आगरा। एसटीएफ और औषधि विभाग की संयुक्त छापेमारी में पकड़ी गई करोड़ों रुपये की कथित नकली दवाएं लैब में जाकर ‘असली’ कैसे हो गईं—यह सवाल अब आगरा के दवा बाजार में गंभीर संशय और गहरी चर्चा का विषय बना हुआ है। कंपनियों के प्रतिनिधियों ने मौके पर जिन दवाओं को फर्जी और संदिग्ध बताया था, वही दवाएं जांच रिपोर्ट में मानक के अनुरूप पाई गईं। 28 सैंपलों में से 27 के ‘पास’ हो जाने से न केवल विभाग की कार्रवाई पर सवाल उठ रहे हैं, बल्कि सैंपलिंग और जांच प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर भी बड़ा प्रश्नचिह्न लग गया है।
छापेमारी में कंपनियों ने मौके पर बताए थे नकली बैच
22 अगस्त को एसटीएफ और औषधि विभाग की टीम ने आगरा के प्रमुख मेडिकल गोदामों—हे मां मेडिकल, बंसल मेडिकल एजेंसी, श्री राधे मेडिकल एजेंसी, और मेट्रो मेडी पॉइंट सहित कई स्थानों पर छापा मारा था।
सबसे पहले पकड़े गए टेंपो से पुडुचेरी की मीनाक्षी फार्मा और श्री अयान फार्मा की अलेग्रा दवाएं मिलीं। दोनों कंपनियों के प्रतिनिधियों ने मौके पर ही स्पष्ट कहा था कि ये बैच नंबर फर्जी हैं और दवाएं उनकी फैक्ट्री में बनी ही नहीं।
इसके बाद पांच गोदामों से 72 करोड़ से अधिक की दवाएं जब्त की गई थीं। इनमें सन फार्मा, सनोफी, टॉरेंट, एमएसडी जैसी बड़ी दवा कंपनियों के लेबल वाली दवाएं शामिल थीं, जिन्हें कंपनियों के प्रतिनिधियों ने मौके पर नकली या संदिग्ध बताया था।
लैब रिपोर्ट ने पलट दी पूरी तस्वीर
लखनऊ की औषधि परीक्षण प्रयोगशाला में भेजे गए 28 सैंपलों में से 27 सैंपल सही पाए गए। सिर्फ सन फार्मा की एक दवा मानक के अनुरूप नहीं मिली।
यह परिणाम सबसे बड़ा सवाल खड़ा करता है— मौके पर नकली, लैब में असली कैसे?
बाजार में तीन बड़े संदेह चर्चा में
1. क्या मौके से लिए गए नमूने लैब तक पहुँचे ही नहीं?
सैंपलिंग प्रक्रिया पर सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि क्या वही दवाएं जांच को भेजी गईं जो मौके से जब्त की गई थीं?
2. क्या सैंपलों की अदला-बदली हुई?
बड़े दवा माफिया के दबाव में असली पैकिंग को सैंपल बनाकर भेजे जाने की आशंका जोर पकड़ रही है।
3. क्या लैब रिपोर्ट में हेराफेरी की गई?
स्वास्थ्य विशेषज्ञों और व्यापारियों को 27/28 सैंपल पास होना अत्यंत असामान्य लग रहा है।
अगर दवाएं असली थीं, तो बिक्री 40% क्यों गिरी?
कई दवा कंपनियों और बड़े डीलरों ने पिछले महीनों में शिकायत की थी कि आगरा बाजार में कुछ ब्रांडों की बिक्री 30–40% तक गिर गई है, जबकि उपभोक्ताओं की मांग बढ़ रही थी।
ऐसे में सवाल उठता है—
बिक्री क्यों घटी?
क्या बाजार में नकली दवाओं का बड़ा नेटवर्क सक्रिय था?
या अब रिपोर्ट ‘सही’ बताने की कोशिश कर रही है?
सबसे बड़ा सवाल — एक कारोबारी ने छापे के वक्त 1 करोड़ रुपये क्यों ऑफर किए?
छापेमारी के दौरान एक मेडिकल कारोबारी ने टीम को रोकने के लिए एक करोड़ रुपये का बैग देने की कोशिश की थी।
यदि दवाएं असली थीं, तो रिश्वत क्यों दी जा रही थी?
यह तथ्य पूरे प्रकरण को और संदिग्ध बनाता है।
आगरा केमिस्ट एसोसिएशन ने उठाई सीबीआई जांच की मांग
आगरा केमिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष आशु शर्मा ने कहा कि लैब रिपोर्ट आने में महीनों की देरी और उसके परिणाम संदेह उत्पन्न करते हैं।
उन्होंने कहा—“दवा माफिया, औषधि विभाग और कुछ कंपनियों की मिलीभगत की आशंका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पूरा मामला सीबीआई को सौंपा जाए।”
जनता के सामने अब भी अनुत्तरित हैं कई सवाल
मौके पर नकली बताई गई दवाएं लैब में जाकर असली कैसे हो गईं?
क्या सैंपलिंग में गंभीर गड़बड़ी हुई?
क्या जांच रिपोर्ट प्रभावित की गई?
क्या दवा माफिया ने दबाव डाला?
यह पूरा मामला सैंपलिंग प्रक्रिया, जांच प्रणाली और औषधि विभाग की भूमिका पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है। आगरा में कथित नकली दवाओं का ‘अचानक असली’ हो जाना अब एक निष्पक्ष, पारदर्शी और उच्चस्तरीय जांच की मांग को और मजबूती दे रहा है।

