भारत को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी दिलाने के लिए कई लोगों ने अपना जीवन लगा दिया। देश के लिए हंसते हुए अपनी जान देने वाले आजादी के मतवाले राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान और ठाकुर रोशन सिंह को 1927 में 19 दिसम्बर के दिन ही फांसी दी गई थी। आज के दिन को देश शहादत दिवस के रूप में याद करता है। जानते हैं इस दिन से जुड़ी कुछ खास बातें।
काकोरी कांड में मिली थी सजा
देश की आजादी की लड़ाई में जलियांवाला कांड, चौरीचौरा कांड जैसी कई घटनाएं दर्ज हैं। ऐसी ही एक घटना है काकोरी कांड। 9 अगस्त 1925 को लखनऊ के पास काकोरी में हुई इस घटना की सजा के तौर पर स्वतंत्रता सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, अशफाक उल्लाह खान और रोशन सिंह को फांसी की सजा मिली थी, साथ ही कई क्रांतिकारियों को जेल की सजा हुई थी।
अंग्रेजों का कराना चाहते थे ताकत का अहसास
आजादी की लड़ाई में हमारे देश के क्रांतिकारियों को अहसास हो गया था कि विनम्र बने रहने से काम नहीं चलेगा लिहाजा ब्रिटिश हुकूमत को अपनी ताकत का अहसास करवाने के लिए उन्होंने सशस्त्र लड़ाई का फैसला लिया। इसके लिए उन्हें हथियार वगैरह की जरूरत थी। जाहिर सी बात है पैसे भी चाहिए थे। ऐसे में राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने सरकारी खजाना लूटने का प्लान बनाया।
लखनऊ के पास हुई थी ट्रेन लूट
इसी प्लान के तहत 9 अगस्त 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 10 क्रांतिकारियों ने लखनऊ से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित काकोरी में ट्रन लूट की घटना को अंजाम दिया। सहारनपुर से लखनऊ जाने वाली पैसेंजर ट्रेन को क्रांतिकारियों ने काकोरी में जबरदस्ती रुकवाया। इस ट्रेन में रास्ते में पड़ने वाले रेलवे स्टेशनों से इकट्ठा किया गया पैसा था, जिसे लखनऊ में जमा करना था। क्रांतिकारियों ने गार्ड और सवारियों को बंदूक की नोंक पर काबू में कर लिया और गार्ड के क्वॉर्टर में रखी तिजोरी खुलवाई, इसके बाद उसमें से नकदी लेकर फरार हो गए।
गिरफ्तार हुए 40 लोग
यह घटना होने के 1 महीने के अंदर 40 लोगों गिरफ्तार किया गया। इनमें स्वर्ण सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, दुर्गा भगवती चंद्र वोहरा, रोशन सिंह, सचींद्र बख्शी, चंद्रशेखर आजाद, विष्णु शरण डबलिश, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुकुंदी लाल, शचींद्रनाथ सान्याल एवं मन्मथनाथ गुप्ता शामिल थे। इनमें से 29 लोगों के अलावा बाकी को छोड़ दिया गया। 29 लोगों के खिलाफ स्पेशल मैजिस्ट्रेट की अदालत में मुकदमा चला।
सुनाई गई फांसी की सजा
अप्रैल, 1927 को आखिरी फैसला सुनाया गया। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई। जिन लोगों पर मुकदमा चलाया गया, उनमें से कुछ को 14 साल तक की सजा दी गई। दो लोग सरकारी गवाह बन गए, इसलिए उनको माफ कर दिया गया। दो और क्रांतिकारी को छोड़ दिया गया था। चंद्रशेखर आजाद किसी तरह फरार होने में कामयाब हो गए थे लेकिन बाद में एक एनकाउंटर में वह शहीद हो गए।
नहीं रोक सके फांसी
जिन 4 क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी, उन्हें बचाने के लिए काफी कोशिश की गई। मदन मोहन मालवीय ने उनको बचाने के लिए अभियान शुरू किया और भारत के तत्कालीन वायसराय एवं गवर्नर जनरल ऐडवर्ड फ्रेडरिक के पास दया याचिका भेजी लेकिन ब्रिटिश सरकार का फैसला नहीं बदला।
फांसी के दिन भी की एक्सर्साइज
बताते हैं कि इन आजादी के मतवालों को देश के लिए जान देने पर गर्व था और उन्होंने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को गले लगाया। गोरखपुर जेल में जब जेल अथॉरिटीज राम प्रसाद बिस्मिल को फांसी के लिए लेने आईं तो वह काफी अच्छे मूड में थे और कसरत करते नजर आए। जब उनसे पूछा गया कि अब तो फांसी दी जा रही है तो वह क्यों कसरत कर रहे हैं, इस पर उन्होंने जवाब दिया, मैं कसरत कर रहा हूं ताकि स्वस्थ रहूं औऱ अगले जन्म में ब्रिटिश हुकूमत का खात्मा कर सकूं।
17 और 19 दिसंबर को हुई फांसी
राजेंद्र लाहिड़ी को 17 दिसंबर 1927 को गोंडा जेल में, 19 दिसंबर को बिस्मिल को गोरखपुर जिला जेल, अशफाक उल्लाह खान को फैजाबाद जिला जेल और रोशन सिंह को इलाहाबाद के मलाका जेल में फांसी दी गई। जेल में बंद रहते हुए बिस्मिल ने मेरा रंग दे बसंती चोला गीत लिखा।
-एजेंसियां