भारतीय जनता पार्टी (BJP) के मुख्यालय में आज जश्न का माहौल था। वहां महिलाओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अभिनंदन किया। नारी शक्ति वंदन विधेयक को संसद से पारित करने के लिए उनका अभिनंदन किया गया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने अमूल और लिज्जत पापड़ का जिक्र किया। आप जानते हैं कि इन कंपनियों का क्यों जिक्र किया गया?
महिलाओं की वजह से है अमूल का नाम
आपको पता ही होगा कि इस समय भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। और देश की सबसे बड़ी डेयरी कंपनी अमूल है। प्रधानमंत्री ने बताया कि इस कंपनी को खड़ा करने में गुजरात की महिला दूध किसानों की बड़ी भूमिका है। इस समय अमूल देश के अलग-अलग हिस्सों से रोजाना 3 करोड़ लीटर दूध इकट्ठा करता है। आपके घर तक पहुंचने वाला अमूल का दूध कई जगहों से होकर आता है। जिसकी शुरुआत गांवों में स्थित मिल्क कलेक्शन सेंटर से होती है। गांवों के किसान यहां दूध देते हैं जिसमें गांवों की महिलाओं अहम भूमिका निभाती हैं।
लिज्जत पापड़ की नींव भी महिलाओं ने रखी
आप लिज्जत पापड़ को तो जानते ही होंगे। आप भी बचनपन में एक जिंगल जरूर सुने होंगे ‘शादी, उत्सव या हो त्योहार लिज्जत पापड़ हो हर बार… कर्रम कुर्रम – कुर्रम कर्रम…।’ लिज्जत पापड़ की शुरुआत मुंबई में रहने वाली गुजरात की सात महिलाओं ने किया था। इन महिलाओं ने अपना खाली वक्त को काटने के लिए कुछ ऐसा किया, जिसके नतीजे के बारे में किसी ने अंदाजा नहीं लगाया था। आज यह कंपनी 1600 करोड़ रुपये से ज्यादा की पहुंच गई है। अब तक लिज्जत नाम से 5.5 अरब पापड़ के पैकेट बेचे जा चुके हैं।
किन्होंने शुरू किया लिज्जत पापड़
यह बात है साल 1959 की। मुंबई के गिरगांव में रहने वाली 7 सहेलियों जसवंती बेन, पार्वतीबेन रामदास ठोदानी, उजमबेन नरानदास कुण्डलिया, बानुबेन तन्ना, लागुबेन अमृतलाल गोकानी, जयाबेन विठलानी ने दिन के समय खाली वक्त में कुछ काम करने का फैसला किया। उन्होंने तय किया कि वो घर की छत पर पापड़ बनाकर बेचने का काम करेंगी। उनकी मदद पुरुषोत्तम दामोदर दत्तानी ने की। अपनों से ही 80 रुपये उधार लेकर उन्होंने उड़द की दाल, हींग ,मसाले आदि खरीदें और घर की छत पर पापड़ बनाने का काम शुरू कर दिया। पहले दिन उन्होंने पापड़ के कुल 5 पैकेट बनाए। उसे बाजार में बेचा तो कमाई महज 50 पैसे की हुई। 1959 में यह आठ आना कहलाता था। उस समय आठ आना भी बड़ी रकम हुआ करती थी। पहली कमाई ने सातों सहेलियों में उत्साह भर दिया। इसके बाद मुनाफा धीरे-धीरे एक रुपया, 10 रुपये, 100 रुपये और 6,000 रुपये तक पहुंच गया। साल 1959 में लिज्जत पापड़ ने 6,000 रुपये की कमाई की। साल 1962 में संस्था का नाम ‘श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़’ रखा गया।
45,000 महिलाओं को मिला काम
आज लिज्जत पापड़ के साथ 45 हजार से अधिक महिलाएं जुड़ी है, जो कंपनी में अपनी-अपनी भूमिका निभा रही हैं। संस्था में हर कोई एक दूसरे को ‘बहन’ कहकर संबोधित करते हैं। यहां सुबह साढ़े 4 बजे से काम शुरू हो जाता है। देशभर में 60 से ज्यादा सेंटर हैं, जहां पापड़ बनाया जाता है, लेकिन खास बात की हर जगह का स्वाद एक जैसा होता है। साल 2002 के दौरान लिज्जत पापड़ ने 300 अरब डॉलर का रेवेन्यू जेनरेट किया था। 40 हजार से अधिक कर्मचारी यहां काम करते हैं। देशभर में 62 डिवीजन और सेंटर्स हैं।
Compiled: up18 News
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