क्या ईवीएम के मुद्दे पर विपक्ष के साथ जनता आएगी?

अन्तर्द्वन्द

महाराष्ट्र के सोलापुर जिले मालशिरास विधानसभा का मारकडवाडी गांव दुनिया भर में लोकतंत्र बचाओ और ईवीएम के विरोध का प्रतीक बन गया। रविवार को यहां शरद पवार ने पहुंचकर ग्रामीणों के ईवीएम के बदले मतपत्र से खुद वोटिंग करके सच्चाई सामने लाने के अनोखे अभियान का समर्थन किया। वे उस प्रदर्शन में शामिल हुए जो जल्दी ही देश भर में एक स्वत: स्फूर्त आन्दोलन का रूप लेता दिख रहा है – “ ईवीएम हटाओ लोकतंत्र बचाओ !“

ईवीएम ने जो हाल फिलहाल दो राज्यों में अविश्वसनीय नतीजे दिए हैं उसके बाद महाराष्ट्र में उसके खिलाफ अपने आप जनता का आंदोलन खड़ा होना बताता है कि लोग अब वोट किसी को जीत किसी की को मानने को तैयार नहीं हैं। होना भी चाहिए। ऐसा कैसे हो सकता है कि आप किसी को एक रुपया दो और वह उसके बदले सामान किसी दूसरे को दे दे! आप कैसे स्वीकार करोगे?

महाराष्ट्र में आंदोलन शुरू हो चुका है। वहां के विपक्षी विधायकों ने भी विधानसभा सदस्य की शपथ लेने से इनकार कर दिया। शरद पवार की एनसीपी, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और कांग्रेस के सदस्यों ने महाराष्ट्र के नतीजों को स्वीकार करने से मना कर दिया। बहुत बड़ा मैसेज है। देश में नहीं दुनिया में चला गया कि भारत का लोकतंत्र खतरे में है। यहां की जनता का विश्वास पूरी तरह से ईवीएम से हट गया है। जनता वापस मतपत्र से मतदान की मांग करने लगी है।
हरियाणा में इससे भी अविश्वसनीय नतीजे आए थे।

महाराष्ट्र में तो फिर भी मुकाबला कांटे का बराबरी का थोड़ी लीड बताया जा रहा था। एक्जिट पोल भी इकतरफा नहीं थे। लेकिन हरियाणा में तो कांग्रेस की इकतरफा जीत बताई जा रही थी। यहां तक कि बीजेपी भी अपने जीत के दावे नहीं कर रही थी। एक्जिट पोल तो सब हंड्रेड परसेन्ट कांग्रेस की बड़ी जीत का एलान कर रहे थे। मगर वहां भाजपा ने सरकार बना ली। और कांग्रेस के नेता वैसे ही लड़ते रहे जैसे चुनाव के समय लड़ रहे थे। जनता में आक्रोश था मगर कांग्रेस के नेताओं में नहीं। ऐसा लग रहा था कि वे अपनी हार से खुश हैं। जैसा मारकडवाडी में हुआ कि वहां जीता हुआ शरद पवार का विधायक आंदोलन के साथ आया।

बिना राजनीतिक नेतृत्व के लोगों को हौसला नहीं मिलता है। मगर हरियाणा में कांग्रेस के नेता चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बनने के लिए लड़ रहे थे। और अब विपक्ष का नेता कौन बनेगा, कौन नहीं इस पर। कांग्रेस हाईकमान हरियाणा पर कोई एक्शन नहीं ले पा रही है। मान लिया कि चुनाव ईवीएम ने हरा दिया। तो फिर वहां महाराष्ट्र की तरह जनता की आवाज को बल देने का काम क्यों नहीं किया? ईवीएम के अलावा हरियाणा में कोई और दोषी है भी या नहीं? कांग्रेस ने कहा था कि हरियाणा की हार की जांच एक फैक्ट फाइडिंग कमेटी करेगी। क्या हुआ। दो महीने हो गए हैं। 60 दिन नतीजे आए हुए। कोई कारण नहीं पता। किसी पर कोई एक्शन नहीं। और जनता दुखी होकर, निराश होकर चुप बैठ गई उसकी आवाज कि वोट तो कहीं और दिया था पहुंचा कहीं और खामोश हो गई।

हरियाणा में कांग्रेस हाईकमान किससे डरता है, किसे पता? इससे पहले ठीक इन्हीं कारणों गुटबाजी से कांग्रेस राजस्थान हारी थी। मगर वहां भी कांग्रेस कोई कार्रवाई नहीं कर सकी। इस तरह राज्यों के नेताओं से डर डर कर पार्टी चलाने से कांग्रेस किस तरह मजबूत होगी पता नहीं। अभी सीडब्ल्यूसी में कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने बोल दिया कि हमारे ही लोग खुद पार्टी को हरवाते हैं। फिर भी कोई कार्रवाई नहीं। खरगे अगर अपनी बात नहीं सुने जाने पर अध्यक्ष पद से इस्तीफा भी दे दें तो भी किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। आखिर राहुल गांधी ने 2019 में दिया ही था। मगर कांग्रेसियों की गुटबाजी, काम न करने, दूसरे को करने न देने पर कोई असर नहीं हुआ था। भगवान की बात सबसे ज्यादा भाजपा वाले करते हैं। मगर पता नहीं उनकी पार्टी वह चलाता है या नहीं लेकिन यह पक्का है कि कांग्रेस को उपर वाला ही चलाता है। केवल पिछले दो सालों में ही हुए 17 राज्यों के हुए विधानसभा चुनावों में से 13 कांग्रेस बुरी तरह हारी है। लेकिन कहीं कोई जिम्मेदारी तय नहीं।

