कहानी इलाहाबाद हाईकोर्ट कैंपस में बनी उस मस्‍जिद की, सुप्रीम कोर्ट को जिसे तोड़ने का आदेश देना पड़ा

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वकीलों के नमाज के लिए दी थी जगह!

इलाहाबाद हाई कोर्ट कैंपस में मौजूद इस मस्जिद के 150 साल से भी ज्यादा पुराना होने का दावा किया जा रहा है। वक्फ मस्जिद हाईकोर्ट की ओर से दलील देते हुए वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में मस्जिद के इतिहास पर संक्षिप्त प्रकाश डाला है। उन्होंने बताया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की मौजूदा बिल्डिंग 1861 में बनी थी। तब वहां मुस्लिम एडवोकेट, क्लर्क और मुवक्किलों के नमाज और वजू के लिए उत्तरी कोने में छोटी सी व्यवस्था कर दी गई थी।

जिस बरामदे में तब नमाज पढ़ी जा रही थी, बाद में उसके पास जजों के चैंबर बना दिए गए। मुस्लिम वकीलों का एक प्रतिनिधिमंडल इसके बाद हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार से मिला। रजिस्ट्रार ने उन्हें नमाज अदा करने के लिए परिसर के दक्षिणी छोर पर थोड़ी सी जगह दे दी। बाद में एक व्यक्ति ने अपनी सरकारी अनुदान के तहत मिली जमीन पर बनी निजी मस्जिद में वकीलों को नमाज अदा करने के लिए जगह दे दी।

निजी मस्जिद बन गई सार्वजनिक

यही निजी मस्जिद धीरे-धीरे सार्वजनिक मस्जिद में बदल गयी। साल 1988 में मस्जिद वाली इस जमीन की लीज 30 सालों के लिए बढ़ा दी गई। साल 2017 में यह लीज समाप्त होनी थी लेकिन उससे पहले ही 15 दिसंबर 2000 को यह पट्टा रद्द कर दिया गया। इसके बावजूद मस्जिद में नमाज पढ़ी जा रही थी।

वक्फ मस्जिद की दलील है कि मस्जिद हाई कोर्ट के बाहर सड़क के उस पार स्थित है। ऐसे में यह कहना गलत है कि मस्जिद हाई कोर्ट परिसर के भीतर है। मस्जिद पक्ष का दावा है कि साल 2017 में प्रदेश में सरकार के बदलने के बाद ही मस्जिद हटाने का मुद्दा उछाला गया है। प्रदेश में योगी सरकार के गठन के 10 दिन बाद ही मस्जिद बटाने के लिए याचिका दायर की गई है।

हाईकोर्ट के निर्माणाधीन बिल्डिंग के पीछे है मस्जिद

बता दें कि प्रयागराज के सिविल लाइंस के नजूल प्लाट संख्या-59 रकबा 8019.57 वर्गमीटर के एक हिस्से को वक्फ मस्जिद का रूप दिया गया था। 11 जनवरी 2001 को कलेक्टर इलाहाबाद ने यही नजूल जमीन महाधिवक्ता कार्यालय भवन और हाईकोर्ट भवन निर्माण के लिए निर्धारित कर इसकी लीज निरस्त कर दी थी। 2 सितंबर 2001 को बंगले का 10 लाख रुपये का मुआवजा भी दिया गया था। लीज निरस्त करने को हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी गई थी। शुरुआत में को स्थगन आदेश मिल गया, लेकिन सात दिसंबर 2001 को यह याचिका खारिज कर दी गई।

जनहित याचिका हुई दाखिल

इसके बाद साल 2017 में हाईकोर्ट के अधिवक्ता अभिषेक शुक्ल ने मूल जनहित याचिका दाखिल कर अतिक्रमण हटाने की मांग की। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डीबी भोसले और न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने याचिका स्वीकार करते हुए अतिक्रमण कर हाईकोर्ट की जमीन में बनी मस्जिद हटाने का आदेश दिया था। हालांकि, मस्जिद वक्फ ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मस्जिद जिस जमीन पर बनी है, उसकी लीज का समय खत्म हो गया है। ऐसे में मस्जिद को वहां पर बनाए रखने का दावा नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि वक्फ मस्जिद हाईकोर्ट और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड तय समय सीमा 3 महीने में मस्जिद नहीं हटाता है तो हाईकोर्ट समेत संबंधित अधिकारियों को अधिकार होगा कि वे निर्माण को हटा या गिरा दें। पीठ ने याचिकाकर्ताओं को मस्जिद के लिए पास में ही जमीन देने के लिए यूपी सरकार के पास अपना पक्ष रखने की अनुमति भी दी है।

कोर्ट ने मस्जिद के लिए वैकल्पिक जमीन देने को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले की पैरवी कर रहे वकील से सवाल किया तो जवाब मिला कि यह पूरी तरह से धोखाधड़ी का मामला है, जिसे धार्मिक रंग दिया जा रहा है। साल 2002 में जमीन से बेदखली को रोकने के लिए मस्जिद को वक्फ के रूप में पंजीकृत कराया गया था, जो कि नियम विरुद्ध है। 20 साल तक वह इसी स्थिति में रहे। अब वे कहते हैं कि सरकार बदलने के कारण ऐसा है और हाईकोर्ट के निर्देश पर भी धार्मिक रंग लगा रहे हैं।

वैकल्पिक जमीन देने का रास्ता है?

हाईकोर्ट के पक्षकार ने कहा कि वैकलपिक जमीन के सवाल को फैसले से जोड़ने की जरूरत नहीं है। उन्हें पहले हाई कोर्ट की जमीन को खाली करना चाहिए। वे इस बाद का सौदा नहीं कर सकते कि वे जमीन को तभी खाली करेंगे जब उन्हें वैकल्पिक जमीन दी जाएगी। उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट ने सभी पक्षों पर विचार किया है और मस्जिद हटाने को लेकर मुआवजा भी दिया है।

Compiled: up18 News