रिजर्व तेल भंडार के माध्‍यम से अंतर्राष्‍ट्रीय राजनीति की रणनीति साधता अमेरिका

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बाइडेन प्रशासन को उम्मीद है कि स्ट्रैटजिक पेट्रोलियम रिजर्व यानी रणनीतिक तेल भंडार का इस्तेमाल कर वह अमेरिकी लोगों को कुछ राहत दे सकेगा, जो गैसोलिन की ऊंची कीमतों से खासे परेशान हैं. बाइडेन ने यह फैसला मध्यावधि चुनावों से कुछ ही हफ्ते पहले उठाया है इसलिए इसमें राजनीतिक फायदा उठाने की मंशा भी देखी जा रही है.

यूक्रेन पर रूस के हमले के पहले से ही दुनिया में तेल की कीमतें बढ़ रही थीं. जब बाइडेन ने रूसी तेल के आयात पर प्रतिबंध लगाया तो उसी वक्त यह भी स्वीकार किया कि इसका असर अमेरिकी लोगों पर होगा. इसी साल मार्च में अमेरिकी राष्ट्रपति को 18 करोड़ बैरल रिजर्व तेल जारी करने का अधिकार मिला था. ताजा कदम के साथ बीते छह महीनों में यह काम पूरा हो गया. इसके साथ ही अमेरिका का रणनीतिक तेल भंडार 1984 के बाद सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. अमेरिका के पास इस भंडार में अब लगभग 40 करोड़ बैरल तेल है.

राष्ट्रपति के पास महंगाई को नियंत्रित करने के लिए अपने दम पर उठाने वाले जो कदम हैं उनमें से एक यह भी है. महंगाई अमेरिकी  लोगों को गरीब बना रही है और सत्ताधारी दल के लिए अकसर ये लोग एक जिम्मेदारी बन जाते हैं.

इस समय इस्तेमाल क्यों?

अमेरिका इस समय तेल का जितना आयात करता है उससे ज्यादा निर्यात कर रहा है. इस बीच रिजर्व बना रहा और अब इसे इस्तेमाल करने की कई वजहें हैं. इसमें हाल में आये तूफानों के कारण हुई दिक्कतें दूर करना, शिपिंग चैनलों का बंद होना और सरकारी घाटे को कम करने के लिए पैसा जुटाना शामिल है.

1991 में अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने खाड़ी युद्ध के दौरान 3.4 करोड़ बैरल तेल निकालने का आदेश दिया था हालांकि तब केवल 1.7 करोड़ बैरल तेल ही इस्तेमाल किया गया. 2011 में राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 3 करोड़ बैरल तेल निकालने की मंजूरी दी थी जिससे कि लीबिया से तेल सप्लाई में आई समस्या का सामना किया जा सके.

रणनीतिक तेल भंडार

अमेरिका का रणनीतिक तेल भंडार जमीन के भीतर नमक की गुफायें हैं. टेक्सस और लुइसियाना राज्य में मौजूद इन गुफाओं में 70 करोड़ बैरल से ज्यादा तेल रखा जा सकता है. हालांकि फिलहाल यह पूरी तरह से भरी हुई नहीं हैं. इस भंडार में अक्टूबर महीने की शुरूआत तक 40.9 करोड़ बैरल तेल था. अमेरिकी ऊर्जा विभाग के मुताबिक एक साल पहले इसी समय इसमें 61.7 करोड़ बैरल तेल था. यह तेल का भंडार 1970 के दशक में अरब ऑयल इम्बार्गो के समय बनाया गया था जिससे कि आपातकाल में इस्तेमाल किया जा सके.

तेल बाहर कैसे निकाला जाता है?

तेल पानी से हल्का होता है. इसी वजह से कई बार हादसे भी होते हैं. एक्सॉन वाल्डेज टैंकर और डीपवाटर होराइजन ड्रिलिंग रिग हादसे के दौरान निकला तेल सागर की सतह पर फैल गया था. इन नमक की गुफाओं से तेल निकालने के लिए इनमें पानी भरा जाता है. इसके नतीजे में कच्चा तेल ऊपर की सतह पर आकर तैरने लगता है जिसे जमा कर पाइपलाइनों के जरिये रिफाइनरी में भेजा जाता है.

