नई दिल्ली। दिल्ली देहात का प्राचीन गांव निज़ामपुर जहां पीढ़ियों से कबड्डी ऐसे खेली जाती है जैसे कि एक भक्त ईश्वर की आराधना करता है। दिल्ली के मुंडका विधान सभा के अंतर्गत निज़ामपुर गांव को देश व दुनिया में कबड्डी खेल की राजधानी अथवा नर्सरी कहा जाता है। हरियाणा के बॉर्डर से सटे हुए निज़ामपुर गांव से कई मशहूर कब्बडी खिलाड़ी निकले हैं। जिन्होंने इस गांव का नाम देश – और दुनिया के सामने रोशन किया है।
खेलों के जानकारों का भी कहना है कि कबड्डी यहां के लोगों की जिंदगी में रची बसी है। यहीं से ताल्लुक रखते हैं स्टार स्पोर्ट्स प्रो कबड्डी लीग के खिलाड़ी। पहली बार प्रो-कबड्डी लीग, जहां निजामपुर से सात खिलाड़ियों को चयन हुआ था। अभी वर्तमान में स्टार खिलाड़ी दिल्ली दबंग टीम के आल राउंडर खिलाडी और विश्व चैंपियन रहे और 2015 में देश के सर्वोच्च खेल सम्मान अर्जुन अवार्ड से सम्मानित खिलाडी मंजीत छिल्लर नए खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा बनकर उभरे हैं।
आज स्टार खिलाड़ी मंजीत छिल्लर को एक लाख इनामी राशि देकर बताशों देवी चेरिटेबल ट्रस्ट के चेयरमैन ब्रह्मप्रकाश ने पुष्पों की माला से उनके जन्मदिन के अवसर पर उनके पैतृक गांव निजामपुर में उनके घर पर सम्मानित किया। इस मौके पर दिल्ली पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य कमल किशोर,सागर इंटरनेशनल के चेयरमैन अमित अग्रवाल,वरिष्ठ पत्रकार एवं रोप स्किपिंग फेडरेशन ऑफ़ इंडिया के मीडिया सलाहकार अशोक कुमार निर्भय,समाजसेवी प्रमोद राणा ने फूलमालाओं और शाल ओढ़ाकर जन्मदिन की शुभकामना के साथ उज्जवल भविष्य की कामना की।
इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार निर्भय से बातचीत में स्टार कब्बडी खिलाडी मंजीत छिल्लर ने बताया कि वह अपनी सफलता के पीछे अपने गुरु हनुमान का आशीर्वाद मानते हैं की उन्होंने डिसिप्लिन में रहकर अपने बुजुर्गों और प्रशिक्षक गुरुओं का सम्मान करना सिखाया और हमेशा हर प्रकार के नशे से दूर रहकर अपने राष्ट्र,समाज,गांव का नाम रोशन करने के लिए जी – तोड़ मेहनत करने का जज्बा लेने की बात युवा पीढ़ी से की। उन्होंने कहा की जब आप अच्छे बेटे,छात्र बनोगे तभी अच्छे खिलाड़ी बन सकते हैं। अर्जुन पुरस्कार विजेता मंजीत छिकारा मानते हैं कि जैसे आईपीएल ने क्रिकेट को नई पहचान दी, उसी तरह पीकेएल ने कबड्डी की किस्मत और तस्वीर दोनों बदल दी है। उन्होंने बताया कि आज कई मैचों में कब्बडी सबसे लोकप्रिय खेल बना है जब आई पी एल के मैच से अधिक कब्बडी को टी आर पी के हिसाब से देखा गया और क्रिकेट पीछे रह गया। कब्बडी हमारे देहात की पहचान है और आज यह पहचान अंतर्राष्ट्रीय तो हुई है वहीँ खिलाड़ियों को प्रोत्साहन मिला है।
अभी सरकार को बहुत कुछ करने की आवशयकता है लेकिन अब कब्बडी गांव से निकल कर अतर्राष्ट्रीय पहचान कायम कर चुकी है और फ़ुटबाल और क्रिकेट के साथ दुनिया में आज सबसे ज्यादा देखे जाने वाला खेल बनी है इसके लिए हमारे पूर्वजों का आशीर्वाद और हमारे खिलाड़ियों कि मेहनत के साथ जो लीग खेल बने उसका कब्बडी को बढ़ाने में बहुत बड़ा योगदान है।
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