अर्थराइटिस स्टेज 4 में पहुंच जाती है तो बन जाती है गंभीर समस्या

Health

भारत में Arthritis के मरीजों की संख्या करीब 15 करोड़ है। अर्थराइटिस से पीड़ित मरीजों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। इसमें मरीज अक्सर जोड़ों के दर्द, सूजन या अकड़न की समस्या से परेशान रहते हैं। इस बीमारी के कारण हड्डियां कमजोर हो जाती हैं जिससे फ्रेक्चर का खतरा बढ़ जाता है।

सामान्य तौर पर यह समस्या मोटापा, एक्सरसाइज में कमी, चोट आदि से संबंधित है। इस समस्या का खतरा पुरुषों की तुलना में महिलाओं में 3 गुना ज्यादा होता है, जिसके बाद उन्हें जॉइंट रिप्लेसमेंट कराना पड़ता है।

वैशाली स्थित सेंटर फॉर नी एंड हिप केयर के जॉइंट रिप्लेसमेंट विभाग के वरिष्ठ प्रत्यारोपण सर्जन, डॉक्टर अखिलेश यादव ने बताया कि “Arthritis जब स्टेज 4 पर पहुंच जाती है तो यह एक गंभीर समस्या बन जाती है। इसमें घुटनों के मरीजों को चलते वक्त या मूवमेंट के दौरान तीव्र दर्द और असहजता महसूस होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उनकी हड्डियों के बीच मौजूद कार्टिलेज पूरी तरह घिस जाता है, जिसके बाद हड्डियां आपस में टकराती हैं और तीव्र दर्द पैदा करती हैं। स्टेज 4 वाले मरीजों की हालत गंभीर हो जाती है, जिसके बाद उन्हें चलने और उठने-बैठने में तकलीफ होती है।”

आमतौर पर शुरुआती निदान के साथ मरीजों को किसी खास इलाज की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इस दौरान समस्या को केवल एक्सरसाइज और फिजिकल थेरेपी से ठीक किया जा सकता है। इस प्रकार की थेरेपी में किसी प्रकार के मेडिकेशन की आवश्यकता नहीं होती है। एक्सरसाइज से लाभ न मिलने पर मेडिकेशन की सलाह दी जाती है। यदि समस्या ज्यादा है तो डॉक्टर सप्लीमेंट्स के अलावा ओटीसी पेन किलर दवाइयां और पेन रिलीफ थेरेपी की सलाह दे सकता है। सामान्य तौर पर स्टेज 3 की स्थिति में मरीज मेडिकेशन की मदद से ठीक हो सकता है।

डॉक्टर अखिलेश यादव ने आगे बताया कि, “स्टेज 4 में जोड़ों की समस्या गंभीर रूप ले लेती है तो ऐसे में डॉक्टर के पास सर्जरी के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचता है। टोटल नी रिप्लेसमेंट या आर्थ्रोप्लास्टी,  एडवांस अर्थराइटिस की समस्या के इलाज के सबसे लोकप्रिय विकल्प माने जाते हैं। इनकी जरूरत तभी पड़ती है, जब तीनों कंपार्टमेंट प्रभावित हो चुके हों। इसमें खराब जोड़ों को निकालकर उनकी जगह पर कृत्रिम जोड़ लगा दिए जाते हैं। कृत्रिम जोड़ प्लास्टिक और मेटल से बने होते हैं, जो बिल्कुल प्राकृतिक जोड़ों की तरह काम करते हैं। इस प्रक्रिया के बाद मरीज को रिकवर होने में कुछ हफ्तों का समय लग सकता है।”

-एजेंसी


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