आधुनिकता की अंधी दौड़ में हमने जितनी खराबियां बटोरी हैं उस कारण मानवी मन मस्तिष्क के सम्मुख आज अनेक समस्याएं तथा चुनौतियां उपस्थित हुई हैं। खासकर पाश्चात्य जीवन शैली और रहन सहन ने मानव को मानसिक तनाव एवं अंतहीन पीड़ा के दलदल में धकेला है। इसके साथ ही तकनीकी प्रगति के भयावह जानलेवा वेग के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना मानवी शरीर और मन के लिए असक्त प्रायः हो गया है।
इन सबका परिणाम हम सबके सामने है। हम चिड़चिड़ेपन, क्रोध, हिंसा, तिरस्कार, द्वेष, हताशा, निराशा, घृणा, कुंठा आदि से जनित मनस्थितियों से ग्रसित हो गये हैं। मजहबी कट्टरता के कारण सर्वत्र हिंसा दिखायी देती है। मनोजन्य दैहिक बीमारियों से मुक्त होने के लिए योग किस प्रकार प्रासंगिक ही नहीं अनिवार्य भी हैं। योग वैश्विक तनाव को दूर करने का सहज विज्ञान है। योग युवाओं को हिंसा से दूर रखेगा। योग को सिर्फ आसन समझना नासमझी ही होगी।
साँस के आने जाने का क्रम सबके लिए है। सूरज की गर्मी सबके लिए है। वृक्षों से मिलने वाला आक्सीजन सबके लिए है। तन मन को स्वस्थ एवं शांत रखना सबके लिए आवश्यक है। योग सबको जोड़ता है। योग अपने भीतर झांकने,विराट वैश्विक चेतना को अनुभव करने की खिड़की खोलता है। योग संवाद है अंतस चेतना से।
21 जून यदि सारी दुनिया के लिए अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस है तो इसके मायने भारत के लिए केवल रस्मी आयोजन से कहीं ज्यादा हैं। योग दिवस के जरिये सारी दुनिया ऐसी शुरुआत कर रही है जो हमारे मनीषियों की ‘सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे संतु निरामया’ के सूत्र की वैश्विक पुष्टि ही है। योग सनातन धर्म से उपजा है। योग विश्व को भारत की प्राचीन परंपरा का अमूल्य उपहार है। यह उन मान्यताओं और पद्धतियों पर दृढ़ता और पारदर्शिता से कदम बढ़ाने का अवसर है जिसका अर्थ दुनिया तो समझ रही है लेकिन हम भुला बैठे हैं।
योग व्यक्तिगत उन्नति का एक साधन तक सीमित न होकर समूची मानवता और आगे चलकर समस्त सृष्टि व्यापी बना है।इसकी स्वाभाविक अंतिम परिणिति सकल विश्व के कल्याण के लिए है। यही भाव ‘आत्मनो मोक्षार्थं जगद्हिताय च’ इस उक्ति में व्यक्त हुई है।
योग हमारी प्राचीन संस्कृति से जुड़ा है। सृष्टि के आदिकाल से ही योग की उपस्थिति मानी गयी है। भगवान शिव को योग का आदि देवता माना गया है। योग भारत की प्राचीन विधा है। वेदों और उपनिषदों में योग का वर्णन है। गीता के बड़े भाग में योग की उपस्थिति है।
योगः कर्मशु कौशलम्, (कर्मों की कुशलता ही योग है) गीता, समत्वं योग उच्यते (समत्व दृष्टिकोण ही योग है) गीता, मनः प्रशनम् योगः (मन की शांत अवस्था ही योग है) योग वशिष्ठ, योगः चित्तवृत्ति निरोधः (चित्तवृत्तियों का नियंत्रण ही योग है) पतंजलि सूत्र, इसी तरह ज्ञान को मुक्ति का योग बनाना ज्ञान योग , भक्ति के द्वारा मुक्ति भक्तियोग, कर्म की प्रधानता द्वारा मुक्ति कर्मयोग है।
