अमेरिका की हिंद-प्रशांत (इंडो-पैसिफिक) रणनीति पर आई रिपोर्ट पर अब चीनी मीडिया में प्रतिक्रिया आई है.
चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी का मुखपत्र माने जाने वाला अंग्रेज़ी दैनिक ग्लोबल टाइम्स ने अपने एक लेख में इस रिपोर्ट को भ्रामक कार्रवाइयों से भरी बाइडन प्रशासन की एक हास्यास्पद कल्पना बताई है.
ग्लोबल टाइम्स ने विशेषज्ञों के हवाले से लिखा है, ‘‘एक “स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत” के लिए अमेरिकी रणनीति भ्रामक कार्रवाइयों से भरी बाइडन प्रशासन की एक हास्यास्पद कल्पना है.’’
‘यह नीति अपने गठबंधनों के साथ समन्वय पर बहुत अधिक निर्भर है. यह दक्षिण पूर्व एशिया में मज़बूत उपस्थिति बनाने के साथ-साथ चीन का मुक़ाबला करने के लिए सैन्य प्रतिरोध की बात करती है. इसका मक़सद क्षेत्रीय अशांति फैलाने के लिए एशियाई देशों को अपने चीन विरोधी अभियान में शामिल करना है.’
अमेरिका ने क्या कहा था
अमेरिका ने शुक्रवार को हिंद-प्रशांत रणनीति पर 12 पन्नों की एक रिपोर्ट जारी की थी.
इस रिपोर्ट में जहाँ भारत और अमेरिका में बढ़ते सहयोग पर ज़ोर दिया गया है वहीं, चीन पर जमकर निशाना साधा गया है.
इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि भारत इस समय अहम भूराजनीतिक चुनौतियों से घिरा हुआ है. ये चुनौती ख़ासतौर पर चीन और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर उसके रुख़ से मिल रही है.
चीन को लेकर रिपोर्ट में कहा गया कि चीन की आक्रामकता दुनिया भर में फैली हुई है, लेकिन यह हिंद-प्रशांत में सबसे तेज़ है. रिपोर्ट में चीन पर मानवाधिकारों और अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों के उल्लंघन का आरोप भी लगाया गया.
इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस ऑफ चाइना फॉरेन अफेयर्स यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ली हैडोंग ने ग्लोबल टाइम्स से कहा, ‘‘ये रणनीति चीन को घेरने वाली अमेरिकी सरकार की नीति को प्रदर्शित करती है.’’
ली कहते हैं, ‘‘बार-बार चीन” और “लोकतंत्र” की बात करने की बजाए ये नई रिपोर्ट चालाकी से बढ़चढ़कर ‘‘साझेदारी’’ और ‘‘गठबंधन’’ की बात करती है ताकि अमेरिकी जनता, सहयोगियों और मीडिया से समर्थन मिल सके.
भारत को लेकर क्या कहा
रिपोर्ट में अगले 12 से 24 महीनों में रणनीति को लागू करने के लिए योजनाओं की 10 मुख्य बातें शामिल की गई हैं. साथ ही कहा गया है, ‘‘हमारा उद्देश्य चीन को बदलना नहीं है बल्कि उस रणनीतिक वातावरण को आकार देना है, जिसमें वह काम करता है.’’
इस पर ली हैडोंग ने कहा, ‘‘हालांकि, यह अवलोकन पिछले ट्रंप प्रशासन की तुलना में व्यावहारिक और विस्तृत लगता है लेकिन दूसरे देशों से एकजुटता की अपील करने का मतलब है कि एशियाई देशों को चीन से संबंध तोड़ने होंगे. पर क्या यह संभव है?’’
चाइनीज़ एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज के एक रिसर्च फेलो लू शियांग इस रिपोर्ट को एशियाई देशों के साथ हाथ मिलाने की कोशिश में “तथाकथित ‘हिंद-प्रशांत’ मामलों से निपटने के लिए अमेरिका के हास्यास्पद निष्कर्ष” के तौर पर देखते हैं.
उनका कहना है कि एशियाई देश भी अमेरिका के साथ जुड़ने को लेकर गंभीर नहीं हैं.
भारत को लेकर लू शियांगने कहा कि अमेरिकी रणनीति में भारत का ज़िक्र एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय शक्ति के रूप में भारत की महत्वाकांक्षा को पूरा करता है, लेकिन एक विकासशील देश के रूप में भारत चीन और अमेरिका के साथ संबंधों को लेकर शांत है.
-एजेंसियां
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