पश्चिमी किर्गिस्तान में उज़्बेकिस्तान की सीमा से 70 किलोमीटर दूर अर्सलानबोब नाम का एक क़स्बा है. तेरह हज़ार की आबादी वाला यह क़स्बा बाबाश अटा की पहाड़ियों के बीच एक उपजाऊ घाटी में स्थित है.
वसंत और गर्मियों में दो कुदरती झरने यहाँ सैलानियों को लुभाते हैं लेकिन यहाँ की सबसे अनोखी चीज़ शरद ऋतु में होती है. वो है यहाँ होने वाला अखरोट.
हर साल सितंबर में अर्सलानबोब से बड़े पैमाने पर पलायन होता है.
क़रीब 3000 परिवार यहाँ के अपने घर छोड़ देते हैं और 385 वर्ग किलोमीटर में फैले पहाड़ की दक्षिणी ढलानों की ओर चले जाते हैं.
गाँव से क़रीब घंटे भर की पैदल दूरी पर स्थित इस जंगल में दुनिया का सबसे अधिक अखरोट पैदा होता है.
अर्सलानबोब में अखरोट के जंगल से हर साल एक हज़ार से पंद्रह सौ टन अखरोट मिलता है जो दुनिया में अखरोट का सबसे बड़ा एकल स्रोत है.
यहाँ के अखरोट गहरे रंग का होता है. साथ ही ये अपने स्वाद और कीटों से मुक्त वातावरण में होने के लिए मशहूर हैं. इस अखरोट को यूरोप और पूरे एशिया में भेजा जाता है.
यहाँ अखरोट के इतने बड़े जंगल कैसे बने? यह किंवदंतियों का हिस्सा है.
कुछ लोगों के मुताबिक़ यह कहानी पैग़ंबर मोहम्मद साहब से जुड़ी है जिन्होंने एक माली को अखरोट के बीज दिए थे और जंगल में जाकर लगाने को कहा था.
लंबे सफ़र के बाद वह अर्सलानबोब पहुँचा. बर्फ़ से भरी पहाड़ी चोटियों की तलहटी में उसने एक जगह ढूंढी जहाँ का मौसम बहुत सुहाना था.
वहाँ साफ़ पानी की नदियाँ थीं और ज़मीन उपजाऊ थी. सही जगह देखकर उसने बीजों को रोप दिया. सदियों बाद वहाँ अखरोट के जंगल तैयार हो गए.
सिकंदर महान
एक दूसरी किंवदंती कुछ इस तरह है कि यूरोप में अखरोट के ज़्यादातर पेड़ अर्सलानबोब के जंगलों से ही गए हैं.
दो हज़ार साल पहले सिकंदर महान ने उनको फैलाया था.
इस कहानी के मुताबिक़ जब सिकंदर की सेना पूर्वी एशिया की तरफ़ कूच कर रही थी तब इस घाटी में रुकी थी.
युद्ध में मिले घावों के कारण कुछ सिपाही आगे नहीं जा सकते थे. वे अर्सलानबोब से कुछ किलोमीटर की दूरी पर रुक गए. इस जगह को अब यारदार कहा जाता है. उज़्बेक भाषा में यारदार का शाब्दिक अर्थ घायल होता है.
कुछ महीने बाद वे सैनिक तंदुरुस्त होकर सिकंदर की सेना में दोबारा शामिल हो गए.
सैनिकों को जंगल में अखरोट, सेब और अन्य फल बहुतायत में मिले थे. उनको खाकर ही वे तुरंत ठीक हो गए और अपने कमांडर के पास पहुँच गए.
सिकंदर इतना ख़ुश हुआ कि यूरोप वापसी के दौरान उसने अर्सलानबोब से अखरोट के बीज लिए और उन्हें ग्रीस में लगवा दिया.
फसल की शुरुआत
फसल चक्र के अनुसार वैसे तो अखरोट की फसल अक्टूबर की शुरुआत में तैयार होती है लेकिन अर्सलानबोब के परिवार सितंबर के मध्य से ही पहाड़ी जंगल की ओर जाने लगते हैं.
