आगरा: गुरुवार को आगरा नगर निगम में समाजवादी पार्टी के सांसद रामजीलाल सुमन ने जो गर्जना की, उसने सरकारी फाइलों में दर्ज ‘स्वच्छता’ के दावों की धज्जियां उड़ा दीं. एक तरफ नगर निगम बड़ी-बड़ी उपलब्धियों के ढोल पीट रहा है, दूसरी तरफ शहर की सड़कें कूड़े और कीचड़ से अटी पड़ी हैं.
सांसद सुमन ने साफ कहा, “आगरा स्मार्ट सिटी नहीं, नरक सिटी है.” और इस बार, उनके इस तीखे आरोप के साथ एक और कड़वी सच्चाई सामने आई है, जो स्वच्छता सर्वेक्षण की चमक-धमक पर सवालिया निशान लगाती है.
सांसद सुमन ने आंखों देखी बात बताई. शहर के सौ वार्ड, हर जगह गंदगी का अंबार. बारिश का मौसम, जलभराव और उस पर तैरता कूड़ा. बीमारियां दस्तक दे रही हैं, और नगर निगम अपनी फाइलों में ‘फाइव स्टार रेटिंग’ और ‘देश में दसवां स्थान’ देखकर आत्ममुग्ध है. ये कौन सा ‘स्वच्छता सर्वेक्षण’ है, जो शहर की बदहाली को देख नहीं पाता? या फिर हम कहें कि ये ‘स्वच्छता सर्वेक्षण’ सिर्फ आंकड़ों का खेल है, जिसका ज़मीनी हकीकत से कोई वास्ता नहीं?
आंकड़ों का मकड़जाल बनाम बदहाल हकीकत
स्वच्छता सर्वेक्षण 2024 की रिपोर्ट कहती है कि आगरा ने लंबी छलांग लगाई है. देश में 10वां और प्रदेश में दूसरा सबसे स्वच्छ शहर बन गया है! पिछले साल 85वें स्थान पर था, अब सीधे टॉप टेन में! वाह, क्या कमाल है! नगर निगम ने ‘एड़ी चोटी का ज़ोर’ लगा दिया. वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट, प्लास्टिक कचरा रीसाइकिल प्लांट, सैनेटरी लैंडफिल, वेस्ट टू एनर्जी प्लांट… सब कुछ कागज़ों पर चमचमाता दिख रहा है. कुबेरपुर में 20 लाख मीट्रिक टन कचरे का निस्तारण करके ‘हरियाली और पार्क’ बनाने का दावा भी किया जा रहा है. 5आर सेंटर और 15 एकड़ का ग्रीन ज़ोन भी तैयार हो गया!
मगर ये सब कहां है? सांसद सुमन कह रहे हैं कि आगरा में जनसंख्या के हिसाब से 7,500 सफाई कर्मचारियों की ज़रूरत है, जबकि वर्तमान में केवल 4,000 ही हैं. पिछले साल 1,000 कर्मचारियों की भर्ती का प्रस्ताव पास हुआ, लेकिन एक भी भर्ती नहीं हुई. तो फिर ये ‘स्वच्छता’ कैसे आ गई? *क्या शहर बिना सफाई कर्मचारियों के ही ‘स्वच्छ’ हो रहा है?* या फिर ‘स्वच्छता सर्वेक्षण’ की टीम ने आगरा के उन्हीं चमकते हुए कोनों को देखा, जिन्हें दिखाने के लिए ‘एड़ी चोटी का ज़ोर’ लगाया गया था?
बजट का ‘बंदरबांट’ और बीमारियों का खतरा
सांसद सुमन का आरोप सीधा है: नगर निगम में बजट का बंदरबांट होता है. ‘स्मार्ट सिटी’ के नाम पर आया करोड़ों का बजट आखिर कहां जा रहा है? अगर इतनी तरक्की हुई है, इतने प्लांट लगे हैं, तो शहर की गलियों में कूड़े के ढेर क्यों हैं? हर रोज़ कूड़ा क्यों नहीं उठ रहा? बारिश के दिनों में जलभराव और कीचड़ से संक्रमण फैलने का खतरा क्यों बना हुआ है? क्या ‘स्वच्छता सर्वेक्षण’ की रिपोर्ट इन सवालों का जवाब देगी? या वह सिर्फ सरकारी फाइलों में दर्ज ‘उपलब्धियों’ को ही सच मानती रहेगी?
यह साफ है कि ज़मीन पर कुछ और चल रहा है और फाइलों में कुछ और. यह दोहरापन बेहद खतरनाक है. जब शहर ही साफ नहीं रहेगा, तो लोग बीमार पड़ेंगे. इसकी ज़िम्मेदारी किसकी होगी? उन अधिकारियों की, जो एसी कमरों में बैठकर ‘फाइव स्टार रेटिंग’ का जश्न मनाते हैं, या उन नेताओं की, जो जनता की समस्याओं से आंखें मूंदे रहते हैं?
आगरा की जनता ‘स्मार्ट सिटी’ के जुमलों से अब ऊब चुकी है. उसे कागज़ों की स्वच्छता नहीं, बल्कि ज़मीन की हकीकत में स्वच्छता चाहिए. सांसद सुमन की यह आवाज़ केवल एक विरोध नहीं, बल्कि उस शहर की चीख़ है, जो सरकारी दावों और ज़मीनी हकीकत के बीच फंसा हुआ है.
क्या इस बार कोई इन चीखों को सुनेगा, या ‘स्वच्छता सर्वेक्षण’ की अगली रिपोर्ट का इंतज़ार होता रहेगा, जहां आगरा फिर किसी ‘शानदार’ नंबर पर आकर खुद को ‘नरक’ होने से बचाएगा?
-मोहम्मद शाहिद