भोपाल: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए सोमवार रात 39 उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी की तो इसमें मौजूद नामों को लेकर ना सिर्फ कांग्रेस को हैरानी हुई बल्कि भाजपा के कई पुराने नेता भी आश्चर्यचकित रह गए।
केंद्रीय नेतृत्व की ओर से चुनाव में कई दिग्गजों को उतारे जाने के बाद इस पर खूब चर्चा हो रही है। इसके कई मायने निकाले जा रहे हैं। भाजपा के कुछ पदाधिकारियों का मानना है कि पार्टी की कोशिश आंतरिक गुटबाजी को खत्म करना है जिसकी वजह से 2018 में हार का सामना करना पड़ा था।
भाजपा नेताओं का मानना है कि दूसरी सूची ने चुनाव को कांग्रेस के लिए मुश्किल बना दिया है जो दो दशक की एंटी इनकंबेंसी का फायदा उठाते हुए सत्ता में आने की कोशिश में जुटी है।पहली लिस्ट में भाजपा ने उन सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान किया था जिनपर 2018 में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। दूसरी सूची में भी मुख्यतौर पर उन सीटों पर ‘योद्धा’ उतारे गए हैं जिनपर पिछली बार जीत नहीं मिली थी। 39 उम्मीदवारों वाली लिस्ट में 11 नए चेहरों को शामिल किया गया है।
प्रदेश राजनीति में पहली बार
मध्य प्रदेश की राजनीति में ऐसा पहली बार हुआ है जब भाजपा नेतृत्व ने विधानसभा चुनाव में सात मौजूदा सांसदों को उतार दिया है, जिनमें तीन केंद्रीय मंत्री शामिल हैं। मोदी सरकार में मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, फग्गन सिंह कुलस्ते और प्रह्लाद पटेल को टिकट दिया गया है। इनके अलावा सांसद राकेश सिंह को गजबलपुर से, उदय प्रताप सिंह को गाडरवारा, रीति पाठक को सीधी और गणेश सिंह को सतना से चुनाव लड़ने को कहा गया है। सूची को देखकर पता चलता है कि पार्टी ने सिंधिया फैक्टर पर भी भरोसा जताया है। 39 में से कम से कम 5 नाम ऐसे हैं जो सिंधिया के करीबी माने जाते हैं।
शिवराज सिंह चौहान ने ‘लाडली बहना योजना’ स्कीम के तहत महिलाओं को हर महीने 1250 रुपए की मदद की शुरुआत की है तो एलपीजी सिलेंडर 450 रुपए में देने का ऐलान करके माहौल अपने पक्ष में करने की कोशिश की है। पार्टी पदाधिकारियों का कहना है कि केंद्रीय नेतृत्व को 2018 विधानसभा चुनाव से ज्यादा सत्ता विरोधी लहर का इनपुट मिला है। इसके अलावा पार्टी कार्यकर्ता इस बार हतोत्साहित नजर आ रहे थे। पार्टी नेतृत्व की ओर से पिछले कुछ महीनों में कई प्रयास के बावजूद उनमें पहले जैसा उत्साह नहीं दिखा। पार्टी को उम्मीद है कि बड़े चेहरों को मैदान में उतारने से कार्यकर्ताओं का जोश बढ़ेगा। ये दिग्गज नेता अपने-अपने क्षेत्रों में पार्टी कार्यकर्ताओं पर प्रभाव रखते हैं।
पार्टी नेताओं का कहना है कि केंद्रीय गृहमंत्री और पूर्व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 2023 और 2024 की लड़ाई से पहले प्रदेश में सबकुछ दुरुस्त करने और कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने के लिए लगातार दौरे किए हैं। पार्टी के एक नेता ने नाम गोपनीय रखने की गुजारिश करते हुए कहा, ‘पिछले 18 साल में प्रदेश में चुनाव जीतने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर अत्यधिक निर्भरता का परिणाम हुआ कि पार्टी के कई दूसरे बड़े नेता चुनाव में पूरे मन से शिरकत नहीं कर रहे थे। 2008 के बाद यह हर चुनाव में अधिक होता गया।’
पार्टी नेताओं का कहना है कि केंद्रीय गृहमंत्री और पूर्व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 2023 और 2024 की लड़ाई से पहले प्रदेश में सबकुछ दुरुस्त करने और कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने के लिए लगातार दौरे किए हैं। पार्टी के एक नेता ने नाम गोपनीय रखने की गुजारिश करते हुए कहा, ‘पिछले 18 साल में प्रदेश में चुनाव जीतने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर अत्यधिक निर्भरता का परिणाम हुआ कि पार्टी के कई दूसरे बड़े नेता चुनाव में पूरे मन से शिरकत नहीं कर रहे थे। 2008 के बाद यह हर चुनाव में अधिक होता गया।’
उन्होंने कहा ‘अब पुराने और बड़े नेताओं का नाम दूसरी सूची में आ जाने से उन्हें चुनाव में दिलचस्पी लेनी होगी, ना सिर्फ पार्टी के लिए बल्कि राजनीतिक रूप से अपने अस्तित्व के लिए भी। यदि वे जीतते हैं तो राजनीतिक करियर में नए मौके होंगे। इनमें से कम से कम चार मुख्यमंत्री पद के आकांक्षी हैं। यदि नहीं जीतते हैं तो ना सिर्फ राज्य में बल्कि केंद्रीय राजनीति में उनपर सवालिया निशान लग जाएगा। पार्टी के एक दूसरे पदाधिकारी ने कहा कि सूची में राज्य भर में पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए ‘वंशवाद फैक्टर’ को भी दूर करने की कोशिश है।
केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं। उन्हें महाकौशल क्षेत्र के नरसिंहपुर सीट से उम्मीदवार बनाया गया है। इसका मतलब है कि पार्टी उनके भाई जालम सिंह पटेल को टिकट नहीं देगी, जिन्होंने 2018 में इस सीट पर जीत हासिल की थी। इसी तरह भाजपा के राष्ट्रीय महाचिव कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर से उतारा गया है। इसका मतलब है कि 2018 में पहली बार विधायक बने उनके बेटे आकाश विजयवर्गीय का पत्ता साफ हो सकता है। केंद्रीय नेतृत्व उस वक्त नाराज हो गया था जब 2019 में आकाश का एक वीडियो सामने आया था जिसमें वह इंदौर नगर निगम के एक अधिकारी को पीटते नजर आए थे।
चर्चा थी कि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर विधानसभा चुनाव में अपने बेटे के लिए टिकट चाहते थे। पार्टी ने बेटे की जगह उन्हें ही मैदान में उतार दिया है। इसी तरह केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते अपने भाई के लिए टिकट चाहते थे, लेकिन अब खुद ही उम्मीदवार हो गए हैं। राजनीतिक विश्लेषक दिनेश गुप्ता कहते हैं, ‘दूसरी सूची में अमित शाह की छाप है जिन्होंने यहां की स्थिति का आकलन करने के लिए राज्य का कई दौरा किया निश्चित तौर पर राज्यभर में अलग-अलग क्षेत्रों से बड़े चेहरों को उतारने से पार्टी का विश्वास बढ़ेगा। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस, जिसने अभी तक एक भी उम्मीदवार का ऐलान नहीं किया है, बीजेपी की दो सूची में दिए गए उम्मीदवारों के खिलाफ किन्हें उतारती है।’
Compiled: up18 News
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