पाकिस्तान में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के 17 जजों को सफेद पाउडर के साथ मिले धमकी भरे पत्रों ने हलचल पैदा कर दी है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इस मामले में बयान देते हुए मामले की तह तक जाने की बात कही है। वहीं देश की जांच एजेंसियां ने भी कार्रवाई करते हुए इन पत्रों को भेजने वालों को बेनकाब करने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। जांचकर्ताओं ने पाया है कि रावलपिंडी के जनरल पोस्ट ऑफिस से इन चिट्ठियों को इस्लामाबाद भेजा गया था लेकिन परिसर में सीसीटीवी कैमरों ना होने की वजह से इन्हें पोस्ट करने वालों की तक पहचान नहीं हो पाई है। ऐसे में इस मामले की गुत्थी उलझती जा रही है।
पाकिस्तानी अखबार डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक अदालत के कर्मचारियों ने पत्र खोले जाने के बाद लिफाफे में संदिग्ध सफेद पाउडर देखा था। कर्मचारियों ने इस पाउडर को ‘एंथ्रेक्स’ कहा था, जो एक जहरीला एक हानिकारक पदार्थ है। इसके बाद इन पत्रों को जांच के लिए भेजा गया तो फोरेंसिक विश्लेषण से पता चला है कि न्यायाधीशों को भेजे गए पत्रों में एंथ्रेक्स नहीं बल्कि आर्सेनिक के अंश थे।
प्रधानमंत्री शरीफ ने दिया है बयान
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने 17 न्यायाधीशों को मिले ‘जहरीले पत्रों’ के रहस्य को सुलझाने की बात कही है। गुरुवार की कैबिनेट बैठक में शहबाज शरीफ ने कहा कि सरकार वास्तविकता को उजागर करने के लिए जिम्मेदारी की भावना के साथ मामले की जांच कर रही है। पुलिस का एंटी टेरर डिपार्टमेंट इन पत्रों के पीछे के लोगों का पता लगाने के अपने प्रयासों में लगी है। एजेंसियों को हमलावरों को पकड़ने के लिए लिफाफे पर उंगलियों के निशान का पता लगाने का भी निर्देश दिया गया है।
लाहौर हाईकोर्ट के न्यायाधीशों द्वारा प्राप्त पत्रों के मामले में गृह विभाग की बैठक में विदेशी एजेंसियों की भूमिका से इनकार नहीं किया गया और जांच का दायरा बढ़ाने का फैसला किया गया। इन दस्तावेजों को भेजने के पीछे के दोषियों और उनके उद्देश्यों का पता लगाने के लिए डीआईजी की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का गठन किया। साथ ही एजेंसियों ने निर्णय लिया है कि न्यायाधीशों को संदिग्ध पत्र या लिफाफे खोलने से पहले स्कैन करने के लिए स्कैनिंग मशीनें प्रदान की जाएंगी। यह भी निर्णय लिया गया कि लाहौर उच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों के स्टाफ सदस्यों को संदिग्ध पत्रों और लेखों को सूचित तरीके से संभालने के लिए उपकरणों से लैस करने के अलावा प्रशिक्षण की पेशकश की जाएगी।
डॉन ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को मिले पत्रों की डिलीवरी के बाद बनी जांच टीम यह स्थापित करने में कामयाब रही कि उन्हें रावलपिंडी जीपीओ से भेजा गया था। लेटरबॉक्स की पहचान हो गई है लेकिन भेजने वाले की पहचान अभी तक नहीं हो पाई है। यह पता लगाना मुश्किल है कि ये पत्र डाकघर में कौन लाया क्योंकि भीड़ भरे परिसर के अंदर कोई कैमरे नहीं लगे थे। जांच टीम ने आसपास के कार्यालयों और इमारतों से सीसीटीवी कैमरों से फुटेज जमा कर रही है।
-एजेंसी