हम सब जब भी हॉलिडे प्लान करते हैं तो इस बात का खास ध्यान रखते हैं कि सबसे अच्छा स्टे और फूड हमें कहां मिलेगा…खाना-पीना छुट्टियों के दौरान किया जाने वाला सबसे इंपॉर्टेंट ऐक्ट होता है।
फिर बात दोस्तों के साथ छुट्टी पर जाने की हो या फिर फैमिली ट्रिप पर जाने की। लेकिन जो लोग रिस्ट्रिक्टेड डायट लेते हैं, वे अक्सर इस तरह के इवेंट्स के दौरान अकेलेपन के शिकार हो जाते हैं। फैमिली और दोस्तों के साथ फन के दौरान भी कोई अकेलेपन का शिकार हो सकता है, यह जानना अजीब जरूर लग सकता है लेकिन एक शोध में आए नतीजों के आधार पर यह बात सही साबित हुई है।
शोध में सामने आया कि जो लोग प्रतिबंधित डायट लेते हैं या कुछ पर्टिकुलर डायट्स फॉलो कर रहे होते हैं, ऐसे लोग छुट्टियों के दौरान ग्रुप इटिंग के वक्त खुद को अकेला महसूस करने लगते हैं क्योंकि वे अपना खाना किसी के साथ शेयर नहीं कर पाते और बाकी लोग एक-दूसरे की प्लेट्स से बाइट्स इंजॉय करते हैं। ऐसा बार-बार होने पर इनके अंदर अकेलेपन की भावना भर जाती है। इससे ये सबके साथ होते हुए भी खुद को अलग-थलग महसूस करते हैं।
अमेरिका के कॉर्नेल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने सात अलग-अलग स्टडीज में यह पाया कि एलर्जी, हेल्थ ईश्यू, रिलीजन या कल्चर नॉर्म्स या फिर फिटनेस फ्रीक होने के कारण फूड रिस्ट्रिक्शन बच्चों और बड़ों दोनों के अंदर ही अकेलेपन की भावना को जन्म देता है। ऐसे में रिस्ट्रिक्टेड फूड खाने वाले लोग ग्रुप गेदरिंग के दौरान भी खुद को लेफ्ट आउट फील करते हैं क्योंकि वे फूड बॉन्डिंग को इंप्रूव नहीं कर पाते हैं।
हालही यह स्टडी जर्नल ऑफ पर्सनैलिटी एंड सोशल साइकॉलजी में पब्लिश की गई है। इसमें कारणों के साथ डिटेल दी गई है और प्रूव किया गया है कि रिस्ट्रिक्टेड फूड खाने वाले लोगों के अंदर अकेलेपन की भावना को बढ़ावा मिलता है। खासतौर पर अविवाहित और लो-इनकम वाले अडल्ट्स इसका अधिक शिकार होते हैं।
बच्चों की बात करें तो इस तरह के अकेलेपन का वे बच्चे अधिक शिकार होते हैं, जो नॉन नेटिव इंग्लिश स्पीकर्स या अंग्रेजी भाषा के जानकार नहीं होते हैं। इसके साथ ही अकेलेपन की भावना की गहराई इस बात पर भी निर्भर करती है कि खाने-पीने पर यह प्रतिबंध उन्होंने अपने आप पर खुद लगाया है या किसी मजबूरी के चलते उन्हें ऐसा करना पड़ रहा है।
-एजेंसियां
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