ख़ुश रहना है तो छुट्टी के दिन मत चैक कीजिए Office के ईमेल

Life Style

छुट्टी के दिन आप Office के कोई काम करें या ना करें, लेकिन अगर आप वहां के ईमेल देखते रहते हैं तो काम से अलग नहीं हो पाते.

किसी नौकरीपेशा आदमी के लिए वीकेंड की छुट्टी से पहले Office का कंप्यूटर लॉग-ऑफ करने से बेहतर पल दूसरा नहीं होता.

कंप्यूटर बंद तो समझिए काम बंद. ईमेल बंद और उसके साथ आने वाला तनाव भी बंद. लेकिन ऐसा हो नहीं पाता.

विशेषज्ञों को लगता है कि हम काम से दूर हो ही नहीं पा रहे हैं. छुट्टी के दिन भी हम घर पर ऑफ़िस के ईमेल देखते रहते हैं, जिसके गंभीर परिणाम हो रहे हैं.
असामान्य तौर पर ज़्यादा काम करने से डिप्रेशन, चिड़चिड़ापन, यहां तक कि हृदय रोग भी हो सकते हैं.
सप्ताह के अंत में मिलने वाली छुट्टी काम करने की क्षमता को बनाए रखने और कुछ नया करने के लिए ज़रूरी है लेकिन नौकरी की बढ़ती ज़रूरतें हमें ऑफ़िस से अलग होने ही नहीं देतीं.

छुट्टी के दिन ईमेल क्यों?

रोमेन गोनॉर्ड फ्रांस की एक आईटी सर्विस प्रोवाइडर कंपनी ‘स्माइल’ में टेक्निकल एक्सपर्ट हैं. गोनॉर्ड शुरुआत में ऑफ़िस के ईमेल इसलिए देखते थे ताकि कोई महत्वपूर्ण सूचना छूट ना जाए. लेकिन अब उन्हें इसकी आदत हो गई है.

गोनॉर्ड अब फ़ेसबुक या ट्विटर टाइमलाइन की तरह ऑफिस के ईमेल भी चेक करते रहते हैं. फ्रांस की सरकार ने सप्ताहांत की छुट्टियों को बचाने के लिए पिछले साल एक बड़ा फ़ैसला किया था.

फ्रांस ने एक क़ानून बनाया जिसके तहत 50 या ज़्यादा कर्मचारियों वाली कंपनी के लोग ऑफ़िस में काम के घंटे पूरे कर लेने के बाद ईमेल चेक करने के लिए मजबूर नहीं हैं.

सितंबर 2015 में आई एक रिपोर्ट में कहा गया था कि सूचनाओं की अधिकता फ्रांस के कामकाजी वर्ग की सेहत बिगाड़ रही है. इसी के बाद फ्रांस सरकार ‘राइट टू डिसकनेक्ट’ क़ानून बनाया.

फ्रेंच मैनेजमेंट कंसल्टेंसी कंपनी ‘एलियस’ के चेयरमैन ज़ेवियर लुकेटस बड़े आशान्वित हैं. वे कहते हैं, “काम के घंटे ख़त्म हो जाने के बाद ऑफिस के मेल चेक करने या जवाब देने के लिए मजबूर ना होने का अधिकार फ्रांस के लोगों को पसंद आ रहा है और यह व्यवहारिक भी है.”

साइंस कंसल्टेंसी कंपनी ‘कॉग्स’ में काम करने वाले गैटन डि लेवियॉन ने नया तरीका निकाला है. वे क्रोम की एक सर्विस बूमरैंग (Boomerang) का सहारा लेते हैं. यह उनके ईमेल को इनबॉक्स तक पहुंचने में देर करा देता है.
लेवियॉन कोशिश करते हैं कि ऑफ़िस से निकलने के बाद वे ईमेल चेक ना करें. दिन में 15 मिनट से लेकर 2 घंटे तक वे ईमेल की तरफ देखते भी नहीं.

फ्रांस में ‘राइट टू डिसकनेक्ट’ क़ानून बनने के बाद जर्मनी में भी बदलाव की मांग उठी. कर्मचारी संगठन ऐसी मांग करने लगे.

