गांव बदलेगा तो देश बदलेगा उदाहरण वाली एक ख़बर

अन्तर्द्वन्द

देशभर में कोरोना काल के दौरान हर लाइब्रेरी पर ताले लगा दिए गए, वाट्सएप यूनिवर्सिटी का ज्ञान बांटा गया तब पहाड़ों पर एक ग्राम प्रधान ऐसा भी आया है जिसने इसके ख़िलाफ़ लड़ने के लिए कमर कस ली है.

इसी ग्राम प्रधान ने बड़े शहरों में होने वाली परफॉर्मिंग आर्ट से भी अपने गांववासियों को रूबरू कराया है, वह कोरोना से बेरोजगार हुए गांव के युवाओं के लिए साइटसीइंग, बर्ड वॉचिंग और फॉरेस्ट वॉक के साथ ही परफॉर्मिंग आर्ट को आय के साधन के रूप में विकसित करना चाहते हैं।

पढ़िए देश बदलने का माद्दा रखने वाली यह ख़बर।

बंगाल या फिर केरल के गांवों में आप घूमेंगे तो आपको वहां पब्लिक लाइब्रेरी आसानी से दिख जाएंगी। बंगाल ने उस धरोहर को पीढ़ी दर पीढ़ी न केवल आगे बढ़ाया है, बल्कि निखारा भी है।

कोरोना काल में जब देशभर में शराब के ठेकों पर भारी भीड़ रही और लाइब्रेरी बंद रही ऐसे समय में पब्लिक लाइब्रेरी का प्रयोग उत्तराखंड में भी शुरू हो रहा है।

सुदूर गांवों में लोग खुद की पहल से लाइब्रेरी स्थापित कर रहे हैं। अब इस कड़ी में पौड़ी के एक ग्राम प्रधान ने दो कदम आगे बढ़कर अपने साथियों की मदद से गांव के आर्थिक हालातों को विकसित करने के उद्देश्य के अंतर्गत परफॉर्मिंग आर्ट से गांव को जोड़ने की दिशा में कदम आगे बढ़ाया है।

‘पाताललोक’ के कलाकार संग परफॉर्मिंग आर्ट

एक नवंबर को पौड़ी जिले के ‘केबर्स’ गांव में ग्राम प्रधान कैलाश सिंह रावत ने अपने साथियों की मदद से एक लाइब्रेरी की स्थापना की है। खास बात यह है कि इस लाइब्रेरी में विश्व साहित्य से जुड़ी किताबों के साथ ही हिंदी में उपलब्ध मशहूर कृतियों का संकलन बनाया गया है। बाल साहित्य को खास तौर पर लाइब्रेरी में तवज्जो दी गई है, लाइब्रेरी के उद्घाटन के मौके पर बड़ी संख्या में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा।

यह अपने किस्म का पहला आयोजन था। ‘प्रगतिशील पुस्तक केंद्र’ और ‘मुस्कान उत्तराखंड’ ने गांव की लाइब्रेरी तैयार करने के लिए अपनी टीम उपलब्ध करवाई। इस दौरान पीढ़ी दर पीढ़ी ‘रामलीला’ का मंचन देखते आ रहे ग्रामीणों के लिए पहली मर्तबा मशहूर रशियन कथाकार ‘अन्तोन चेखव’ की कहानी पर आधारित ‘नील सिमोन’ के नाट्य रूपांतरण के अडॉप्टेशन कॉमेडी म्यूजिकल प्ले ‘ये क्या मजाक है!’ का मंचन भी किया गया। ‘संवाद आर्ट ग्रुप’ की ओर से गांवों में परफॉर्मिंग आर्ट को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस नाटक को प्रस्तुत किया गया था।

परफॉर्मेंस को मिले लोगों के प्यार से शो के मुख्य किरदार अनूप गुंसाई भी खासे उत्साहित नजर आए। शो को लेकर उन्होंने कहा