खैर! कांग्रेस की कहानी तो अनंत है। – – – कथा अनंता! बात मरकडवाडी की हो रही थी। जो उम्मीदों का केन्द्र है। वहां क्या हुआ इसे पहले थोड़ा समझ लेना जरूरी है।

महाराष्ट्र में 20 नवंबर को जब वोट डाले गए तो उसके पश्चिम में बसे सोलापुर जिले के मालशिरास विधानसभा क्षेत्र के मराकडवाडी गांव में भी लोगों ने मतदान किया। मगर 23 नवंबर को जब गिनती हो रही थी तो गांव को लोग चौंक गए। उन्होंने करीब करीब शत प्रतिशत वोट एनसीपी शरद पवार पार्टी के उत्तमराव जानकर को दिए थे। वे चुनाव जीते भी मगर उनके गांव के वोट बता रहे थे कि वह महायूति के पक्ष में गए हैं। गांव वाले इस पर विश्वास करने को तैयार नहीं थे। ऐसा अंधेर!

उन्होंने मतपत्र से दोबारा वोटिंग करके सच्चाई पता लगाने का निश्चय किया। क्या बुराई थी इसमें? क्या छात्र संसद, युवा संसद नहीं चलाई जाती? मॉक पोल ( नकली वोटिंग) तो मतदान से पहले चुनाव आयोग भी करता है। मतदान वाले दिन सुबह 5 बजे मॉक पोल होता है। प्रत्येक उम्मीदवार के लिए कुछ वोट डाले जाते हैं। फिर इनकी गिनती होती है।

गांव वालों ने मॉक पोल के लिए 3 दिसंबर का दिन तय किया। मगर यह क्या सरकार ने गांव में कर्फ्यू लगा दिया, लोगों पर एफआईआर कर दी, गिरफ्तार कर लिया। किस जुर्म में? सच्चाई का पता लगाने की कोशिश करने के लिए! सरकार ने चुनाव आयोग ने सोचा था मामला दब जाएगा। मगर उस विधानसभा से जीते हुए एनसीपी शरद पवार के उम्मीदवार ने इस्तीफा देने की पेशकश कर दी। शरद पवार वहां पहुंच गए। अब यह अभियान “ ईवीएम हटाओ लोकतंत्र बचाओ !” रुकने वाला नहीं लगता। कहीं जीते हुए विधायक को इस्तीफा देने की पेशकश करते हुए सुना है?

हरियाणा में जो भी गुटबाज नेता हैं क्या उनमें से किसी ने कहा कि चुनाव धांधलियों के खिलाफ हम इस्तीफा देते हैं। या हमारे परिवार से अगर कोई जीता है तो वह इस्तीफा देता है! कांग्रेस को महाराष्ट्र से चले इस आंदोलन मंध हरियाणा को भी साथ लाना होगा। एक बार फिर लिख दें कि हरियाणा की हार महाराष्ट्र के मुकाबले ज्यादा अविश्वसनीय थी। वहां ज्यादा प्रतिकार होना चाहिए था। मगर वहां कांग्रेस के नेता कुछ नहीं कर रहे। अभी भी जोड़ तोड़, एक दूसरे को गिराने में लगे हुए हैं।

कांग्रेस को दोनों मोर्चों पर काम करना था। मगर हरियाणा में एक पर भी नहीं है। पहला कांग्रेस सुधार और दूसरा ईवीएम के खिलाफ मोर्चा।

लेकिन महाराष्ट्र ने एक उम्मीद जगाई है। अब विपक्ष इसे किस तरह परिणाम तक पहुंचाता है यह महत्वपूर्ण है। मुश्किल लड़ाई है। मगर ऐसी लड़ाई जिसमें जीत दिख रही है। दूर! बहुत संघर्ष भरे रास्ते से। मगर दिख जीत ही रही है। इसमें हार की कोई गुंजाइश नहीं है।

ईवीएम के मुद्दे पर जनता साथ आएगी। और विपक्ष की आधी जीत तो यही होगी। जनता किसी बात पर तो आगे बढ़े! और बाकी आधी जीत इस बात पर निर्भर करेगी कि विपक्ष कितना एकजुट रहकर इस लड़ाई को लड़ता है। प्लान करके।

-शकील अख्तर जी के फेसबुक पेज से साभार सहित


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