छुट्टी है तो थकान मिटाइए

जर्मन ऑटो कंपनी फॉक्सवैगन उन चुनिंदा कंपनियों में शामिल है, जिन्होंने शुरुआत में ही यह बात मान ली.
फॉक्सवैगन कंपनी ने नियम बनाया है कि किसी कर्मचारी के काम के घंटे शुरू होने से आधे घंटे पहले और काम ख़त्म होने के आधे घंटे बाद उसे कोई ईमेल नहीं भेजा जाएगा. वीकेंड पर भी कोई ईमेल नहीं भेजा जाएगा.

ऑटो कंपनी डेमलर के कर्मचारी छुट्टी के दिन अपनी ईमेल नहीं खोल सकते.

सामंता रूपेल जर्मनी में दो पार्ट-टाइम जॉब करती हैं- एक यूनिवर्सिटी में और दूसरी चैरिटी में.

रूपेल को ऑफ़िस की तरफ से एक लैपटॉप दिया गया है. यह उन्हें अच्छा लगता है. लेकिन उनको यह भी लगता है कि लैपटॉप ने उनको ऑफ़िस डेस्क से बांध दिया है. वह काम से अलग हो ही नहीं पातीं.

“वीकेंड पर भी ईमेल चेक करने की सुविधा अच्छी है. लेकिन कई बार लोग सिर्फ़ इसलिए काम लाद देते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि आप हर समय जुड़े हुए हैं.”

रूपेल के बॉस यह सुनिश्चित करते हैं कि यदि वे वीकेंड पर काम करें तो उसके बदले उनको छुट्टी दी जाए. फिर भी रूपेल को लगता है कि तनाव से भरी नौकरियों में हर वक्त ईमेल पर उपलब्ध रहने का मतलब है कि आप हर वक्त तनाव के साथ हैं.

रूपेल के कई दोस्त जर्मनी की बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं में काम करते हैं. वीकेंड पर जब कभी वे मिलते हैं तो काम के बारे में बातें होती हैं.

“वे लोग छुट्टी के दिनों में ईमेल चेक नहीं कर सकते. इससे वे निराश रहते हैं. लेकिन मुझे लगता है कि यह ठीक है, वरना उन्हें दिन में 24 घंटे काम करने पड़ते.”
अपने दोस्तों के बारे में रूपेल कहती हैं, “कामकाजी दिनों में वे घर आकर डिनर करने के बाद भी ईमेल चेक करते हैं. अगर उनके पास वीकेंड पर ईमेल देखने का मौका होता तो वे यह भी करते. आगे बढ़ने की होड़ में भला कौन पीछे रहना चाहता है.”

ब्रिटेन में चार्टर्ड इंस्टीट्यूट ऑफ़ पर्सनेल एंड डेवलपमेंट (CIPD) ने 2000 कर्मचारियों का सर्वे किया.

सर्वे में दो तिहाई लोगों ने कहा कि काम के घंटे ख़त्म होने के बाद भी वे दिन में कम से कम 5 बार ऑफ़िस के ईमेल देखते हैं. एक तिहाई लोगों ने कहा कि घर पर रहते हुए भी वे मानसिक रूप से काम से अलग नहीं हो पाते.

स्मार्टफ़ोन ने बिगाड़ा बैलेंस

मैनचेस्टर बिजनेस स्कूल में मनोविज्ञान के प्रोफेसर और सीआईपीडी के प्रेसिडेंट कैरी कूपर इसके लिए स्मार्टफ़ोन को ज़िम्मेदार बताते हैं.

“आप डिनर के लिए बाहर जाते हैं तो अपना लैपटॉप नहीं ले जाते, लेकिन मोबाइल फ़ोन हमेशा अपने साथ रखते हैं. इस स्मार्टफ़ोन ने ही सब कुछ बदल दिया है.”
लेहाई यूनिवर्सिटी की एसोसिएट प्रोफेसर ल्यूबा बेल्किन कहती हैं, “दफ़्तर के ईमेल देखते रहने की अपेक्षा जितनी ज़्यादा होगी, उस पर ख़र्च होने वाला समय भी उतना ही ज़्यादा होगा और भावनात्मक थकान भी ज़्यादा होगी.”

