बेगम अख्तर के नाम से प्रसिद्ध अख़्तरी बाई फ़ैज़ाबादी (7 अक्टूबर 1914- 30 अक्टूबर 1974) भारत की प्रसिद्ध गायिका थीं। बेगम अख्तर को दादरा, ठुमरी व ग़ज़ल में महारत हासिल थी। उन्हें कला के क्षेत्र में भारत सरकार पहले पद्म श्री तथा सन १९७५ में मरणोपरांत पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। उन्हें “मल्लिका-ए-ग़ज़ल” के ख़िताब से नवाज़ा गया था
2014 की फ़िल्म डेढ़ इश्क़िया में विशाल भारद्वाज ने बेगम अख़्तर की प्रसिद्ध ठुमरी ‘हमरी अटरिया पे’ का आधुनिक रीमिक्स रेखा भारद्वाज की आवाज में प्रस्तुत किया।
शुद्ध उर्दू का उच्चारण करने वाली बेगम अख्तर दादरा और ठुमरी की साम्राज्ञी थीं। उनके गीतों-गजलों के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है।
बेगम अख्तर के बचपन का नाम बिब्बी था। वो फैजाबाद के शादीशुदा वकील असगर हुसैन और तवायफ मुश्तरीबाई की बेटी थीं।
असगर और मुश्तरी एक-दूसरे से प्यार करते थे। जिसके फलस्वरूप बिब्बी का जन्म हुआ। मुश्तरीबाई को जुड़वा बेटियां पैदा हुई थीं। चार साल की उम्र में दोनों बहनों ने जहरीली मिठाई खा ली थी। इसमें बिब्बी तो बच गईं लेकिन उनकी बहन का देहांत हो गया था। असगर ने भी मुश्तरी और बेटी बिब्बी को छोड़ दिया था जिसके बाद दोनों को अकेले ही जिंदगी में संघर्ष करना पड़ा।
बिब्बी का पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगता था। एक बार शरारत में उन्होंने अपने मास्टरजी की चोटी काट दी थी। मामूली पढ़ाई के बावजूद उन्होंने उर्दू शायरी की अच्छी जानकारी हासिल कर ली थी। सात साल की उम्र से उन्होंने गाना शुरू कर दिया था। वहीं मां मुश्तरी इसके लिए राजी नहीं थीं। उनकी तालीम का सफर शुरू हो चुका था। उन्होंने कई उस्तादों से संगीत की शिक्षा ली लेकिन ये सफर आसान नहीं था।
13 साल की उम्र में बिब्बी को अख्तरी बाई के नाम से जाना जाने लगा था। उसी समय बिहार के एक राजा ने कद्रदान बनने के बहाने उनका रेप किया। इस हादसे के बाद अख्तरी प्रेग्नेंट हो गईं और उन्होंने छोटी सी उम्र में बेटी सन्नो उर्फ शमीमा को जन्म दिया। दुनिया के डर से इस बेटी को वह अपनी छोटी बहन बताया करती थीं। बाद में दुनिया को पता चला कि यह उनकी बहन नहीं बल्कि बेटी है। 15 साल की उम्र में अख्तरी बाई फैजाबादी के नाम से पहली बार मंच पर उतरीं।
उनकी आवाज में जिंदगी के सारे दर्द साफ झलकते थे। यह कार्यक्रम बिहार के भूकंप पीड़ितों के लिए चंदा इकट्ठा करने के लिए कोलकाता में हुआ था। कार्यक्रम में भारत कोकिला सरोजनी नायडू भी मौजूद थीं। वे अख्तरी बाई के गायन से बहुत प्रभावित हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया। बाद में नायडू ने एक खादी की साड़ी भी उन्हें भेंट में भिजवाई। बेगम अख्तर की शिष्या रीता गांगुली का कहना है कि पहली परफॉर्मेंस के समय अख्तरी बाई की उम्र 11 साल थी।
बेगम अख्तर की 73 साल की शिष्या रीता गांगुली ने उन पर एक किताब भी लिखी है। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि मुंबई के एक तवायफ संगठन ने मुश्तरी बाई से उनकी बेटी को उन्हें सौंपने का अनुरोध किया था। बदले में एक लाख रुपए देने का प्रस्ताव रखा था लेकिन अख्तरी और मां मुश्तरी ने इस पेशकश को ठुकरा दिया था। धीरे-धीरे शोहरत बढ़ी और अख्तरी बाई के प्रशंसक भी बढ़ गए।
अख्तरी बाई गायन के साथ अभिनय भी करती थीं। 1939 में उन्होंने फिल्म जगत से नाता तोड़ा और लखनऊ आकर रहने लगीं। यहां आकर उन्हें उनका प्यार मिला। 1945 में उन्होंने परिवार के खिलाफ जाकर बैरिस्टर इश्तियाक अहमद अब्बासी से शादी कर ली। तभी से उनका नाम बेगम अख्तर पड़ गया। पति के कहने पर उन्होंने गाना छोड़ दिया था। गाना छोड़कर शायद बेगम अख्तर ने अपनी जान को छोड़ दिया था, इसीलिए वो बीमार रहने लगीं। सिगरेट बहुत पीती थीं इसलिए उन्हें फेफड़े की बीमारी के साथ डिप्रेशन की समस्या हो गई।
30 अक्टूबर 1974 को बेगम अख्तर अहमदाबाद में मंच पर गा रही थीं। तबीयत खराब थी, अच्छा नहीं गाया जा रहा था। ज्यादा बेहतर की चाह में उन्होंने खुद पर इतना जोर डाला कि उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा, जहां से वे वापस नहीं लौटीं। हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया। लखनऊ के बसंत बाग में उन्हें सुपुर्दे-खाक किया गया। उनकी मां मुश्तरी बाई की कब्र भी उनके बगल में ही थी।
-एजेंसियां
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