आयोग की सदस्य शुचिता चतुर्वेदी से नरेश पारस ने लखनऊ में की मुलाकात
आगरा: 11 माह से बाल गृह में निरुद्ध बालिका को उसकी पालनहार मां को सुपुर्दगी में देने के निर्देश बाल आयोग ने बाल कल्याण समिति को जारी किए हैं। आयोग की सदस्य डॉ सुचिता चतुर्वेदी ने बाल कल्याण समिति की सदस्य को मोनिका सिंह को फोन करक बच्ची को सुपुर्द करने को कहा। बीस दिन पहले आयोग इस संबंध में जिलाधिकारी पत्र जारी कर चुका है। इस संबंध में चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस में बाल आयोग लखनऊ स्थित राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के कार्यालय में सदस्य डॉ शुचिता चतुर्वेदी से मुलाकात की। इससे पूर्व वह बालिका के बारे में पूरी जानकारी आयोग को दे चुके हैं। आयोग द्वारा 6 जुलाई को जिलाधिकारी को पत्र जारी करके मिशन वात्सल्य के तहत बालिका को फोस्टर केयर में देने के निर्देश जारी कर दिए हैं लेकिन उसके बावजूद भी बाल कल्याण समिति ने कोई कार्यवाही नहीं की।
बेवश मां ने डीएम से भी लगाई गुहार
आठ साल पहले एक किन्नर को यह बालिका लावारिस हालत में मिली थी। किन्नर ने टेढ़ी बगिया निवासी महिला को सौंप दिया था। महिला ने उसकी अच्छी परवरिश की। पढ़ाया लिखाया। सात साल की होने के बाद किन्नर की नियत खराब हो गई। वह लड़की को वापस मांगने लगा। वह लड़की का अपहरण करके फर्रुखाबाद ले गया। जहां से पुलिस ने उसे रेस्क्यू करा कर महिला के सुपुर्द करा दिया था। बाल कल्याण समिति ने भी फिट घोषित कर उसे पालन पोषण के लिए दे दिया लेकिन किन्नर की शिकायत पर बालिका को दोबारा लेकर बाल गृह में निरुद्ध करा दिया। महिला नरेश पारस के साथ जिलाधिकारी नवनीत चहल से मिली थी तथा पूरी घटना से अवगत कराया था। उन्होंने कहा था कि बालिका हित में निर्णय लिया जाएगा। बच्ची को उसकी मां से मिलने भी नहीं दिया जा रहा था। कई बार वह बाल कल्याण समिति और बाल गृह के चक्कर काट चुकी थी उसके बावजूद भी उसे नहीं मिलने दिया गया। नरेश पारस ने यह प्रकरण उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग को भेजा था इसके बाद आयोग ने पत्र जारी किया था। मंगलवार को नरेश पारस में लखनऊ में आयोग की सदस्य डॉ सुचिता चतुर्वेदी से मुलाकात की इसके तुरंत बाद उन्होंने फोन पर बाल कल्याण समिति की सदस्य मोनिका से बात की तथा बालिका को सुपुर्दगी में देने के लिए कहा।
भावनात्मक हितों को पहुंचाया आघात
आयोग ने सीडब्ल्यूसी की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा है कि यह अवगत कराने का कष्ट करें कि यदि विगत 08 वर्षों से बालिका यशोदा (पालनहार मां का परिवर्तित नाम) के संरक्षण में रह रही थी और उसकी समुचित प्रकार से देखभाल, पालन-पोषण, शिक्षा दीक्षा आदि कार्य किया जा रहा था तथा स्वयं बात कल्याण समिति द्वारा निरंतर रूप से फालोअप किया जा रहा था। किन्तु अचानक यशोदा को बालिका का पालन-पोषण करने में अक्षम बताये जाने का औचित्य क्या है ? किशोर न्याय (बालको की देखरेख व संरक्षण) अधिनियम में किसी भी बालक अथवा बालिका के सर्वोत्तम हित को सुनिश्चित करने के निर्देश प्राप्त हैं।
बालिका के सर्वोत्मक हित के रूप में अन्य हितों के साथ भावनात्मक हित भी घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है। क्या बाल कल्याण समिति का उक्त आदेश एक बार यशोदा को फिट पर्सन घोषित किया जाना तत्पश्चात प्रत्येक 15 दिवस पर किया जाना तथा अचानक ही बालिका को पृथक कर बालिका गृह में आवासित करा दिये जाने का कार्य भावनात्मक हितों को आघात नहीं पहुंचाता है ? अग्रेतर यदि यशोदा पालन-पोषण करने में सक्षम नहीं थी तो बाल कल्याण समिति आगरा द्वारा यशोदा की किसकी जाँच रिपोर्ट के आधार पर फिट पर्सन घोषित किया गया ? पुनश्चः मिशन वात्सल्य अन्तर्गत संचालित फास्टर केयर के अन्तर्गत यशोदा को लाभान्वित कराते हुए बालिका को फास्टर केयर में रखने पर विचार किया जाना समीचीन होगा।
Compiled: up18 News
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