— ‘ये एक प्रयोग था। प्ले को लेकर शहर की तैयार और वेल डेवलप्ड ऑडिएंस के मुकाबले हमारे सामने रॉ आडियंस थी, जो पहली मर्तबा किसी नाटक की गवाह बन रही थी, ये शानदार क्षण था। हमें दिन के उजाले में ये प्ले करना था, जिसका सीधा सा मतलब था आधा जादू जो लाइट पैदा करती है, वो विकल्प हमारे पास था ही नहीं।

बावजूद इसके जहां बतौर एक्टर हमें ऑडिएंस का रिएक्शन चाहिए था, वहां वो खुलकर रिएक्ट कर रहे थे। खासकर बच्चे.. उनके नैसर्गिक भाव उत्साहित करने वाले थे।’

अनूप गुंसाई इससे पहले भारत के कई शहरों में ‘ये क्या मजाक है!’ के अस्सी से भी ज्यादा शोज़ कर चुके हैं। अनूप मशहूर वेब सीरीज ‘पाताललोक’ समेत मेघना गुलजार की चर्चित फिल्म ‘तलवार’ और ‘बेवकूफियां’ में भी नजर आ चुके हैं।

अब होगा वाट्सएप यूनिवर्सिटी बनाम लाइब्रेरी

केबर्स गांव में लाइब्रेरी को ‘वीर चंद्र सिंह गढ़वाली पुस्तकालय’ नाम दिया गया है। लाइब्रेरी खोलने के फैसले को लेकर ग्राम प्रधान कैलाश सिंह रावत दो टूक कहते हैं— ‘हम व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के जरिए फैल रहे झूठ से परेशान हैं। गांव के लोग तथ्यों के साथ अपनी समझदारी विकसित कर सकें, इसके लिए जरूरी है कि वो किताबों के करीब जाएं।

आने वाला दौर इंटलेक्ट और डेटा का है। हम अपने इतिहास से वर्तमान को जोड़कर टूरिज्म का एक सस्टेनबल मॉडल भी तैयार कर रहे हैं। इसके लिए हम लॉकडाउन के बाद खाली हुए नौजवानों के साथ मिलकर परफॉर्मिंग आर्ट को गांव से कनेक्ट कर रहे हैं, ताकि हम ‘विलेज टूरिज्म’ के जरिए अपनी लोकल इकॉनमी को मजबूत कर सकें।’ वो कहते हैं जब प्रशासन बेरोजगारों की फौज को लेकर नहीं सोच रहा, तब हमें खुद ही आगे बढ़कर अपनी इस पीढ़ी को सपोर्ट करना होगा।

बहरहाल, गांव में हुए इस अनोखे आयोजन और किताबों की आवक से लोग उत्साहित नजर आ रहे हैं। गांव वालों के इस कदम की न केवल तारीफ हो रही है, बल्कि आसपास के गांवों में चर्चा भी शुरू हो गई है।

ग्राम प्रधान का क्या है प्लान

— गांव के खाली पड़े हुए घरों को रहने लायक बनाकर ‘विलेज टूरिज्म’ की दिशा में बढ़ना.
— साइटसीइंग, बर्ड वॉचिंग और फॉरेस्ट वॉक के साथ ही परफॉर्मिंग आर्ट को आय के साधन के रूप में विकसित करना.
— लंबे प्रवास के लिए लायब्रेरी समेत दुनिया के मशहूर नाटकों का मंचन समेत अन्य लोक कलाओं का प्रदर्शन.
— पढ़ने—लिखने की संस्कृति को बढ़ावा देना.
— इकॉनमी का सस्टेनेबल मॉडल तैयार करना, जिससे गांव में ही रोजगार सृजित हो सके

क्या है गांव की मौजूदा स्थिति

कोरोना के बाद बिगड़ी भारतीय अर्थव्यवस्था के चलते गांव के 18 से 25 साल तक के करीब 55 लड़के घर पर हैं। इनमें से कई लॉकडाउन से पहले शहरों में काम करते थे, लेकिन अब वो खाली हैं।

परफॉर्मिंग आर्ट के जरिए यदि गांव में टूरिस्ट पहुंचते हैं, तो इनमें से आधे युवाओं का रोजगार स्थानीय स्तर पर सृजन किया जा सकता है।

हिलांश टीम के साथ हिमांशु जोशी, उत्तराखंड.


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