रेबीज सेंट्रल नर्वस सिस्टम की घातक वायरल बीमारी है. रेबीज शब्द का अर्थ है ‘पागलपन’. यह आमतौर पर कुत्तों और जंगली मांसाहारी जानवरों (wild carnivorous animals) के काटने से फैलती है.
रेबीज का वायरस संक्रमित जानवरों की लार ग्रंथियों में मौजूद होता है. जब ये संक्रमित जानवर किसी को भी काटता है तो ये वायरस घाव के जरिए शरीर में प्रवेश कर जाता है. फिर मस्तिष्क तक पहुंचता है और सेंट्रल नर्वस सिस्टम में स्थापित हो जाता है.
मनुष्यों सहित सभी गर्म खून वाले जानवर (warm-blooded animals) रेबीज संक्रमण के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं. रेबीज के लक्षण ज्यादातर मामलों में तीन महीनों के भीतर नजर आने लगते हैं, लेकिन कुछ दुर्लभ मामलों में कई वर्षों बाद भी ये बीमारी हो सकती है. मानव में रेबीज के फैलने का मुख्य स्रोत कुत्ते है. ऐसे में रेबीज के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 28 सितंबर को विश्व रेबीज दिवस मनाया जाता है.
कैसे फैलता है रेबीज का वायरस
रेबीज का वायरस संक्रमित जानवरों की लार ग्रंथियों (salivary glands) में मौजूद होता है. जब ये संक्रमित जानवर (infected animal) किसी को भी काटता है तो ये वायरस घाव के जरिए शरीर में प्रवेश कर जाता है. फिर मस्तिष्क तक पहुंचता है और सेंट्रल नर्वस सिस्टम में स्थापित हो जाता है. कुछ समय बाद यह नसों के माध्यम से लार ग्रंथियों (salivary glands) में फैल जाता है. इससे अक्सर मुंह में झाग पैदा होता है. संक्रमण के चार से छह सप्ताह के बीच बीमारी के डेवलप होने की सबसे ज्यादा आशंका रहती है. हालांकि इसका इनक्यूबेशन पीरियड 10 दिनों से आठ महीने के बीच का है. यानी आठ महीनों के भीतर कभी भी ये बीमारी हो सकती है.
गले की मांसपेशियां लकवाग्रस्त हो जाती है
इस बीमारी का शुरुआती चरण सबसे ज्यादा खतरनाक होता है. क्योंकि इस वायरस से संक्रमित जानवर स्वस्थ नजर आता है लेकिन थोड़े से उकसावे पर वह काट लेता है. इस वायरस से संक्रमित जानवर की गले की मांसपेशियां लकवाग्रस्त हो जाती है और वह काटने में असमर्थ हो जाता है. इसके बाद उसकी मौत हो जाती है. अगर कोई कुत्ता इससे संक्रमित होता है तो ज्यादातर मामलों में रेबीज बीमारी होने के कारण उसकी 3-5 दिनों में मौत हो सकती है.
हृदय या रेस्पिरेटरी फेलियर से हो जाती है मौत
मनुष्यों में भी रेबीज जानवरों के समान ही होता है. लक्षणों में अवसाद, सिरदर्द, मतली, दौरे, एनोरेक्सिया, मांसपेशियों में अकड़न और ज्यादा लार का बनना शामिल हैं. रेबीज से पीड़ित व्यक्ति की गले की मांसपेशियां लकवाग्रस्त हो जाती हैं जिससे उसे निगलने या पानी गटकने में परेशानी होती है. इससे उसमें पानी का डर (हाइड्रोफोबिया) पैदा हो जाता है. रेबीज से संक्रमित व्यक्ति की मानसिक स्थिति बिगड़ जाती है. जल्द ही वह कोमा में चला जाता है और आमतौर पर हृदय या रेस्पिरेटरी फेलियर के कारण एक सप्ताह से भी कम समय में मर सकता है.
क्या है इस बीमारी का इलाज?
रेबीज का कोई इलाज नहीं है, लेकिन अगर इस बीमारी के होने से पहले जरूरी सावधानियां और इलाज लिया जाए तो इससे बचा जा सकता है. संक्रमित जानवर के काटने के तुरंत बाद घाव को साफ किया जाना चाहिए. व्यक्ति को एंटी रेबीज सीरम की एक खुराक मिलनी भी जरूरी है. ये सीरम घोड़ों या मनुष्यों से प्राप्त होती है. सीरम रोगी को रेबीज के एंटीजन के खिलाफ पहले से तैयार एंटीबॉडी प्रदान करता है. ये उपचार तभी प्रभावी होता है यदि इसे एक्सपोजर के 24 घंटों के भीतर दिया जाए. लेकिन अगर इसे तीन से ज्यादा दिनों के बाद दिया जाता है तो इसका महत्व बहुत कम हो जाता है.
एक्टिव इम्यूनाइजेशन भी जरूरी
शरीर खुद एंटीबॉडी बना सके इसके लिए रेबीज की वैक्सीन के साथ एक्टिव इम्यूनाइजेशन भी शुरू किया जाना चाहिए. सबसे सुरक्षित और सबसे प्रभावी टीके ह्यूमन डिप्लोइड सेल वैक्सीन (HDCV), प्यूरिफाईड चिक एंब्रियो सेल कल्चर (PCEC), और रेबीज वैक्सीन एडसॉर्ब्ड (RVA) हैं. पुराने टीकों के साथ, कम से कम 16 इंजेक्शन की आवश्यकता होती थी, जबकि एचडीसीवी, पीसीईसी, या आरवीए के साथ, आमतौर पर 5 पर्याप्त होते हैं. रेबीज के जोखिम वाले व्यक्तियों को प्रीएक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस (pre-exposure prophylaxis) के रूप में रेबीज का टीका लगवाना चाहिए.
– एजेंसी
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