बाइडेन रिजर्व भंडार का इस्तेमाल क्यों कर रहे हैं?

बाइडेन को उम्मीद है कि बाजार में ज्यादा तेल मुहैया कराने से कीमतें नीचे जाएंगी. पिछले साल नवंबर में रिजर्व तेल भंडार को इस्तेमाल करने की शुरुआती घोषणा के बाद तेल की कीमतें नीचे गईं लेकिन महीना गुजरने से पहले ही वो उठने लगीं. अमेरिकी कच्चा तेल इस साल 10 फीसदी महंगा था लेकिन जून के बाद से यह तेजी से नीचे जा रहा है. जून में एक बैरल कच्चा तेल 120 डॉलर का था जो इस हफ्ते 83 डॉलर पर आ गया है.

बाइडेन का ताजा कदम कितना काम करेगा यह कई कारणों पर निर्भर करेगा. सबसे पहले जो बात ध्यान में रखनी है वो यह है कि 10 लाख बैरल तेल एक दिन में बहुत बड़ी मात्रा होती है लेकिन पिछले साल अमेरिका ने हर दिन 2 करोड़ बैरल तेल खर्च किया. दुनिया भर में हर दिन 9.7 करोड़ बैरल तेल खर्च होता है.

क्या गैसोलीन सस्ती होगी? 

ज्यादातर लोग यह जानना चाहते हैं कि पेट्रोल पंप पर कीमतें कब घटेंगी. गैसोलीन की कीमत तय करने में कई कारक हैं. रिफाइनरियां कच्चा तेल पहले से ही खरीद कर रखती हैं जिससे कि तेल की कीमत बढ़ने पर भी उनका काम चलता रहे. इसके अलावा अलग अलग राज्यों में टैक्स की दर अलग है जिसका असर कीमतों पर होता है.

इस हफ्ते एक गैलन रेग्युलर गैसोलीन की कीमत 3.85 डॉलर प्रति गैलन थी जो एक महीने पहले की तुलना में 18 सेंट ज्यादा है. देश के मध्य हिस्से में मौजूद कई राज्यों में औसत कीमत इससे कम है जबकि उत्तर पूर्वी राज्यों में ज्यादा और पश्चिम में सबसे ज्यादा.

कैलिफोर्निया में यह 5.94 डॉलर प्रति गैलन है. अगर ये कीमतें नीचे नहीं जातीं तो बाइडेन यह दलील दे सकते हैं कि रिजर्व तेल को इस्तेमाल करने का भी फायदा नहीं हुआ.

तेल अहम क्यों हैं?

तेल और गैस का भविष्य हमेशा से अमेरिकी राजनीति के केंद्र में और तनाव का कारण रहा है. खासतौर से इसलिए भी क्योंकि कंपनियां और सरकारी एजेंसियां जलवायु परिवर्तन और स्वच्छ ऊर्जा के स्रोतों की ओर बढ़ रही हैं.  ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए अमेरिका के तेल और गैस उद्योग की कुछ राजनेता तारीफ करते हैं. एक समय ऐसा भी था जब अमेरिका आयात पर बहुत ज्यादा निर्भर था आज स्थिति यह है कि दूसरे देश अमेरिका पर ऊर्जा के लिए निर्भर हैं. यह रोजगार का एक बड़ा क्षेत्र भी है. तेल और गैस उद्योग में अमेरिका के एक करोड़ से ज्यादा लोग काम करते हैं और जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी 8 प्रतिशत से ज्यादा है.

तेल सप्लाई करने वाली कंपनियों को ऊंची कीमतों से फायदा होता है लेकिन जब पेट्रोल पंपों पर यही कीमतें ऊंची हो जाती हैं तो लोगों को पसंद नहीं आता.

– एजेंसी


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