निमोनिया से बचाव के लिए बच्चों को न्यूमोकोकल कॉन्‍जुगेट वैक्‍सीन लगवाना है जरूरी

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सर्दी के मौसम में बच्चों को निमोनिया होने का खतरा काफी बढ़ जाता है। इसके लिए बच्चों को सर्दी से बचाना जरूरी है, इसके साथ ही बच्चों को पीसीवी का टीका लगवाना भी जरूरी है।

जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ. एसके वर्मन ने बताया कि बच्चे को निमोनिया से बचाने के लिए सबसे जरूरी उसका संपूर्ण टीकाकरण है। इसके लिए कम उम्र के सभी बच्चों को समय पर टीके लगवाना जरूरी है।

न्यूमोकोकल टीका (पीसीवी) निमोनिया, सेप्टिसीमिया, मैनिंगजाइटिस या दिमागी बुखार आदि से बचाव करता है। निमोनिया को दूर रखने के लिए व्यक्तिगत साफ-सफाई भी जरूरी है। हमेशा छींकते- खांसते समय अपने मुंह और नाक को ढक लें। इसके अलावा समय- समय पर हाथों को जरूर साफ करना चाहिए। बच्चों को प्रदूषण से बचायें और सांस संबंधी समस्या न रहे इसके लिए उन्हें धूल-मिट्टी व धूम्रपान करने वाली जगहों से दूर रखें। बच्चों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के उन्हें लिए पर्याप्त पोषण दें।

जिला महिला अस्पताल की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. खुशबू केसरवानी ने बताया कि निमोनिया, दो तरह की बैक्ट्रीरिया स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया एवं हीमोफीलिया इन्फ्लूएंजा टाइप-बी की वजह होता है। यह बच्चों के लिए सबसे बड़ी जानलेवा संक्रामक बीमारी है।

बैक्टीरिया से बच्चों को होने वाले जानलेवा निमोनिया को टीकाकरण से ही रोका जा सकता है। इसके लिए बच्चों को न्यूमोकोकल कॉन्‍जुगेट वैक्‍सीन यानी पीसीवी का टीका डेढ़ माह, ढाई माह, साढ़े तीन महीने और नौ महीने पर एक बूस्टर डोज लगवाना अनिवार्य है।

उन्होंने बताया कि निमोनिया सांस से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है। इस बीमारी में बैक्टीरिया, वायरस या फंगल की वजह से फेफड़ों में संक्रमण हो जाता है। आमतौर पर निमोनिया बुखार या जुकाम होने के बाद होता है। यह 10- 12 दिन में ठीक भी हो जाता है लेकिन कई बार यह खतरनाक भी होता है। 5 वर्ष से कम उम्र के छोटे बच्चों और 60 साल से अधिक उम्र के लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती, इसलिए इन लोगों पर निमोनिया बीमारी का असर बहुत ही जल्द होता है। बच्चों को भीड़ भाड़ वाली जगहों पर ले जाने से बचें।

इन लक्षणों से निमोनिया की करें पहचान :

– तेज बुखार होना।
– खांसी के साथ हरा या भूरा गाढ़ा बलगम आना।
– सांस लेने में दिक्कत होना।
– दिल की धड़कन बढ़ना।
– बुखार के साथ सांस की रफ्तार तेज होना।
– छाती में गड्ढे पड़ना।
– उलटी एवं दस्त होना।
– भूख कम लगना।
– होंठों का नीला पड़ना।
– कमजोरी या बेहोश होना।