ईरान में पुलिस हिरासत में महसा आमिनी नाम की एक लड़की की मौत का मामला एक ऐसे बवंडर में बदलता हुआ दिख रहा है, जिसकी गूँज दूसरे मुल्कों में भी सुनाई दे रही है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार फ़्रांस के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि ईरानी महिला की मौत एक शर्मनाक घटना है.
फ़्रांस ने महसा की मौत की परिस्थितियों की ईमानदारी से जाँच की भी मांग की है. यूरोपीय संघ के विदेश संबंधों की परिषद ने भी भी इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है.
परिषद ने कहा है, “हमारी संवेदनाएँ महसा के परिजनों और दोस्तों के साथ हैं. उनके साथ जो कुछ भी हुआ, वो अस्वीकार्य है. उसकी मौत के लिए ज़िम्मेदार लोगों पर क़ानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए.”
अमेरिका के विदेश मंत्री ने भी महसा की मौत पर प्रतिक्रिया दी है और ईरान की निंदा की है. सीनेट और प्रतिनिधि सभा की विदेश मामलों की समिति ने ईरान में महिलाओं की स्थिति पर सवाल उठाए हैं. व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने महसा की मौत के लिए ज़िम्मेदारी तय किए जाने की मांग की है.
महसा आमिनी के साथ हुआ क्या था?
ईरान के कुर्दिस्तान प्रांत की 22 वर्षीया महसा आमिनी की पुलिस हिरासत में मौत हो गई थी. उन्हें पिछले हफ़्ते तेहरान में ‘हिजाब से जुड़े नियमों का कथित तौर पर पालन नहीं करने के लिए’ गिरफ़्तार किया गया था.
तेहरान की मोरलिटी पुलिस का कहना है कि ईरान में ‘सार्वजनिक जगहों पर बाल ढँकने और ढीले कपड़े पहनने’ के नियम को सख़्ती से लागू करने के सिलसिले में कुछ महिलाएँ हिरासत में ली गई थीं. महसा भी उनमें थीं.
तेहरान पुलिस के कमांडर हुसैन रहीमी ने कहा कि पुलिस के ख़िलाफ़ ‘कायराना इल्जाम’ लगाए जा रहे हैं. महसा के साथ कोई हिंसा नहीं की गई थी और पुलिस उन्हें ज़िंदा रखने के लिए जो कुछ भी कर सकती थी, पुलिस ने किया.
हुसैन रहीमी ने कहा, “ये हमारे लिए एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है. हम चाहेंगे कि ऐसी घटना दोबारा न हो.” पुलिस ने अपने दावे को साबित करने के लिए एक सीसीटीवी फुटेज भी जारी किया है जिसकी स्वतंत्र सूत्रों से पुष्टि नहीं की जा सकती है.
लेकिन महसा के पिता बार-बार ये कह रहे हैं कि उनकी बेटी को कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं थी और उसके पैरों पर चोट के निशान थे. वे पुलिस को महसा की मौत के लिए ज़िम्मेदार बताते हैं.
कुर्दिस्तान से तेहरान तक विरोध प्रदर्शन
महसा की मौत के बाद कुर्दिस्तान से लेकर तेहरान तक देश के कई इलाक़ों में विरोध प्रदर्शन भड़क गए. कुर्दिश क्षेत्र में प्रदर्शनकारियों पर सुरक्षा बलों की कार्रवाई में सोमवार को पाँच लोगों की मौत हो गई.
शनिवार को महसा को उनके होमटाउन साकेज़ में दफ़्न कर दिया गया. उनके जनाजे में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए. जनाजे में शामिल महिलाओं ने विरोध में अपने हिजाब उतार दिए थे.
जनाजे में शामिल प्रदर्शनकारियों ने ‘तानाशाह की मौत हो’ के नारे भी लगाए. ये नारा ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह अली ख़ामनेई के लिए लगाया जा रहा था.
बताया जा रहा है कि सोमवार के विरोध प्रदर्शनों में 75 लोग घायल हुए हैं. ये विरोध प्रदर्शन अभी भी थमे नहीं हैं कि हालाँकि ईरान का सरकारी मीडिया इन विरोध प्रदर्शनों की गंभीरता कम करके पेश कर रहा है.
साल 2021 में पानी के संकट की वजह से हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद ईरान में ये पहला मौक़ा है, जब नाराज़ लोग अपना ग़ुस्सा जाहिर करने के लिए सड़कों पर उतरे हैं.
मोरलिटी पुलिस क्या है?
बीबीसी मॉनिटरिंग की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 1979 की क्रांति के बाद से ही ईरान में सामाजिक मुद्दों से निपटने के लिए ‘मोरलिटी पुलिस’ कई स्वरूपों में मौजूद रही है.
इनके अधिकार क्षेत्र में महिलाओं के हिजाब से लेकर पुरुषों और औरतों के आपस में घुलने-मिलने का मुद्दा भी शामिल रहा है.
लेकिन महसा की मौत के लिए ज़िम्मेदार बताई जा रही सरकारी एजेंसी ‘गश्त-ए-इरशाद’ ही वो मोरलिटी पुलिस है, जिसका काम ईरान में सार्वजनिक तौर पर इस्लामी आचार संहिता को लागू करना है.
‘गश्त-ए-इरशाद’ का गठन साल 2006 में हुआ था. ये न्यायपालिका और इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स से जुड़े पैरामिलिट्री फोर्स ‘बासिज’ के साथ मिलकर काम करता है.
ये संगठन ‘इस्लामी आचार संहिता के उल्लंघन’ पर किसी को फटकार लगा सकता है, सार्वजनिक तौर पर किसी को गिरफ़्तार कर सकता है.
दिलचस्प बात ये भी है कि ईरान में हिजाब को बढ़ावा देने के लिए केवल ‘गश्त-ए-इरशाद’ ही काम नहीं कर रहा है, बल्कि सरकार के 26 अन्य विभाग भी इसे लागू करने के लिए ज़िम्मेदार हैं.
ईरान में पाबंदियों की लंबी लिस्ट
ईरान में हिजाब को लेकर सरकारी नियम क़ायदों को एक तरफ़ रख दें, तो इसके अलावा दर्जनों ऐसी चीज़ें हैं जिसे लेकर महिलाएँ आज़ाद नहीं हैं. ईरान में महिलाएँ स्विमसूट पहनकर बीच पर नहा नहीं सकती हैं.
वैसे तो ईरान में महिलाओं को फुटबॉल मैच देखने से रोकने के लिए कोई आधिकारिक प्रतिबंध नहीं है, लेकिन उन्हें स्टेडियमों में दाखिल होने से रोका जाता है. ईरानी क्रांति से पहले वहाँ ऐसी कोई रोक नहीं थी.
इस साल 25 अगस्त को महिलाओं ने 40 साल बाद पहली बार आधिकारिक रूप से कोई लीग मैच देखा था.
ईरान में महिलाओं को घर से बाहर निकलने, विदेश यात्रा, नौकरी, पासपोर्ट के लिए आवेदन करने जैसे मुद्दों पर पुरुषों जैसे अधिकार हासिल नहीं हैं. काम की जगह पर और न ही घरेलू हिंसा के उत्पीड़न से बचाने के लिए ईरान में कोई क़ानून है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के अनुसार ईरान में महिलाओं को शादी, तलाक़, विरासत, बच्चों की कस्टडी के मसले पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है.
-Compiled by UP18NEWS
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