अंधेरे में भविष्य की तलाश में: धार्मिक स्थलों पर रार, चुप क्यों है मोदी सरकार

अन्तर्द्वन्द

देश से क्या छुपाना चाहते हैं? नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और नई बनी सांसद एवं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी को संभल जाने से क्यों रोका जा रहा है? भाईचारे का पैगाम देने, शांति की अपील करने, पुलिस गोली से मारे गए लोगों के परिवारों का सांत्वना देने अगर कोई संभल जाना चाहता है तो इससे क्या परेशानी है?

संभल में जो हुआ वह बहुत भयानक है। पुलिस की गोलियों से पांच युवा मारे गए। कई घायल हैं। सैंकड़ों लोगो के खिलाफ पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर रखी है। उनकी कोई बात देश के सामने नहीं आ पा रही है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मंगलवार को लोकसभा में कहा कि संभल की घटना सोची समझी साजिश है। अफसरों पर एफआईआर होना चाहिए। वहां के भाईचारे को गोली मारने का काम हुआ।

अखिलेश को भी संभल नहीं जाने दिया गया। उत्तर प्रदेश के कांग्रेस के नेताओं को भी नहीं। और अब राहुल व प्रियंका को नहीं। सवाल वही है कि क्यों?

शायद इसलिए कि राहुल मणिपुर गए थे तो दुनिया को मालूम पड़ा कि वहां साथ साथ रह रहे दो समुदायों को किस तरह विभाजित कर दिया गया है। कैसी भयानक हिंसा हो रही है वहां। अभी मणिपुर के हाईकोर्ट से रिटायर हुए जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल ने कहा कि आज स्थिति ऐसी है कि हिल में मैतेई नहीं है और वैली में कुकी नहीं है। पूरी तरह दो समुदाय विभाजित हो गए। राहुल ने भी यही कहा था कि जब वे मैतेई समुदाय के लोगों से मिलने जा रहे थे तो उनसे कहा गया कि साथ में कोई कुकी नहीं होना चाहिए। और ऐसे ही जब कुकी समुदाय के पास जा रहे थे तो कहा गया कि कोई मैतेई साथ नहीं होना चाहिए।

और ऐसी हिंसा, विभाजन, तनाव के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी एक बार भी वहां नहीं गए हैं।

राहुल ने खुद ने कहा कि उनके वहां जाने से सच सामने आया। ऐसे ही राहुल को हाथरस जाने से रोका जा रहा था। वहां एक दलित लड़की के सामुहिक बलात्कार और हत्या के बाद लड़की का शव भी परिवार को नहीं दिया गया था। रातों रात पुलिस ने उसे जला दिया। राहुल को एक बार नहीं जाने दिया। धक्का देकर सड़क पर गिरा तक दिया। लेकिन फिर राहुल दूसरी बार गए और पीड़ित परिवार से मिले। वहां भी पत्रकारों सहित किसी को नहीं जाने दिया जा रहा था। राहुल और प्रियंका के जाने के बाद ही वहां का सच भी सामने आया।

अब उत्तर प्रदेश सरकार संभल का सच छुपाने के कोशिश कर रही है। वहां जिन दो युवकों ने मीडिया को बताया था कि वे किस तरह पुलिस की गोली से घायल हुए और उन पर झूठे बयान देने का दबाव बनाया जा रहा है उन्हें भी पुलिस ने अस्पताल से गिरफ्तार कर लिया।

राहुल गांधी पूछ रहे हैं कि मुझे क्यों रोका जा रहा है? लोगों से मिलने जाना उनके दुःख दर्द बांटना किस कानून में गलत है? नेता प्रतिपक्ष होने के नाते मेरा संवैधिनक अधिकार है कि मैं संभल जाऊं। गाजीपुर बार्डर पर जहां राहुल को रोका गया उन्होंने पुलिस वालों से कहा कि मैं अकेला जाने को तैयार हूं। पुलिस के साथ चलने को तैयार हूं।

लेकिन नेता प्रतिपक्ष को नहीं जाने दिया जा रहा। संसद चल रही है। वहां सवाल पूछा जा रहा है कि नेता प्रतिपक्ष को किस अधिकार से रोका जा रहा है। मगर कोई जवाब नहीं।

यह वही है कि राहुल मणिपुर गए तो वहां का सच सामने आया। हाथरस गए तो वहां का। लखीमपुर खीरी जहां उस समय के केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र के बेटे ने अपनी जीप से किसानों को रौंद दिया था। प्रधानमंत्री मोदी ने कोई कार्रवाई नहीं की। टेनी मंत्री बने रहे। मगर वहां गए तो लोकसभा चुनाव में जनता ने उन्हें हरा कर मंत्री पद छिनवा दिया।

असर होता है। इसलिए राहुल को अब संभल जाने से रोका जा रहा है। मगर क्या राहुल को रोके जाने से मामला दब जाएगा? गाजीपुर बार्डर पर पुलिस की दीवार खड़ी कर दी। लेकिन क्या वह उस मैसेज को रोक पाई जो पूरे यूपी सहित देश दुनिया में चला गया कि संभल में कुछ बड़ी साजिश जैसा अखिलेश यादव ने कहा हुई है। जिसे बाहर आने से रोकने के लिए यूपी सरकार अखिलेश राहुल किसी को संभल नहीं जाने दे रही।

