गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध: कृषि विशेषज्ञों ने बताया आम जनता के हित में बड़ा कदम

अन्तर्द्वन्द

नई दिल्‍ली। देश की खाद्य सुरक्षा के मद्देनजर गेहूं निर्यात पर तत्काल प्रतिबंध लगाने के अब समीक्षा की जा रही है। इसी संबंध में कृषि विशेषज्ञों ने इसे आमजन के हित में बड़ा कदम बताया, इससे गेहूं की घरेलू कीमतों में वृद्धि रुकेगी साथ ही खाद्य योजनाओं को और भी सुचारू रूप से लागू किया जा सकेगा।

कीमतों में आएगी तत्काल कमी

सरकार के गेहूं का निर्यात तुरंत रोकने से सबसे बड़ा प्रभाव इसकी कीमत पर पड़ेगा, जो कि इस समय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 40 फीसदी तक बढ़ चुकी है। इसके साथ ही घरेलू स्तर पर बीते एक साल में गेहूं के दाम में 13 फीसदी का उछाल आया है। निर्यात पर रोक लगाए जाने से इसकी कीमत में तत्काल कमी आएगी।

तय एमएसपी पर पहुंचेगा दाम

गेहूं की कीमत में कमी आने के बाद दूसरा बड़ा फायदा ये होगा कि इसकी कीमत निर्धारित 2,015 रुपये प्रति क्विंटल के एमएसपी के करीब पहुंच जाएगी। यहां बता दें कि शुक्रवार को दिल्ली के बाजार में गेहूं की कीमत लगभग 2,340 रुपये प्रति क्विंटल थी, जबकि निर्यात के लिए बंदरगाहों पर 2575-2610 रुपये प्रति क्विंटल की बोली लगाई गई थी।

राज्यों से खरीद को मिलेगा बढ़ावा

कीमत कम होने के कारण सरकार को उन राज्यों से अपनी खरीद को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है, जहां व्यापारियों और जमाखोरों के पास कीमतों में और वृद्धि की उम्मीद में भंडार दबे हुए हैं। एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि फिलहाल 14 से 20 लाख टन गेहूं व्यापारियों के पास है।

खाद्य सुरक्षा प्रबंधन में मदद

सरकार की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगाए जाने से देश की समग्र खाद्य सुरक्षा का प्रबंधन करने में मदद मिलेगी। इसके अलावा पड़ोसी और अन्य कमजोर देशों की जरूरतों का समर्थन करने के मामले में भी इसका बड़ा प्रभाव देखने को मिलेगा क्योंकि सरकार के पास पर्याप्त मात्रा में स्टॉक मौजूद रहेगा।

आटा सस्ता होने से फायदा

गेहूं की किल्लत और बढ़ती कीमतों के कारण बीते कुछ हफ्तों में स्थानीय बाजारों में गेहूं के आटे की कीमतों में जोरदार तेजी देखने को मिली है। इस फैसले से आटे के दाम गिरेंगे और आम जनता को बड़ी राहत मिलेगी। रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल में गेहूं के आटे का अखिल भारतीय मासिक औसत खुदरा मूल्य 32.38 रुपये प्रति किलोग्राम था, जो कि जनवरी 2010 के बाद से सबसे अधिक है।

आम जनता के हित में कदम

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार सरकार का वर्तमान हालातों के बीच उठाया गया यह कदम एक अच्छा स्टेप है, जो कि आम जनता के हित में है। कृषि विशेषज्ञ रविन्द्र शर्मा की मानें तो इस हीट वेब के कारण पहले से ही गेहूं के उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ा है। उन्होंने कहा कि निर्यात ज्यादा होने के कारण देश की खाद्य सुरक्षा का प्रबंधन ठीक ढंग से नहीं हो पा रहा था। प्राइवेट सेक्टर बेलगाम घोड़े की तरह हो गए और इसका उदाहरण ये है कि चार साल के भीतर गेहूं की कीमत में जितना इजाफा हुआ, उससे पांच गुना ज्यादा तेजी आटे की कीमतों में आई है।

देश के स्टॉक में होगी बढ़ोतरी

रविन्द्र शर्मा ने कहा कि सरकार के इस फैसले से खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा और देश में स्टॉक पर्याप्त रहेगा। उन्होंने 2005-07 के बीच तत्कालीन सरकार के प्राइवेट कंपनियों को किसानों से गेहूं खरीदने का अधिकार दिए जाने का जिक्र करते हुए कहा कि उस समय बड़ी मात्रा में निर्यात के कारण केंद्र को दो साल के भीतर 7.1 मिलियन टन का बड़ा आयात करना पड़ा था, वो भी दोगुनी कीमत में। ऐसे में सरकार की ओर से उठाया गया ये कदम बड़ी राहत देने वाला साबित हो सकता है।

संचालित योजनाओं के लिए फायदेमंद

गिरते माल का आकलन करने के बाद कुछ हफ्ते पहले ही सरकार ने मई से शुरू होने वाले पांच महीनों के लिए सरकार की मुफ्त राशन योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत वितरण के लिए राज्यों को गेहूं के स्थान पर 5.5 मिलियन टन चावल आवंटित करने का निर्णय लिया है। रिपोर्ट में एक अधिकारी के हवाले से कहा गया था कि इससे करीब 55 लाख टन गेहूं तुरंत निकल जाएगा, जिसका इस्तेमाल स्टॉक बनाने में किया जा सकता है। गेहूं का निर्यात रोके जाने से स्टॉक में इजाफा होगा और इस तरह की योजनाओं में फिर से गेहूं का वितरण शुरू किया जा सकेगा।

खाद्य महंगाई पर दिखाई देगा प्रभाव

सरकार के इस फैसले के चलते खाद्य महंगाई में भी कमी आने की संभावना है। बता दें कि देश में महंगाई आसमान छू रही है, खुदरा महंगाई एक बार फिर लंबी छलांग मारते हुए अप्रैल महीने में 7.79 फीसदी पर पहुंच चुकी है। इस बीच अप्रैल में खाद्य पदार्थों पर महंगाई 8.38 फीसदी के स्तर पर पहुंच चुकी है। देश में आटे का खुदरा मूल्य इस समय 12 साल के शीर्ष पर है। इसमें कमी आने से जनता को राहत मिलेगी।

गेहूं पर महंगाई दर में आएगी गिरावट

मार्च महीने में भारत की थोक गेहूं मुद्रास्फीति दर 14 फीसदी रही थी, जो कि पांच साल से ज्यादा समय का उच्च स्तर था। गेहूं की कीमतों में गिरावट आने पर इस मोर्चे पर भी राहत मिलेगी। इससे घरेलू स्तर पर बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।

– एजेंसी


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