सौर मंडल के दूसरे छोर पर गैसों से बने दो विशाल ग्रह हैं- यूरेनस और नेपच्यून. नेपच्यून धरती से सबसे ज़्यादा दूर है, जहां तापमान शून्य से 200 डिग्री सेल्सियस नीचे रहता है. यहां जमी हुई मीथेन के बादल उड़ते हैं और हवाओं की रफ़्तार सौरमंडल के दूसरे किसी भी ग्रह से ज़्यादा होती है.
नेपच्यून की सतह क़रीब-क़रीब पूरी तरह समतल है. यहां मीथेन की सुपरसोनिक हवाओं को रोकने के लिए कुछ भी नहीं है, इसलिए उनकी रफ़्तार 1,500 मील प्रति घंटे तक पहुंच सकती है.
नेपच्यून के वायुमंडल में संघनित कार्बन होने के कारण वहां जाने पर आपके ऊपर हीरे की बारिश भी हो सकती है लेकिन आपको गिरते हुए बेशकीमती पत्थरों से चोटिल हो जाने की चिंता नहीं करनी होगी, क्योंकि ठंड के कारण आप पहले ही जम चुके होंगे.
गौरतलब है कि मौसम से हमें अक्सर शिकायत रहती है. धरती पर मौसम की चरम स्थितियां (बाढ़, सूखा, गर्मी, सर्दी) बढ़ने के कारण ये शिकायतें स्वाभाविक भी लगती हैं लेकिन क्या हो अगर हम वीकेंड की छुट्टी बिताने ऐसी जगह चले जाएं जहां 5,400 मील प्रतिघंटे की रफ़्तार से हवा चलती हो या जहां तापमान इतना ज़्यादा हो कि जस्ता भी पिघल जाए?
मौसम अच्छा हो या बुरा, यह सिर्फ़ हमारे ग्रह की विशेषता नहीं है. दूसरे ग्रहों का भी अपना मौसम है और अंतरिक्ष में मौसम कहीं ज़्यादा भयानक है.
शुक्र पर रहना असंभव
पड़ोसी ग्रह शुक्र से शुरुआत करते हैं, जहां रहना सौरमंडल के दूसरे किसी भी ग्रह से मुश्किल है. शुक्र को बाइबिल में नरक कहा गया है.
शुक्र पर वायुमंडल की मोटी परत है, जिसमें कार्बन डायऑक्साइड की अधिकता है. इस ग्रह पर वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी के मुक़ाबले 90 गुणा ज़्यादा है.
कार्बन डायऑक्साइड से भरा वायुमंडल सूरज की गर्मी को फंसा लेता है, जिससे ग्रह पर तापमान 460 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है इसलिए अगर आपने शुक्र ग्रह पर पैर रखा तो कुछ ही सेकेंड में आप उबलने लगेंगे.
अगर यह पर्याप्त तकलीफ़देह नहीं लगता तो यहां की बारिश के बारे में सुनकर ज़रूर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे.
शुक्र ग्रह पर सल्फ्यूरिक एसिड की बारिश होती है जो अंतरिक्ष में घूमने निकले किसी भी सैलानी की त्वचा को बुरी तरह जला सकती है.
शुक्र की सतह पर अत्यधिक तापमान के कारण अम्लीय बारिश की बूंदें सतह तक पहुंचने से पहले ही भाप बनकर उड़ जाती हैं.
हैरानी की बात है कि शुक्र ग्रह पर “बर्फ” भी है, लेकिन उससे आप गोले बनाकर नहीं खेल सकते. ये शुक्र के वायुमंडल में भाप बनकर उड़ी धातुओं के ठंडा होने से बने अवशेष हैं.
धरती जैसी जगह
टॉम लॉडेन वारविक यूनिवर्सिटी में शोध कर रहे हैं. उनकी विशेषज्ञता अंतरिक्ष के मौसम विज्ञानी के रूप में है. दूसरे ग्रहों पर वायुमंडल की स्थितियों के बारे में शोध करना ही उनका काम है.
वह कहते हैं, “धरती के अलावा इस सौरमंडल में अगर कोई जगह रहने लायक है तो वह है शुक्र ग्रह का ऊपरी वायुमंडल.”
