सफेद मोतियाबिंद के इलाज के लिए आज बाजार में कई प्रकार के आधुनिक लेंस उपलब्ध हैं। मरीज की जरूरत और लाइफस्टाइल के आधार पर लेंस का चयन होता है।
उपलब्ध है आपकी जरूरत का लेंस
आंखों के डॉक्टर का कहना है कि इंट्रा ऑक्यूलर लेंस (IOL) ने सफेद मोतियाबिंद के इलाज को न केवल आसान बना दिया है बल्कि इससे रिजल्ट भी बेहतर होता जा रहा है। मरीज चाहे तो दूर का, नजदीक का या फिर दूर, नजदीक और कंप्यूटर सब जरूरत के लिए एक लेंस लगवा सकता है।
बजट के अनुसार चुन सकते हैं लेंस
आज मरीज के पास लेंस के चयन के लिए कई ऑप्शन हैं, वे अपनी लाइफस्टाइल और बजट के अनुसार इसका चयन कर अपनी आंखों की रोशनी में सुधार ला सकते हैं।
क्यों लगाना पड़ता है लेंस
डॉक्टर ने कहा कि सफेद मोतिया जब होता है तो लेंस में एक मैलापन आ जाता है। इसे निकाल कर उसके स्थान पर आर्टिफिशल लेंस लगाया जाता है, तभी फिर से इंसान देख पाते हैं। डॉक्टर ने कहा कि लेंस में एक मोनोफोकल होता है, जब मरीज को दूर की रोशनी बेहतर चाहिए तब इसका यूज किया जाता है। ऐसे लोग नजदीक के लिए चश्मा लगाते हैं। जिसे दूर और नजदीक दोनों काम करना है तो उसे बायफोकल लेंस लगाया जाता है।
ज्यादा ऐक्टिव हैं तो लगाएं यह लेंस
इसी तरह जिसे दूर, नजदीक के साथ-साथ कंप्यूटर पर काम करना होता है उसे ट्रायफोकल लेंस जरूरी होता है। इस बारे में डॉक्टर का कहना है कि लेंस हमेशा जरूरत के अनुसार ही यूज किया जाना चाहिए। अगर मरीज की उम्र ज्यादा है तो मोनोफोकल सही है लेकिन इंसान बहुत ऐक्टिव है, बाहर भीतर का काम है, कंप्यूटर पर काम है तो उन्हें मोनोफोकल लगाना चाहिए।
-एजेंसियां