हर साल 08 मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है। थैलेसीमिया एक ऐसा रोग है, जो आमतौर पर जन्म से ही बच्चे को अपनी गिरफ्त में ले लेता है। यह दो प्रकार का होता है। माइनस और मेजर। जिन बच्चों में माइनर थैलेसीमिया होता है, वे लगभग स्वस्थ जीवन जी लेते हैं जबकि जिन बच्चों में मेजर थैलेसीमिया होता है उन्हें लगभग हर 21 दिन बाद या महीने भर के अंदर एक शीशी खून चढ़ाना पड़ता है।
अगर शादी कराने से पहले लड़के-लड़की के खून की जांच करा ली जाए या गर्भावस्था के चौथे महीने में भ्रूण का ठीक से चेकअप करा लिया जाए तो थैलेसीमिया जैसे वंशानुगत रोग को बढ़ने से रोका जा सकता है।
क्या होता है थैलेसीमिया?
-थैलेसीमिया रोग एक तरह का रक्त विकार है। इसमें बच्चे के शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन सही तरीके से नहीं हो पाता है और इन कोशिकाओं की आयु भी बहुत कम हो जाती है।
-इस कारण इन बच्चों को हर 21 दिन बाद कम से कम एक यूनिट खून की जरूरत होती है। जो इन्हें चढ़ाया जाता है लेकिन फिर भी ये बच्चे बहुत लंबी आयु नहीं जी पाते हैं। अगर कुछ लोग सर्वाइव कर भी जाते हैं तो अक्सर किसी ना किसी बीमारी से पीड़ित रहते हैं और जीवन का आनंद नहीं ले पाते हैं।
क्या होता है थैलेसीमिया में?
-हमारे शरीर में जो रक्त होता है उसमें सफेद रक्त कोशिकाएं (WBC) और लाल रक्त कोशिकाएं (RBC) होती हैं। वाइट ब्लड सेल्स हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का काम करती हैं तो लाल रक्त कोशिकाएं शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर बनाए रखती हैं।
-लेकिन थैलेसीमिया के रोगी के शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण उस गति से नहीं हो पाता जैसे की शरीर को आवश्यकता होती है।
इसलिए पड़ती है ब्लड चढ़ाने की जरूरत
-हमारे शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की उम्र लगभग 120 दिन होती है लेकिन थैलेसीमिया के रोगी में इन कोशिकाओं का जीवन करीब 20 दिन रह जाता है।
-यानी एक तो कोशिकाओं का निर्माण नहीं होता, फिर जो कोशिकाएं ब्लड के साथ उनके शरीर में चढ़ाई जाती हैं, उनकी लाइफ बहुत ही कम हो जाती है। इस कारण रोगी को बार-बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है।
कैसे होता है यह रोग?
-थैलेसीमिया एक वंशानुगत रोग है। अगर माता या पिता किसी एक में या दोनों में थैलेसीमिया के लक्षण है तो यह रोग बच्चे में जा सकता है इसलिए बेहतर होता है कि बच्चा प्लान करने से पहले या शादी से पहले ही अपने जरूरी मेडिकल टेस्ट करा लेने चाहिए।
-अगर माता-पिता दोनों को ही यह रोग है लेकिन दोनों में माइल्ड (कम घातक) है तो बच्चे को थैलेसीमिया होने की आशंका बहुत अधिक होती है। साथ ही बच्चे में यह रोग गंभीर स्थिति में हो सकता है, जबकि माता पिता में रोग की गंभीर स्थिति नहीं होती है।
– लेकिन अगर माता-पिता दोनों में से किसी एक को यह रोग है और माइल्ड है तो आमतौर पर बच्चों में यह रोग ट्रांसफर नहीं होता है। यदि हो भी जाता है तो बच्चा अपना जीवन लगभग सामान्य तरीके से जी पाता है। कई बार तो उसे जीवनभर पता ही नहीं चलता कि उसके शरीर में कोई दिक्कत भी है।
-एजेंसियां