वे अपने मवेशियों को भी साथ ले जाते हैं. ये लोग स्थानीय पेड़ों से अखरोट जमा करते हुए चलते हैं. उनके थैलों में 20 किलो तक अखरोट आ जाते हैं.
स्थानीय क़ानून के अनुसार जंगल की ज़मीन वन विभाग की संपत्ति है पर अर्सलानबोब के परिवार कई हेक्टेयर ज़मीन किराये पर ले लेते हैं.
दो महीने तक ये परिवार यहाँ कैंप में रहते हैं और खेतों में काम करते हैं.
फसल तैयार होने से पहले वे मुर्गे या किसी छोटे जानवर की क़ुर्बानी देते हैं ताकि ऊपर वाला खुश रहे.
यहाँ अखरोट के कई पेड़ हैं जो सदियों पुराने हैं. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार अखरोट के ये पेड़ एक हज़ार साल तक जी सकते हैं और उनके तने का व्यास 2 मीटर तक हो सकता है.
पेड़ पर चढ़ने वाले लोग
अखरोट की फसल लेने का तरीक़ा काफ़ी ख़तरनाक हो सकता है. बिना रस्सी या किसी सुरक्षा इंतज़ाम के परिवार का मुखिया या कोई दूसरा पुरुष सदस्य पेड़ पर चढ़ता है.
चढ़ते-चढ़ते वे सबसे ऊपर की डाल तक पहुँच जाते हैं. ऊपर जाकर वे डालियों को ज़ोर-ज़ोर से हिलाते हैं जिससे अखरोट टूटकर नीचे गिरते हैं और महिलाएं-बच्चे उनको चुनकर इकट्ठा कर लेते हैं.
सभी परिवारों में पेड़ पर चढ़ने वाले लोग नहीं होते इसलिए वे पेशेवर की मदद लेते हैं.
ये पेशेवर मामूली शुल्क लेते हैं लेकिन उनके काम में जोखिम बहुत ज़्यादा रहता है.
स्थानीय वन विभाग के मुताबिक़ अखरोट के पेड़ से गिरकर हर साल कम से कम एक व्यक्ति की मौत होती है.
अखरोट चुनने वाले बच्चे
फसल के दौरान परिवार के सभी लोग काम करते हैं. बहुत छोटे बच्चे सोमवार से शुक्रवार तक दादा-दादी के साथ गाँव में रहते हैं ताकि स्कूल जा सकें.
वीकेंड पर उनके माँ-बाप गाँव आकर बच्चों को अपने साथ घोड़े पर बिठाकर जंगल ले जाते हैं.
बच्चे अखरोट जमा करने में बड़ा योगदान देते हैं. पत्तों के बीच गिरे अखरोट को चुनने में वे बड़े मददगार होते हैं.
स्थानीय सामुदायिक पर्यटन संगठन के को-ऑर्डिनेटर खायाटिला तरीकोव के मुताबिक़ बच्चे अपने माता-पिता से ज़्यादा अखरोट जमा करते हैं.
फसल अच्छी हो तो 3 हेक्टेयर ज़मीन किराये पर लेने वाला परिवार 300 किलो अखरोट जमा कर सकता है.
जंगल में जीवन
अर्सलानबोब की मुहब्बत तेमिरोवा को अखरोट का मौसम बहुत पसंद है. शरद ऋतु में उनको जंगल में रहने का मौक़ा मिलता है.
हर सुबह गाय का दूध निकालने के बाद वह उसे उबालती हैं. फिर अखरोट के पेड़ के नीचे घर की रोटी, फल और ताज़ी मलाई का नाश्ता करने बैठती हैं.
वैसे तो जंगल में आने का मुख्य कारण अखरोट ही है लेकिन ज़्यादातर परिवार आलू की खेती भी करते हैं.
वे सेब तोड़ते हैं और सर्दी का मौसम शुरू होने से पहले मवेशियों को ताज़ी घास चरने के लिए खुला छोड़ देते हैं.
सभी परिवार लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाते हैं. जंगल में मिलने वाले नाशपाती, पिश्ता, सेब, बादाम और अखरोट के साथ वे दूध-दही खाते हैं और चाय पीते हैं.