ईमेल बार-बार ना देखें तब भी असर पड़ता है. बेल्किन कहती हैं, “आप इस पर कितना समय ख़र्च करते हैं इससे बहुत फर्क़ नहीं पड़ता. आप इसे देखते भर हैं तो भी नकारात्मक असर होता है.”

बेल्किन और सहयोगियों ने दो रिसर्च पेपर से दिखाया है अगर आपसे कभी-कभी भी ऑफ़िस के ईमेल देखने की उम्मीद की जाती है तो इससे बेचैनी बढ़ती है- आपके लिए और आपके परिवार के लिए भी.

वर्जीनिया टेक यूनिवर्सिटी के रिसर्च में पाया गया जो लोग छुट्टियों में ऑफ़िस के ईमेल नहीं देखते, लेकिन अगर उनसे ऐसा करने की अपेक्षा की जाती है तो भी उनमें घबराहट रहती है.

परिवार और दोस्तों पर असर के अलावा सेहत के लिए भी गंभीर समस्याएं खड़ी होती हैं. यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की प्रोफेसर अन्ना कॉक्स कहती हैं, “यदि आप ऑफ़िस के काम से अलग नहीं हो पाते तो थकान से उबर नहीं पाते.”

“शुरुआत में इसका असर आपकी उत्पादकता पर पड़ता है. जब आप काम करते हैं तो थके हुए होते हैं. अगर आप इस थकान से बाहर नहीं निकलते तो तमाम तरह की शारीरिक और मानसिक समस्याएं होने लगती हैं.”
यूरोपियन वर्किंग कंडीशंस सर्वे से मिले आंकड़े ये दिखाते हैं कि जो लोग काम के घंटे ख़त्म होने के बाद भी काम करते रहते हैं, वे हृदय रोगों और मांसपेशियों के दर्द से ज़्यादा परेशान होते हैं.

लेकिन दुनिया को छुट्टियों में ऑफ़िस के ईमेल पर पूरी तरह पाबंदी लगाना भी मंजूर नहीं है.

पाबंदी उपाय नहीं है

फ्रांस में ही गोनॉर्ड इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि क़ानून अपने मक़सद में कामयाब है या नहीं. गोनॉर्ड के बॉस क़ानून बनने से पहले भी उनको ईमेल चेक करने के लिए मजबूर नहीं करते थे, लेकिन अपने प्रोजेक्ट पर पूरी तरह नज़र रखने के लिए वे खुद ईमेल से जुड़े रहते थे.

“यदि आपकी कंपनी राइट टू डिसकनेक्ट क़ानून को लागू करती है और छुट्टी में कर्मचारियों के ईमेल बंद कर देती है तो आपके पास इसे मानने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचेगा. तब मैं वही तनाव महसूस करूंगा जिसे ख़त्म करने के लिए क़ानून बनाया गया था.”

दूसरे लोग भी महसूस करते हैं कि वीकेंड की छुट्टियों को क़ानून में बांध देने से कोई असर नहीं पड़ रहा. ना ही इस बात की संभावना है कि दूसरे देश भी ऐसा करेंगे.

कॉक्स कहती हैं कि हम सिर्फ़ कामकाजी घंटों के दौरान काम करने से इतना आगे बढ़ चुके हैं कि ईमेल देखने का टाइम टेबल बनाना ब्रिटेन या अमरीका को मंजूर नहीं होगा.

कूपर कहते हैं, “इसे जबरन लागू नहीं किया जा सकता. यदि आपको नौकरी पर ख़तरा दिखता है और अगर फ्रांस की तरह देश में ज़्यादा बेरोजगारी है तो आप कोर्ट जाकर इसे चुनौती दे सकते हैं.”

कूपर को लगता है कि यहां कंपनी मैनेजमेंट और कर्मचारियों के बीच बेहतर तालमेल की ज़रूरत है, ताकि लोग छुट्टी के मजे ले सकें और ईमेल के बोझ से दूर रहें.

-BBC


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