जी-7 देशों की ओर से रूस के तेल की कीमत 60 डॉलर प्रति बैरल तक सीमित करने को लेकर हुए समझौते के बाद सोमवार को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दामों में उछाल देखा गया.
अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में बिकने वाले ब्रेंट क्रूड की कीमत एशियाई कारोबार में करीब एक फ़ीसदी तक बढ़ गई.
पश्चिमी देशों ने यूक्रेन पर हमले के बाद रूस पर दबाव बनाने के मक़सद से ये समझौता किया है, जो सोमवार से प्रभावी होगा.
घटती विकास दर और बढ़ती ब्याज़ दरों के बीच ओपेक प्लस देशों की ओर से तेल उत्पादन घटाने के फ़ैसले पर अडिग रहने के बाद ये समझौता किया गया है.
ओपेक प्लस 23 तेल नियार्तक देशों का एक समूह है, जिसमें रूस भी शामिल है. अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कितना कच्चा तेल बेचा जाना है, ये तय करने के लिए समूह तय अंतराल पर मिलता रहता है.
बीते सप्ताह जी-7 और ऑस्ट्रेलिया ने एक संयुक्त बयान जारी कर कहा था कि रूसी तेल की कीमत पर 60 डॉलर प्रति बैरल की सीमा सोमवार से लागू होगी. इस समूह का कहना है कि ये क़दम यूक्रेन पर हमले के बाद रूस को फ़ायदा कमाने से रोकेगा.
इस समझौते का सीधा अर्थ ये है कि 60 डॉलर प्रति बैरल या उससे कम कीमत पर खरीदे गए रूसी तेल को ही जी-7 और यूरोपिय संघ के टैंकरों के ज़रिए भेजा जा सकेगा. साथ ही इसी कीमत पर रूसी तेल खरीदने वालों को बीमा कंपनी और क्रेडिट देने वाले संस्थानों से मदद की मंज़ूरी होगी.
इस क़दम से रूस के लिए अपना तेल ऊंचे दामों पर बेचना और मुश्किल हो जाएगा क्योंकि बहुत सी बड़ी शिंपिंग और बीमा कंपनियां जी-7 देशों में हैं.
जी-7 दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह है. इसमें कनाडा, फ़्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं.
Compiled: up18 News
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