आज योग का जो स्वरूप देश और दुनिया में बहुतायत से प्रचलित है उसका श्रेय जाता है आचार्य पतञ्जलि को। उन्होंने ही सबसे पहले योग विद्या को व्यवस्थित रूप दिया।
भारतीय राष्ट्र जीवन में योग की सघन उपस्थिति है। योग की उत्पत्ति संस्कृत के ‘युज’ से हुई है।योग के दो अर्थ हैं।जिसका पहला है अर्थ जोड़ना या जुड़ जाना तथा दूसरा है समाधि। जब तक हम स्वयं से नहीं जुड़ते समाधि तक पहुंचना असंभव है। योग का यही तो मूलाधार है कि जीवन भी उत्सव और मृत्यु भी उत्सव है।
योग विशुद्ध विज्ञान है जो समस्त मानव जाति के लिए है।योग तुम्हारे समग्र अस्तित्व से, तुम्हारी जड़ों से सम्बंधित है।योग अंतस की नव लयबद्धता है। योग दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है। योग का अभ्यास चित्त के स्वकेंद्रित भावों को उदार बनाता है और निजता के भाव का शमन कर समग्रता की ओर यानी व्यष्टि से समष्टि की ओर अग्रसर करता है। शरीर ,मन,बुद्धि और आत्मा में संतुलन है योग ।
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों का समुच्चय कर मनुष्यत्व से देवत्व और देवत्व से ईश्वरत्व की यात्रा योग है।योग साधारण व्यायाम नही है बल्कि योग का एक सामाजिक -सांस्कृतिक आयाम भी है। यह जीवन को रूपांतरित कर देता है।योग के सूत्र अद्भुत हैं। व्यक्ति को परमात्मा और प्रकृति से जोड़ने वाला यह एक ऐसा समीकरण है जो व्याधि और चिंताओं से मुक्ति की राह दिखाता है। और बताता है कि आनंद का स्रोत हमारे भीतर ही कहीं है।
शुरुआत बेशक शरीर के तल से होती है लेकिन प्राण ऊर्जा के प्रसार के साथ यह जीवन के तमाम पहलुओं को निखारता है। व्यायाम में ऊर्जा का उपयोग होता है। योग में ऊर्जा प्राप्त होती है। योग परिपूर्ण आनंद का भौतिक विज्ञान है। योग परम् स्वास्थ्य विज्ञान है और अनंत का दर्शन
अस्तित्व असीम और अनंत है। हम सब इकाई हैं और अस्तित्व सम्पूर्ण। इकाई होना दुःख है। और अनंत होना आनंद। योग इकाई में अनंत की अनुभूति है। मानव की समस्त क्रियाओं का उद्देश्य एक ही सुख या आनंद की प्राप्ति। विचार करें तो सम्पूर्ण सृष्टि ही आनंदमय है। सम्पूर्ण चराचर सृष्टि में एक ही आनंद का नाद गुंजायमान है।उस परम् चेतना का पर्याय है योग। कैवल्य प्राप्ति का माध्यम है योग।
21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाये जाने की मूल वजह है कि इस दिन ग्रीष्म संक्रान्ति होती है। इस दिन से सूर्य की गति की दिशा उत्तर से दक्षिण की ओर हो जाती है।यानी सूर्य जो अब तक उत्तरी गोलार्ध के सामने था इस दिन से दक्षिणी गोलार्ध की ओर बढ़ने लगता है। योग की दृष्टि से यह संक्रमण काल का रूपांतरण के रूप में काफी उत्तम है।
आज दुनिया योग के नाम को सार्थक करने जुड़ रही है।भारत की आध्यात्मिक परंपरा से उपजा योग दुनिया को संतुलित जीवन की राह दिखा रहा है। आज पूरा विश्व योग की शरण में आ रहा है। आइये हम उन सब अच्छी बातों के लिए एक हो जायें और मिलकर कदम बढ़ायें जिन बातों से हम सबका, पूरे संसार का भला है।
लेखिका- अदिति कात्यायन सृजन फॉउंडेशन (समग्र विकास को समर्पित संस्था) की अध्यक्ष हैं।