संसद के शीतकालीन सत्र के 17वें दिन आज ‘एक देश-एक चुनाव’ से जुड़े दो अहम बिल पेश कर दिया। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने 129वें संविधान संशोधन बिल को लोकसभा के पटल पर रखा। सरकार ने इस विधेयक के फायदे गिनाते हुए कहा कि इससे देश में चुनावी खर्च कम होगा और प्रशासनिक क्षमता भी बढ़ेगी। टीएमसी, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने इन विधेयकों का विरोध किया जबकि तेलगु देशम पार्टी (TDP), नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस ने विधेयक का समर्थन किया।
टीएमसी ने कहा कि ये बिल अल्ट्रा वायरस हैं
टीमएसी के नेता कल्याण बनर्जी ने कहा कि यह देश के संविधान पर आघात है। ये बिल अल्ट्रा वायरस है। बनर्जी ने कहा कि जिस तरह देश के संसद के पास कानून बनाने का अधिकार है, ठीक उसी प्रकार राज्यों के पास भी कानून पारित करने का अधिकार है। इस तरह की ऑटोनॉमी देश की विधानसभाओं के ठीक नहीं है। यह संशोधन एक सत्तारूढ़ पार्टी कर रही है और एक दिन हम इसे बदल देंगे। यह चुनाव सुधार नहीं है, यह एक जेंटलमैन की इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश है।
विपक्षी सांसदों ने विधेयक पर जताई असहमति
इंडियन मुस्लिम लीग के सांसद बशीर भी इस विधेयक के खिलाफ नजर आए।। इसके साथ ही शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट के सांसद अनिल देसाई ने भी विधेयक का विरोध किया। अनिल देसाई ने कहा कि यह विधेयक देश के संघीय ढ़ांचा पर हमला है। कांग्रेस के सांसद मनीष तिवारी ने भी वन नेशन वन इलेक्शन विधेयक को लेकर संसद में असहमति जताई। तिवारी ने कहा कि भारत एक स्टेट यूनियन है और ऐसे में यह विधेयक लाना भारत के इस लोकतांत्रिक ढ़ांचे के खिलाफ है।
वन नेशन, वन इलेक्शन बिल असंवैधानिक : जयराम रमेश
वन नेशन, वन इलेक्शन बिल पर कांग्रेस सांसद जयराम रमेश का कहना है कि कांग्रेस पार्टी एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक को दृढ़ता से खारिज करती है। हम इसका विरोध करते हैं। इसे संयुक्त संसदीय समिति में भेजा जाए। हमारा मानना है कि यह असंवैधानिक है। हमारा मानना है कि यह बुनियादी ढांचे के खिलाफ है और इसका मतलब इस देश में लोकतंत्र और जवाबदेही का गला घोंटना है। मल्लिकार्जुन खड़गे ने 17 जनवरी को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को लिखा था कि कांग्रेस पार्टी इस विचार पर आपत्ति क्यों कर रही है? एक राष्ट्र, एक चुनाव, केवल पहला कदम है, असली कदम इस संविधान को पूरी तरह से बदलना है, इस संविधान के स्थान पर एक नया संविधान लाना है. हम इसी का विरोध कर रहे हैं।
महत्वपूर्ण मुद्दे भटकाने के लिए ‘वन नेशन वन इलेक्शन बिल‘: कांग्रेस
वन नेशन वन इलेक्शन बिल का कांग्रेस विरोध कर रही है। बिल पर कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी का कहना है कि बेहतर होता कि सर्वदलीय बैठक बुलाई जाती, जहां इस पर चर्चा होनी चाहिए थी। लेकिन सरकार इस बिल को अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों को भटकाने के लिए लेकर आई है। वे स्पष्ट रूप से जानते हैं कि संवैधानिक परिवर्तन करने के लिए, उनके पास न तो लोकसभा में बहुमत है और न ही राज्यसभा में।
वन नेशन वन इलेक्शन बिल के लिए JPC की मांग
वन नेशन वन इलेक्शन बिल पर एनसीपी-एससीपी सांसद सुप्रिया सुले का कहना है कि हम मांग कर रहे हैं कि बिल जेपीसी में जाना चाहिए और चर्चा होनी चाहिए। हमारी पार्टी जेपीसी की मांग कर रही है।
हम इस बिल के सख्त खिलाफ- अखिलेश यादव
“वन नेशन, वन इलेक्शन बिल” संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर पर हमला है। हम इस बिल के सख्त खिलाफ हैं। सरकार को यह बिल नहीं लाना चाहिए।
स्पीकर बोले: सदन ही इसे मंजूरी देगी, मैं नहीं दूंगा
डीमएके सांसद टीआर बालू ने कहा कि यह विधेयक संविधान विरोधी है। सरकार के पास दो तिहाई बहुमत नहीं है, ऐसे में सरकार को संविधान में संशोधन करने का विधेयक लाने की मंजूरी कैसे दे दी गई। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने इस पर कहा कि अभी तक मैंने इन विधेयकों को मंजूरी नहीं दी है। यह सदन के पटल पर रखा गया है। सदन ही इसे मंजूरी देगी, मैं नहीं दूंगा। टीआर बालू ने इस पर कहा कि सरकार को विधेयक को तुरंत वापस ले लेना चाहिए।
तीन अनुच्छेदों में किया जाएगा संशोधन
इन दो विधेयकों के जरिए संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ा जाएगा और तीन अनुच्छेदों में संशोधन किया जाएगा। इसके साथ ही केंद्र शासित प्रदेशों से जुड़े कानूनों में भी बदलाव के प्रावधान भी इसमें शामिल किए जाएंगे। इन विधेयकों को हाल ही में केंद्रीय कैबिनेट से मंजूरी मिली है। इन विधेयकों में द जम्मू एंड कश्मीर रीऑर्गनाइजेशन एक्ट- 2019, द गवर्नमेंट ऑफ यूनियन टेरिटरीज एक्ट- 1963 और द गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली- 1991 शामिल हैं।
संविधान संशोधन से जुड़े प्रावधान
129वें संविधान संशोधन के जरिए अनुच्छेद 82(A) जोड़ा जाएगा। यह लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का आधार बनेगा। साथ ही अनुच्छेद 83, 172 और 327 में बदलाव किया जाएगा। इसमें लोकसभा और विधानसभाओं का कार्यकाल और समय से पहले चुनाव कराने के नियम तय होंगे। यदि किसी विधानसभा को भंग किया जाता है, तो केवल बचा हुआ कार्यकाल ही पूरा करने के लिए चुनाव होंगे। यह कदम देशभर में चुनावी खर्च और समय बचाने की दिशा में अहम हो सकता है।
-साभार सहित
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