भारत में जलवायु परिवर्तन रोकने में मदद देने के मकसद से लोग अब कार्बन क्रेडिट खरीदने की ओर बढ़ रहे हैं. कंपनियों के साथ साथ व्यक्तिगत स्तर पर भी ऐसी कोशिशें हो रही हैं.
कुछ स्टार्टअप्स जैसे क्लाइम्स, लोसूट और वोस (WOCE) जैसे ये उद्यम उन भारतीयों की जरूरत पूरी कर रहे हैं जो जलवायु परिवर्तन को लेकर सजग हैं और इसे रोकने में अपनी तरफ से कोई योगदान देना चाहते हैं. ऐसे लोग यात्राओं, शादियों और ऑनलाइन खरीदारी में होने वाले कार्बन उत्सर्जन की भरपाई करना चाहते हैं.
क्लाइम्स एक क्लाइमेट-टेक स्टार्टअप है, जो लोगों और कंपनियों को कार्बन ऑफसेट खरीदकर ‘क्लाइमेट फ्रेंडली’ यानी पर्यावरण के अनुकूल व्यवहार करने में मदद करता है. ऐसे कई उद्यम शुरू हो चुके हैं जिनके जरिए भारत में कार्बन क्रेडिट की बिक्री हो रही है.
वैश्विक स्तर पर कार्बन क्रेडिट का व्यापार दो अरब डॉलर तक पहुंच चुका है और लगातार तेजी से बढ़ रहा है. ‘ईकोसिस्टम मार्केटप्लेस’ के मुताबिक 2021 का व्यापार 2020 के मुकाबले चार गुना ज्यादा रहा था जबकि 50 करोड़ कार्बन क्रेडिट बिके थे. ये कार्बन क्रेडिट 50 करोड़ टन कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन के बराबर है.
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक है. उसका मकसद 2070 तक कार्बन न्यूट्रल हो जाने का है. यानी देश में उतनी ही कार्बन हाउस गैसें उत्सर्जित हों जितनी सोखी जा सकें. धीरे-धीरे देश में कार्बन क्रेडिट की मांग और बिक्री बढ़ रही है.
संधू की पार्टी में केक काटा गया, फैंसी ड्रेस कॉम्पटिशन हुआ, नाच-गाना भी हुआ. लेकिन साथ में लोगों को एक प्रेजेंटेशन भी दिखाई गई, जिसमें लोगों को बताया गया कि कार्बन क्रेडिट किस तरह काम करता है. इस प्रेजेंटेशन के जरिए लोगों को कार्बन क्रेडिट खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया गया ताकि वे कार्बन उत्सर्जन कम करने में अपना योगदान दे सकें.
तोहफों के पैकेटों पर क्यूआर कोड लगे थे जिनमें क्लाइम्स की वेबसाइट का लिंक था. लोग इस लिंक पर जाकर पार्टी के उत्सर्जन में हिस्सेदारी खरीद सकते थे. इस धन का प्रयोग जंगलो को पुनर्जीवित करने से लेकर कचरे को ऊर्जा में बदलने वाली तकनीक को विकसित करने में होता है.
संधू कहती हैं, “प्रक्रिया बहुत सरल थी और बहुत से मेहमानों ने वन परियोजनाओं के लिए दान देने का विकल्प चुना. हर कोई देख सकता है कि उसका दिया पैसा कहां खर्च हो रहा है. इससे बातचीत शुरू हुई और कई मेहमान और ज्यादा जानना चाहते थे क्योंकि इस बारे में बहुत सारे गोरखधंधे भी चल रहे हैं.”
क्या हैं मुश्किलें?
पर्यावरण के अनुकूल काम करने वाली कपड़ा कंपनी टैमरिंड चटनी ने जब सोचा कि अपने कार्बन उत्सर्जन के बराबर धन कहीं दान दिया जाए तो उसे ऐसे विकल्प खोजने में काफी मशक्कत का सामना करना पड़ा.
कंपनी की संस्थापक 29 साल की तन्वी भीखचंदानी बताती हैं, “एक साल तक शोध करने के बाद हमने तो उम्मीद ही छोड़ दी क्योंकि कोई पारदर्शी विकल्प नहीं मिला था. हम यह जानना चाहते थे कि हमारा धन कहां जा रहा है. लेकिन सब कुछ ब्लैक होल जैसा था. ज्यादातर परियोजनाएं ऐसी थीं जिनमें कार्बन ऑफसेट को एक हल की तरह पेश किया गया था और उसके स्रोत की बात ही नहीं थी. यह निराशाजनक था.”
शायद यही वजह है कि स्वयंसेवी कार्बन बाजारों को लोगों का भरोसा जीतने में मुश्किल हो रही है. पर्यावरणविद कहते हैं कि कार्बन क्रेडिट खरीदना अपने उत्सर्जन की जिम्मेदारी छोड़ने का आसान तरीका है क्योंकि आपके उत्सर्जन के लिए कोई और भुगतान कर रहा है. कार्बन मार्केट वॉच नामक संस्था के संचार निदेशक खालिद दियाब कहते हैं, “एक टन उत्सर्जित कार्बन का असर बचाए गए या सोख लिए गए गए एक टन कार्बन से हमेशा ज्यादा होगा. यह एक वजह है कि कार्बन क्रेडिट को कार्बन ऑफसेट के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. जलवायु के लिए काम करना अच्छी बात है लेकिन कार्बन क्रेडिट खरीदने को जेल से निकलने की कीमत चुकाने के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.”
कार्बन क्रेडिट के बाजार के बारे में दियाब कहते हैं कि यह अनियमित है और कार्बन क्रेडिट की विश्वसनीयता तय करने की पूरी जिम्मेदारी ग्राहकों पर छोड़ दी गई है, जो एक बड़ी चुनौती है क्योंकि ज्यादातर ग्राहक विशेषज्ञ नहीं हैं. वह कहते हैं, “इससे कॉरपोरेशनों को ग्रीनवॉशिंग का ताकतवर हथियार मिल जाता है.” ग्रीनवॉशिंग उस प्रक्रिया को कहा जाता है जिसमें कार्बन उत्सर्जित कर बड़ी कंपनियां उसके बराबर कार्बन क्रेडिट खरीदकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती हैं.
उद्योग और सरकार की सक्रियता
भारत ने पिछले महीने ही ऊर्जा संरक्षण कानून पारित किया है जिसमें सरकारों और उद्योगों को कार्बन क्रेडिट कमाने और खर्चने के नियम बनाने का प्रावधान किया गया है. इसकी शुरुआत स्वेच्छा के आधार पर होगी.
भारत में हरित ऊर्जा के उत्पादन से जुड़ीं कंपनियों ने अक्टूबर में मिलकर एक कार्बन मार्किट बनाने पर काम शुरू किया है जिसका मकसद भारत में ऊर्जा उत्पादन को जीवाश्म से हरित स्रोतों की ओर ले जाना है और सरकार के साथ मिलकर बाजार के लिए दिशा-निर्देश तय करना है.
इस नई बनी कार्बन मार्केट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनीष दबकारा कहते हैं कि कुछ कंपनियों को ग्रीनवॉशिंग में शामिल पाया गया है लेकिन सभी ऐसा नहीं करती हैं. उन्होंने कहा, “अब बाजार में ज्यादा पारदर्शिता और जागरूकता है.”
अब तक कार्बन क्रेडिट को भारत में एक लग्जरी उत्पाद के रूप में देखा जाता रहा है जिसे धनी लोग खरीदते हैं लेकिन दबकारा कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय चलन में बदलाव से भारत में भी बदलाव आएगा.
Compiled: up18 News
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