यूपी से ही सांसद इमरान मसूद ने बहुत बड़ा सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि मुसलमान घर में रहेंगे तो पुलिस मारेगी और बाहर निकलेंगे तो भी। यह कैसी कानून व्यवस्था है? बहराइच में घर में थे तो मारा और संभल में घर में रहे तो मारा। मुसलमान क्या करे? संभल में एक बार सर्वे हुआ तो सब शांति पूर्ण रहा। लेकिन दूसरी बार सुनियोजित तरीके से भड़काऊ नारे लगाते हुए आदमी भेजकर माहौल बिगाड़ा गया। सहारनपुर से लोकसभा सदस्य इमरान मसूद ने भाजपा से अपील की कि देश को मत जलाओ। नफरत से कुछ नहीं निकलने वाला। इस आग में सब झुलस जाएंगे।

देश में हर तरफ से इस पर सवाल हो रहे हैं। जस्टिस काटजू से लेकर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष दुष्यंत दवे द्वारा। सब को चिंता है कि यह जो भय और आतंक का माहौल बनाया जा रहा है वह देश को किस और ले जाएगा।

हालत इतनी गंभीर हो गई है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट की डबल बैंच के दोनों जजों ने फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबेर की उस याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ की गई यूपी पुलिस की एफआईआर पर सवाल उठाए थे। इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि एक साथ दोनों जज सुनवाई करने से अलग हो जाएं! इतना डर! सोचिए अगर हाई कोर्ट के जजों पर इतना दबाव और डर है तो क्या होगा?

बावरी मस्जिद राम मंदिर के विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह एक अपवाद है इसके बाद किसी उपासना स्थल पर सवाल नहीं होगें। उस फैसले में यह भी कहा था कि मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाने का कोई सबूत नहीं है। मगर जनभावनाओं को देखते हुए वहां मंदिर बनाने का फैसला दिया जाता है। मुसलमान मान गए थे। फैसले के बाद कोई आपत्ति नहीं की गई थी। और पहले भी लिखा है फिर बताते है कि मुसलमानों के पास जब मंदिर के लिए चंदा लेने आए तो मुसलमानों ने दिल खोलकर दिया। कई लोग इस विवाद को करने आए थे मुसलमान मना कर रहे हैं। मगर वह कंट्रोवर्सी भी नहीं हो सकी। देश में अमन भाईचारे के लिए बावरी मस्जिद के फैसले को मुसलमानों ने स्वीकार किया था।

मगर अब जैसा कि अखिलेश ने लोकसभा के अपने प्रभावशाली भाषण में कहा कि हर मस्जिद दरगाह को खोदेगे तो देश के भाइचारे को खोद दोगे। 1991 का उपासना स्थल एक्ट कहता है कि 1947 की स्थिति बरकरार रहेगी। जो जहां धार्मिक स्थल है वहीं रहेगा। मगर अभी सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए चीफ जस्टिस चन्द्रचुड़ ने जो कहते हैं कि उनका काम विपक्ष का नहीं था मतलब सत्ता पक्ष का था 2022 में ज्ञानवापी मामले में एक टिप्पणी करके 1991 के शांति और सौहार्द के कानून को कमजोर कर दिया। कांग्रेस की वर्किंग कमेटी की मीटिंग में कहा गया कि चन्द्रचुड़ ने देश को अशांति की तरफ धकेल दिया। चन्दचुड़ ने कहा कि 47 के बाद भी धार्मिक चरित्र बदल सकता है।

उसी का फायदा उठाकर अब हर मस्जिद, दरगाह पर सवाल उठाए जा रहे हैं। क्या होगा? बहुत चिन्ताजनक सवाल है। देश को नफरत की आग में झौंकने के बाद क्या बचेगा यह उससे भी खतरनाक सवाल है। कौन देगा इसके जवाब?
सरकार? मगर वह तो इसका फायदा उठाने में व्यस्त है। उसे साम्प्रदायिक ध्रुविकरण और बढ़ता दिख रहा है। देश का क्या होगा उसे चिंता नहीं है। वोट बढ़ेंगे उसका कन्सर्न बस यही है।

एक विपक्ष है जो इसके लिए लड़ रहा है। देश में शांति सद्भाव उसकी प्राथमिकता है। और एक न्याय व्यवस्था है, जिससे अभी भी आस टूटी नहीं है। बाकी अंधेरा और घना होता जा रहा है। सत्ताधारी पार्टी को इसमें ही अपना भविष्य दिख रहा है।

अंधेरे में भविष्य! मोदी का एक बिल्कुल नया खतरनाक प्रयोग। और दूसरी तरफ रोशनी की कुछ कोशिश में विपक्ष और कुछ उम्मीद न्यायपालिका से।

-शकील अख्तर


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