बांग्लादेश उच्च न्यायालय ने इस्कॉन की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने से किया इंकार

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इस्कॉन पर बांग्लादेश में प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी

बुधवार को ढाका उच्च न्यायालय में पेश हुए सुप्रीम कोर्ट के वकील मोहम्मद मोनिरउद्दीन ने इस्कॉन के बारे में कुछ समाचार पत्रों की रिपोर्ट पेश की और इस्कॉन पर प्रतिबंध लगाने के साथ ही चटगांव, रंगपुर और दिनाजपुर में धारा 144 लागू करने का आदेश देने की मांग की। इस पर उच्च न्यायालय ने अटॉर्नी जनरल से इस्कॉन की हालिया गतिविधियों के बारे में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की जानकारी मांगी।

उच्च न्यायालय ने आदेश पारित करने से किया इंकार

गुरुवार को इस मामले में फिर सुनवाई हुई और अटॉर्नी जनरल द्वारा सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की जानकारी दी, जिसमें बताया गया कि वकील सैफुल इस्लाम अलिफ की हत्या और इस्कॉन की गतिविधियों के संबंध में तीन अलग-अलग मामले दर्ज किए गए हैं और इन मामलों में 33 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। इस पर न्यायमूर्ति फराह महबूब और न्यायमूर्ति देबाशीष रॉय चौधरी की उच्च न्यायालय की पीठ ने सरकार की कार्रवाई पर संतुष्टि जाहिर की और इस्कॉन पर प्रतिबंध लगाने की मांग पर आदेश पारित करने से इंकार कर दिया। पीठ ने कहा कि सरकार को कानून-व्यवस्था और बांग्लादेश के लोगों की जान-माल की सुरक्षा को लेकर सतर्क रहना चाहिए।

इस्कॉन को बताया गया कट्टरपंथी संगठन

इस्कॉन पर आरोप लगाया गया है कि यह बांग्लादेश में कट्टरपंथी संगठन के रूप में काम कर रहा है, जो सांप्रदायिक हिंसा भड़काने और धार्मिक असहिष्णुता को बढ़ावा देने में शामिल है। आरोप है कि इस्कॉन समर्थकों ने चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के बाद हुए प्रदर्शनों में एक वकील की हत्या की, जो संगठन की ‘कानून और व्यवस्था के प्रति खुली अनदेखी’ का उदाहरण है।

याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि इस्कॉन ने हिंदू समुदायों पर अपने धार्मिक विश्वास को थोपने के लिए जबरन सदस्यों की भर्ती की है और समुदाय के मंदिरों पर कब्जा किया है। इसके अलावा इस्कॉन पर आरोप है कि उन्होंने मस्जिदों पर हमले किए और 2016 में एक इस्कॉन मंदिर में हथियार पाए गए थे। साथ ही गोपालगंज में इस्कॉन की शोभायात्रा के दौरान पुलिस वाहनों पर हमलें की घटनाएं भी सामने आई थीं।


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