 हजार पर ला दिया। यहां से पिछले साल ही भाजपा एक लाख से ज्यादा वोटों से जीती थी।

बहरहाल बात हो रही थी कि समस्याएं तो पहचान लीं मगर उनका इलाज करेगा कौन? इलाज भी कांग्रेस अध्यक्ष को ही करना है। साथ में राहुल और प्रियंका को करना है। जब खरगे बोल रहे थे तब राहुल और प्रियंका बैठे थे। संगठन क्यों नहीं है? इसका जवाब कौन देगा? अनुशासन का सवाल उठाया। तो लागू कौन करेगा?

ढीली ढाली पार्टी चल रही है। और मुकाबला है सामने नगर पालिका के चुनाव भी उतने ही इन्टरेस्ट से लड़ने वाले मोदी, अमित शाह से। कांग्रेस खेल रही है सत्तर के दशक की भारतीय क्रिकेट टीम की तरह। सलीम दुर्रानी जो पांव के नीचे से बाल निकल जाए तो झुकते भी नहीं थे। टेस्ट मैच ड्रा को हम भारतीय क्रिकेट प्रेमी जीता हुआ मानते थे। वही हाल आज कांग्रेस का है। राहुल यात्रा कर रहे थे तो गुजारात चुनाव में नहीं गए। केवल एक दिन गए थे। हिमाचल में तो गए ही नहीं। वह अलग बात है कि वहां प्रियंका डटी रहीं तो जीत गए। तब तक जब तक हिमाचल का चुनाव प्रचार खत्म नहीं हो गया। राहुल की भारत जोड़ो यात्रा चल रही थी। खबरें शुरू हो गईं थीं कि प्रियंका नाराज यात्रा में शामिल नहीं हो रहीं। उस समय हमने हिमाचल बात करके लिखा था कि मध्य प्रदेश से शामिल होंगी। जब वहां प्रचार खत्म हो जाएगा।

तो बता यह रहे थे कि मैच ड्रा में खुश हो जाते थे। अभी लोकसभा में खुश हो गए। कांग्रेसी। क्यों बीजेपी की सीटें कम हुईं और कांग्रेस की बढ़ीं इसलिए। मगर लोकसभा के तीसरे चुनाव के बाद क्या यह बढ़त पर्याप्त है? और उनकी कम हुई सीटें इतनी हैं कि उन्हें सरकार बनाने में कोई मुश्किल हो?

जम्मू कश्मीर में खुश हो गए। वहां नेशनल कान्फ्रेंस जीती। कांग्रेस को आज तक कि सबसे कम सीटें मिलीं। जम्मू संभाग जहां उसका सबसे ज्यादा आधार था एक भी सीट नहीं मिली। ऐसे ही झारखंड में सबसे खराब स्ट्राइक रेट कांग्रेस का रहा। चार पार्टियां जो मिल कर चुनाव लड़ीं थी उनमें।

तो इस बार सीडब्ल्यूसी में इन झुठी खुशियों को अध्यक्ष ने आईना दिखा दिया। मगर इतना ही पर्याप्त नहीं है। अगर जल्दी समस्याओं को दूर नहीं किया तो फिर कार्यकर्ता जिन्हें उम्मीद बंधी है कि अब कुछ ठोस होगा वह पूरी तरह टूट जाएंगे। संगठन क्यों नहीं बना रहे हैं? किसने रोका है? दो साल हो गए हैं खुद खरगे जी को अध्यक्ष बने। और फिर यह कहना कि कई राज्यों में संगठन नहीं है! हास्यास्पद हो जाएगा। अभी जो दिखता है वह यह कि निचले स्तर पर चाहे जितनी गुटबाजी, अविश्वास हो मगर उच्च स्तर पर जहां खरगे, राहुल, प्रियंका हैं वहां आपसी अंडर स्टेंडिंग है।

फिर सम्स्या क्या है? एक समस्या तो सबसे बड़ी है वह आफिस में नहीं बैठना है। कार्यकर्ताओं, नेताओं का राहुल प्रियंका से मिलना तो मुश्किल है ही खरगे जी से भी मिलना आसान नहीं है। वे भी कांग्रेस मुख्यलय के अपने आफिस में नहीं बैठते हैं। घर से ही सारा काम करते हैं। इसी तरह राहुल प्रियंका से भी मिलने का कोई सिस्टम नहीं है। रोज जाने कितने लोग कांग्रेस मुख्यालय से दस जनपथ ( सोनिया गांधी के निवास, जहां राहुल भी रहते हैं) चक्कर लगाते रहते हैं।

खासतौर से राहुल का नियमित आफिस में बैठना बहुत जरूरी है। बहुत यात्राएं कर लीं उन्होंने। राज्यों के दूर दराज के इलाकों के बहुत दौरे कर लिए उन्होंने। हम कह सकते हैं। 2004 से जब से पहला चुनाव जीत कर राजनीति में आए हम देख रहे हैं, बहुत जगह साथ गए कि राहुल देश में सबसे ज्यादा इलाकों में जाने वाले सबसे ज्यादा लोगों से मिलने वाले नेताओं में हैं।

लेकिन अब पार्टी को चलाने का समय है। पार्टी अगर पटरी पर नहीं आई तो यह लोगों से मिलने यात्राओं से जितना फायदा होना चाहिए नहीं होगा। हुआ भी नहीं।

राहुल की दो यात्राएं और विपक्ष का एक होना इंडिया गठबंधन बहुत बड़ी घटनाएं हैं। इससे ज्यादा और क्या होगा? मगर फिर भी वह परिणाम नहीं निकले जो निकलना चाहिए थे। बड़ी वजह यही है कि पार्टी के पास संगठन नहीं है। लोगों तक बात पहुंच नहीं पा रही है। बहुत सारी बाधाएं हैं। लेवल प्लेइंग फील्ड नहीं है। इन्स्टियूशन स्वायत्त नहीं रह गए। सरकार की मदद कर रहे हैं। चुनाव की विश्वसनीयता पर सवाल है। खरगे ने यह सवाल भी प्रमुखता से उठाया।

ईवीएम का चुनाव आयोग का। इसका असर भी दिखा चुनाव आयोग ने बात करने कि लिए बुलाया है। कुछ तो सही रास्ते पर आया। मगर कई संस्थाएं हैं। मीडिया पूरी तरह विरोध में खड़ा है। न्यायपालिका में यह कहकर तो अभी रिटायर हुए चीफ जस्टिस चन्द्रचुड़ ने सारी हदें तोड़ दीं कि हम विपक्ष की भूमिका में नहीं। इसका सीधा मतलब हम सरकार के साथ हैं।

तो ऐसे में राह एक ही है। वह खरगे ने बता दी। पार्टी में नई जान। रेनेसा (पुनर्जागरण )। देखते हैं कहां से शुरू करते हैं।

-श्री शकील अख्तर जी के फेसबुक पेज से साभार सहित


Discover more from Up18 News

Subscribe to get the latest posts sent to your email.