“सल्फ्यूरिक एसिड के बादलों के ऊपर एक जगह ऐसी है, जहां का दबाव लगभग हमारे ग्रह जितना ही है.”
“आप उस वातावरण में सांस नहीं ले पाएंगे, लेकिन आप किसी बड़े हॉट-एयर बैलून या धरती की हवा से भरी किसी दूसरी चीज में होने की कल्पना कर सकते हैं. अगर आपके पास ऑक्सीजन मास्क हो तो आप टी-शर्ट और शॉर्ट्स में भी आराम से रह सकते हैं.”
इस जगह का तापमान भी धरती पर कमरे के अंदर के तापमान के बराबर है, यानी अगर आप इस हॉट-एयर बैलून में ऑक्सीजन मास्क लगाकर बैठे हैं तो बिना किसी ख़तरे के शुक्र ग्रह का जायजा ले सकते हैं.
लॉडेन की विशेषज्ञता सौरममंडल से बाहर के ग्रहों के बारे में है, ख़ासकर उस खगोलीय पिंड के बारे में जिसका नाम एचडी 189733बी है.
सबसे भयंकर मौसम
पृथ्वी से 63 प्रकाश वर्ष दूर गहरे नीले रंग के इस आकाशीय पिंड पर मौसम का सबसे भीषण रूप दिखता है.
देखने में यह ग्रह ख़ूबसूरत लग सकता है, लेकिन इसका मौसम बहुत ही भयानक है.
यहां कभी-कभी 2 किलोमीटर प्रति सेकेंड या 5,000 मील प्रतिघंटे की रफ़्तार से हवाएं चलती हैं (धरती पर सबसे तेज़ तूफान 253 मील प्रतिघंटे का मापा गया है).
यह ग्रह अपने तारे से हमारे मुक़ाबले 20 गुणा ज़्यादा नजदीक है, इसलिए यह धरती से बहुत गर्म है.
इस ग्रह के वायुमंडल का तापमान 1,600 डिग्री सेल्सियस है- जो पिघले हुए लावा का तापमान होता है.
लॉडेन कहते हैं, “हमारे ग्रह के पत्थर वहां पिघलकर तरल या गैस में बदल जाएंगे.”
इस ग्रह पर पिघले हुए कांच की बारिश भी होती है, क्योंकि हवा के साथ उड़ी रेत (सिलिकॉन डायऑक्साइड) गर्मी से पिघलकर कांच में बदल जाती है.
लॉडेन का कहना है कि धरती के आकार और द्रव्यमान के ग्रह भी हैं जो छोटे ‘एम ड्वार्फ’ या ‘रेड ड्वार्फ’ तारे की परिक्रमा करते हैं.
धरती जैसे ग्रह
‘एम ड्वार्फ’ या ‘रेड ड्वार्फ’ तारे सबसे छोटे और ठंडे तारे हैं और सबसे आम भी. लेकिन उनके ग्रह रहने लायक हैं कि नहीं, यह अलग सवाल है.
ग्रहों पर गर्मी हो और उसकी सतह पर पानी तरल अवस्था में रहे, इसके लिए ज़रूरी है कि वह अपने तारे के करीब रहे.
करीब रहने पर वह ग्रह अपने तारे से उसी तरह जुड़ जाता है जैसे चांद धरती के साथ जुड़ा है.
इसका मतलब है कि ग्रह के एक हिस्से में दिन रहेगा और दूसरे हिस्से में हमेशा रात रहेगी.
लॉडेन कहते हैं, “जब आप कंप्यूटर मॉडल बनाते हैं तो आप देखते हैं कि दिन वाले हिस्से से हरिकेन जैसी चीजें रात वाले हिस्से में जा रही हैं.”
दिन वाले हिस्से का तरल पानी गर्मी से उड़कर बादल बन जाएगा. हवा उसे बहाकर रात वाले हिस्से में ले जाएगी और वहां ठंड के कारण बर्फबारी होगी.
आपको ग्रेह के एक तरफ रेगिस्तान मिलेगा और दूसरी तरफ आर्कटिक.
वास्तव में अपने घर (धरती) जैसी कोई जगह नहीं है.
-BBC