सुबह की चाय से पहले पूरा परिवार रात में गिरे अखरोट को चुनने जाता है. सुबह का बाकी समय आलू के खेतों में काम करते हुए बीतता है.
दोपहर सुस्ताने में या फिर क़िस्से-कहानियाँ सुनने-सुनाने में निकलता है. सूरज ढलने से पहले पूरा परिवार फिर अखरोट चुनने जाता है. रात का खाना खाकर लोग जल्दी सो जाते हैं.
अखरोट विनिमय
अखरोट के मौसम में दुकानकार पैसे की जगह अखरोट लेते हैं. अखरोट के किसान फसल के बदले खाने-पीने और घर के काम आने वाली चीज़ें ख़रीदते हैं.
बच्चे उनके बदले चॉकलेट, केक और आइसक्रीम ख़रीदते हैं.
अर्सलानबोब में 11 तरह के अखरोट मिलते हैं. उसके दाने जितने बड़े होते हैं, क़ीमत उतनी ही अच्छी मिलती है.
छिलके उतारे हुए अखरोट छिलके वाले अखरोट से महंगे बिकते हैं. स्थानीय बाज़ारों में इसका भाव 500 सोम (7.16 डॉलर) हो सकता है.
कई ग्राहक थोक में अखरोट ख़रीदते हैं और उनको तुर्की, रूस, चीन और यूरोप जैसी जगहों पर निर्यात करते हैं. विदेशी ग्राहकों तक पहुँचते-पहुँचते क़ीमत तीन गुनी तक हो सकती है.
किसान परिवार अपने लिए भी अखरोट रखते हैं. वे इससे अखरोट-दूध बनाते हैं या फिर मक्खन और शहद के साथ किर्गिज़ की पारंपरिक मिठाई ज़ानसक तैयार करते हैं.
संरक्षण के प्रयास
अर्सलानबोब के लोगों के साथ-साथ वन विभाग के प्रयासों से अखरोट के जंगल सदियों से बचे हुए हैं.
जब कोई परिवार यहाँ ज़मीन का पट्टा लेता है तो इसकी अवधि 49 साल तक हो सकती है.
लोग अपने सबसे अच्छे अखरोट के बीज वन विभाग को देते हैं जो उनको अपनी नर्सरी में और जंगल में लगा देता है जिससे नये पेड़ तैयार होते रहें.
सूखी डालियों को काटने के लिए भी स्थानीय रेंजर की अनुमति लेनी पड़ती है. पेड़ों को बिना इजाज़त काटने पर जुर्माना लगता है लेकिन अखरोट के इन पेड़ों का भविष्य अनिश्चित है. जलवायु परिवर्तन, बेमौसम की बारिश, बर्फ़बारी और मवेशियों की चराई से होने वाले मिट्टी कटान के कारण पिछले कई सालों में अखरोट की पैदावार घटी है.
रोज़गार की तलाश में युवा शहरों की ओर जा रहे हैं जिससे अखरोट के किसानों की तादाद भी घट रही है.
स्थानीय सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के लिए क़ानून बनाए हैं और संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से वैज्ञानिक अब शैक्षिक कार्यशालाएं चला रहे हैं जिसमें लोगों को बताया जाता है कि कुछ अखरोट को छोड़ देने से जंगल लंबे समय तक बचे रहेंगे.
सामुदायिक दावत
फसल के दो महीने ख़त्म होने के बाद सभी परिवारों में एक दावत करने की परंपरा है जिसमें पड़ोसियों को बुलाया जाता है.
फसल कितनी अच्छी हुई है इस आधार पर दोबारा मुर्गे़ या भेड़ की क़ुर्बानी दी जाती है.
दावत में पारंपरिक पुलाव और भेड़ के मांस के साथ सलाद, फल, ब्रेड, चाय, मिठाई, दही और ताज़ा क्रीम शामिल होता है.
भोज के बाद मेहमान दुआ करते हैं कि अगले साल और अच्छी फसल हो.
-BBC