सिंगापुर की चौड़ाई महज 48 किलोमीटर में सिमटी हुई है. यह देश न्यूयॉर्क के आधे क्षेत्रफल से भी छोटा है. आबादी भी महज 55 लाख है. प्रति व्यक्ति आय के मामले में इस इलाक़े का कोई देश सामने नहीं टिकता है. दक्षिण-पूर्वी एशिया में सिंगापुर एकमात्र देश है जहां चीनी मूल के नागरिक सबसे ज़्यादा हैं.
आज यानी एक जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिंगापुर पहुंच रहे हैं. सिंगापुर ने बहुत छोटे वक़्त में तरक्की का जो मुकाम हासिल किया है वो किसी भी देश के लिए प्रेरणा हो सकता है.
मोदी हर समस्या का समाधान विकास बताते हैं और विकास कैसे किया जाता है इसे सीखने के लिए सिंगापुर से बेहतर कोई मिसाल नहीं हो सकता.
इस दौरे के बहाने हम बता रहे हैं कि सिंगापुर कभी मलेशिया का हिस्सा हुआ करता था और वो आज की तारीख़ में मलेशिया को बहुत पीछे छोड़ चुका है. आख़िर मलेशिया से सिंगापुर क्यों अलग हुआ था? या मलेशिया ने सिंगापुर को अलग करने का फ़ैसला किया था?
सिंगापुर का मलेशिया में आना
9 अगस्त 1965 को सिंगापुर मलेशिया से अलग होकर एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र बना था. सिंगापुर का मलेशिया से अलगाव के मुख्य कारण आर्थिक और राजनीतिक मतभेद थे.
इसी मतभेद के कारण 1964 में जुलाई से सितंबर के बीच नस्ली हिंसा भी भड़की थी. मलेशिया से अलग होने की घोषणा करने जब सिंगापुर के पहले प्रधानमंत्री ली कुआन यी सामने आए तो वो भावुक हो गए थे.
वो प्रेस कॉन्फ़्रेंस को संबोधित करते हुए रो पड़े थे. उन्होंने कहा था, ”मलेशिया के साथ हम 23 महीने से भी कम समय तक रहे.”
मलेशिया सिंगापुर में टकराव
प्रधानमंत्री ली कुआन यी ने लंदन में 9 जुलाई 1963 को मलेशिया अग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किया था. इस समझौते के तहत फेडरेशन ऑफ मलेशिया का गठन सामने आया जिसमें सिंगापुर, मलया, सारावाक, उत्तरी बोर्नियो शामिल थे.
31 अगस्त 1963 को मलेशियाई संघ अस्तित्व में आया. नवंबर 1961 के श्वेत पत्र में मलेशिया में सिंगापुर के शामिल होने की शर्तें प्रकाशित हुई थीं. वह श्वेत पत्र एक दस्तावेज़ है जिसमें सिंगापुर को मलेशिया में शामिल करने को लेकर मलेशियाई प्रधानमंत्री तुंकु अब्दुल रहमान और ली के बीच हुई बातचीत का विस्तार से ज़िक्र है.
सिंगापुर का मलेशिया में विलय स्वायतत्ता की कुछ शर्तों पर हुआ था. ये शर्तें थीं संघीय सरकार में सिंगापुर का राजनीतिक प्रतिनिधित्व, सिंगापुर की नागरिकता और संघीय सरकार में सिंगापुर के राजस्व के योगदान की भूमिका.
शुरू में लंदन में हुए समझौते पर हस्ताक्षर के बाद इन मुद्दों को लेकर मलेशिया और सिंगापुर के बीच बातचीत होनी शुरू हुई. कुछ मुद्दों पर दोनों खेमों के बीच विवाद की स्थिति थी.
इनमें दो सबसे अहम थे और वो थे दोनों के बीच एक कॉमन मार्केट और संघीय सरकार में सिंगापुर के राजस्व का हिस्सा. हालांकि इन मुद्दों पर भी दोनों की सहमति बन गई और सिंगापुर ने मलेशिया के भीतर रहकर अपनी यात्रा शुरू कर दी.
जब फेडरेशन ऑफ मलेशिया के गठन को लेकर दोनों देशों के बीच समझौता हो रहा था तब भी दोनों देशों के नेताओं को मालूम था कि राजनीतिक और आर्थिक मतभेदों को रातों-रात नहीं मिटाया जा सकता है.
दोनों देशों के बीच कॉमन मार्केट और कुआलालंपुर को लेकर विवाद शुरू हुआ. कई इलाक़ों के विकास को लेकर भी विवाद की स्थिति बनने लगी.
भारी मन से अलगाव
दूसरी तरफ़ राजनीतिक मोर्चे पर भी कई तरह के असंतुलन खुलकर सामने आने लगे थे. दोनों देशों में मलय और चीनी आबादी का असंतुलन था.
मलेशिया की दोनों बड़ी पार्टियां पीपल्स एक्शन पार्टी (पीएपी) और यूनाइटेड मलय नेशनल ऑर्गेनाइजेशन ने दोनों समुदायों पर आरोप-प्रत्यारोप लगाना शुरू कर दिया. यह दोषारोण नफ़रत के स्तर तक बढ़ता गया और 1964 में 21 जुलाई से दो सितंबर के बीच नस्ली हिंसा भड़क गई.
दोनों पार्टियों के बीच दो सालों के लिए सुलह पर समझौता हुआ, लेकिन बाद में फिर हिंसा भड़क गई. मलेशिया में नारा लगना शुरू हो गया कि मलेशियाई लोगों का मलेशिया है. इससे ली कुआन यी को काफ़ी निराशा हुई.
साल 1965 के उतरार्ध में मलेशिया में राजनीतिक उठापटक कुछ कम होने के संकेत दिखे. प्रधानमंत्री तुंकु अब्दुल रहमान ने सांप्रदायिक संघर्ष नहीं होने देने का वादा किया. जून 1965 में राष्ट्रमंडल देशों के प्रधानमंत्रियों के सम्मेलन में अब्दुल रहमान लंदन गए थे.
इसी लंदन दौरे पर रहमान ने कहा कि सिंगापुर का अलग होना ही एक विकल्प है. लंदन से पांच अगस्त को तुंकु मलेशिया लौटे और 9 अगस्त को सिंगापुर के अलग होने की घोषणा कर दी गई.
ली भारी मन से मलेशिया से अलग हुए थे. इसकी झलक उनकी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में भी साफ़ दिखी थी. उनकी आंखें नम थीं. दोनों पक्षों का मानना था कि अगर यथास्थिति रही को काफ़ी ख़ून-ख़राबा होगा.
दोनों पक्षों ने अलगाव के समझौते पत्र पर नहीं चाहते हुए भी हस्ताक्षर किया था. मलेशिया की संसद में सिंगापुर के अलगाव पर संविधान संशोधन बिल पास किया गया और यह बिल 126-0 से पास हुआ था.
इसमें कहा गया कि न चाहते हुए भी सिंगापुर को मलेशिया से अलग करने का फ़ैसला किया जा रहा है.
-BBC