ज्ञानवापी विवाद मामले में जमीयत उलमा-ए-हिंद अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट’ को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करने की मांग की है। जमीयत ने इस मामले में खुद को एक पार्टी बनाने की भी मांग की है। इस मामले में गर्मी की छुट्टी के बाद यानी जुलाई में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर सकता है। अश्विनी उपाध्याय ने याचिका दायर की है। वाराणसी का ज्ञानवापी मामला जिला न्यायालय में लंबित है, जबकि सुप्रीम कोर्ट में एक से अधिक ऐसी याचिकाएं दायर की गई हैं। जिनमें न्यायालय को प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को असंवैधानिक घोषित करने के लिए कहा गया है।
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जमीयत उलेमा ए हिंद
जमीयत इसी याचिका में एक प्रतिवादी के रूप में शामिल होने की मांग की है। अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देते हुए जमीयत ने अधिवक्ता एजाज मकबूल के माध्यम से कहा कि ऐतिहासिक गलतियों को ठीक करने के लिए न्यायिक कार्यवाही का सहारा नहीं लिया जा सकता है। जमीयत ने अयोध्या फैसले का हवाला दिया है। याचिका में कहा गया है, ‘‘इस अदालत ने स्पष्ट रूप से माना है कि कानून को अतीत में पहुंचने के लिए एक उपकरण के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता और हर उस व्यक्ति को कानूनी उपाय प्रदान नहीं किया जा सकता जो इतिहास की धारा से असहमत है। आज की अदालतें ऐतिहासिक अधिकारों एवं गलतियों का संज्ञान तब तक नहीं ले सकती हैं जब तक यह नहीं दर्शाया जाता कि उनके कानूनी परिणाम वर्तमान में लागू करने योग्य हैं।’
एक और याचिका
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के प्रावधानों को चुनौती देते हुए एक और याचिका दायर की गई है। सुप्रीम कोर्ट में इससे पहले एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय और एक अन्य की ओर से प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा-2,3,4 को चुनौती दी जा चुकी है और मामले में केंद्र सरकार से सुप्रीम कोर्ट ने जवाब मांग रखा है।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा गया है कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के प्रावधान मनमाना है और उसके कटऑफ डेट कानून बनाने से पहले की तारीख से लागू किया गया है और वह 15 अगस्त 1947 रखा गया है। एक रिटायर आर्मी ऑफिसर की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में उक्त एक्ट के प्रावधानों को गैर संवैधानिक घोषित करने की गुहार लगाई गई है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र
इसने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि शीर्ष अदालत आज कानून की अदालत में हिंदू पूजा स्थलों के खिलाफ मुगल शासकों के कार्यों के दावों पर विचार नहीं कर सकती है। अयोध्या फैसले में SC ने कहा था, ‘हमारा इतिहास उन कार्यों से भरा हुआ है जिन्हें नैतिक रूप से गलत माना गया है और आज भी मुखर वैचारिक बहस को गति देने के लिए उत्तरदायी हैं। हालांकि, संविधान को अपनाना एक ऐतिहासिक क्षण है जहां हम, भारत के लोग, अपनी विचारधारा, अपने धर्म, अपनी त्वचा के रंग, या उस सदी के आधार पर अधिकारों और दायित्वों के निर्धारण से विदा हो गए जब हमारे पूर्वज आए थे।
किसलिए बना था प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991
जमीयत उलमा-ए-हिंद ने एडवोकेट एजाज मकबूल के जरिए सुप्रीम कोर्ट में यह अर्जी दायर की है। मौलाना अरशद मदनी के निर्देश पर हस्तक्षेप करने वाली इस याचिका में लिखा गया है कि ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991’ को लागू करने के 2 उद्देश्य थे। पहला उद्देश्य- किसी भी धार्मिक स्थल की तब्दीली को रोकना और दूसरा उद्देश्य पूजा स्थलों को उसी में रखना था, जिस स्थिति या रूप में वे 1947 में थे।
याचिका में कहा गया है, ‘यह कहने की जरूरत नहीं है कि यदि वर्तमान याचिका पर विचार किया जाता है, तो इससे देश में अनगिनत मस्जिदों के खिलाफ मुकदमेबाजी के द्वार खुल जाएंगे तथा अयोध्या फैसले के बाद देश जिस धार्मिक विभाजन से उबर रहा है, उसकी खाई और बढ़ेगी।’
-एजेंसियां
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