लाल ग्रह के रूप में मशहूर मंगल ग्रह के बारे में एक और चौंकाने वाला रहस्योदघाटन हुआ है, हाल में हुए शोधों से यह सिद्ध हो चुका है कि मंगलग्रह के अस्तित्व में आने के बाद से ही करोड़ों साल तक वहां पानी मौजूद था, लेकिन बाद में धीरे-धीरे मंगल ग्रह से पानी गायब हो गया। लोग इस बात से हैरान हैं कि कभी महासागरों से भरा यह ग्रह आज सूखा कैसे हो गया। अब एरिजोना विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इसका पता लगा लिया है।
नासा के मिशन से मिली सफलता
एरिजोना विश्वविद्यालय के लूनर एंड प्लैनेटरी लैब के ग्रेजुएट छात्र और इस शोध के प्रमुख लेखक शेन स्टोन ने सन् 2014 से के मार्स एट्योस्फीयर एंड वोलेटाइन इकोल्युशन (मावेन) मिशन में काम किया है। यह अंतरिक्ष यान 2014 से मंगलग्रह के चक्कर लगा रहा है। इस दौरान उसने मंगलग्रह के ऊपरी वायुमंडल की संरचना के आंकड़े एकत्र किए हैं।
कैसे गायब हुआ मंगल ग्रह का पानी
मावेन अंतरिक्ष यान मंगल ग्रह का चक्कर लगाते समय हर साढ़े चार घंटे में एक बार अंदर आता है। इसका नेचुरल गैस एंड आयरन मास स्पेक्ट्रोमीटर मंगल के ऊपरी वायुमंडल में आय़नीकृत पानी के अणुओं का मापन कर रहा है। यह मंगल की सतह से 100 मील की ऊंचाई पर है। इस जानकारी से वैज्ञानिक यह पता लगा पाए हैं कि मंगल के वायुमंडल में कितना पानी मौजूद है।
पानी की मात्रा कभी कम तो कभी ज्यादा
मावेन अंतरिक्ष यान और हबल टेलीस्कोप के पिछले अवलोकनों से दर्शाया गया है कि मंगल के ऊपरी वायुमंडल में पानी की मात्रा कभी कम तो कभी ज्यादा होती रहती है। धरती तुलना में मंगल की सूर्य की परिक्रमा ज्यादा अंडाकार है और मंगल का दक्षिणी गोलार्ध के गर्मी के मौसम में यह सूर्य से सबसे निकट होता है।
मंगल पर तूफान
स्टोन और उसकी टीम ने पाया कि मंगल जब सूर्य के पास होता है तो यह गर्म हो जाता है और ज्यादा पानी जो मंगल की सतह पर बर्फ के रूप में है, यह ऊपरी वायुमंडल में आ जाता है, जहां से वह अंतरिक्ष में खो जाता है। ऐसा मंगल पर उसके एक साल में एक बार होता है। क्षेत्रीय धूल के तूफान मंगल पर हरेक साल आते हैं।, जबकि वहां ग्लोबल स्टार्म हर दस साल में एक बार, जिससे वहां का वायुमंडल और ज्यादा गर्म हो जाता है और फलस्वरूप पानी और ऊपर उठता जाता है।
वाष्प खो जाते हैं अंतरिक्ष में
आम तौर पर मंगल की बर्फ पानी में बदल कर गैस बनती है और सूर्य की किरणों के कारण निचले वायुमंडल में ही टूटने लगते हैं और फिर ऊपर की ओर आने लगते हैं, जबकि पृथ्वी पर ये ज्यादा ऊंचे नहीं आ पाते और ठंडे होकर वर्षा के जरिये सतह पर आ जाते हैं। एक बार ऊपरी वायुमंडल में पानी के वाष्प टूटने लगते हैं और अंततः अंतरिक्ष में खो जाते हैं। शोधकर्ताओँ का मानना है कि यह प्रक्रिया ही मंगल ग्रह के महासागरों का पानी अंतरिक्ष में पहुंचाने के लिए जिम्मेदार रही होगी।