जर्मनी औऱ फ्रांस में तेजी से बढ़ रही हैं सेक्स से जुड़ी बीमारियां

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देश में पिछले एक साल से युवा महिलाओं के लिए गर्भनिरोधक गोलियां और आईयूडी जैसी चिकित्सा सुविधाएं पहले से ही मुफ्त हैं. पहले कोई भी डॉक्टर सिर्फ 18 साल से कम उम्र की लड़कियों को ही गर्भनिरोधक गोलियां मुफ्त में दे सकता था, फिर सरकार ने इस सुविधा का दायरा बढ़ाते हुए फैसला किया कि 25 साल से कम उम्र की सभी महिलाओं को गर्भनिरोधक गोलियां मुफ्त में मिले.

फ्रांस की सरकार इस कदम के सहारे यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि देश में किसी भी व्यक्ति की सेहत और सुरक्षा को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा. देश के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने इस नई नीति को यौन संचारित रोगों (एसटीडी) के प्रसार को रोकने के लिए ‘छोटी रोकथाम क्रांति’ के तौर पर बताया है. दरअसल, फ्रांस में कथित तौर पर 2020 और 2021 में एसटीडी में 30 फीसदी की वृद्धि हुई है.

वहीं, जब प्रजनन से जुड़े स्वास्थ्य देखभाल की बात आती है, तो जर्मनी इस मामले में थोड़ा पिछड़ा हुआ दिखाई देता है. यहां महिलाओं को गोली या इंट्रायूटरिन डिवाइसों (आईयूडी) जैसे गर्भ निरोधकों के लिए पैसे चुकाने पड़ते हैं. हालांकि, 22 वर्ष से कम आयु के लोग अपने पर्चे के आधार पर दावा करके बीमा कंपनियों से इसका पैसा वापस पा सकते हैं.

इन सब के बीच जब बात यौन रोगों से सुरक्षा की हो, तो गोली या इंट्रायूटरिन डिवाइस (आईयूडी) कारगर नहीं हैं. इनका इस्तेमाल करने से अनचाहे गर्भधारण से बचने और छुटकारा पाने में मदद मिलती है, लेकिन यौन रोगों से बचाव नहीं हो पाता. यौन रोगों से बचाव का सबसे बेहतर उपाय है कंडोम का इस्तेमाल करना और इसे खरीदने के लिए जर्मनी में पैसे चुकाने होते हैं.

यूरोप में तेजी से बढ़ रहा एसटीडी संक्रमण

यूरोपियन सेंटर फॉर डिजीज प्रिवेंशन एंड कंट्रोल के संक्रामक रोगों के सर्विलांस एटलस से पता चलता है कि पूरे यूरोपीय संघ में हाल के वर्षों में एसटीडी के मामले बढ़े हैं. पूरे यूरोप में गोनोरिया के मामले 2009 के बाद तेजी से बढ़े हैं. हालांकि, 2019 के बाद इसमें तेजी से गिरावट दर्ज की गई. शायद इसकी वजह यह है कि कोरोना महामारी के कारण लोगों का आपस में मिलना-जुलना कम हुआ और जांच भी कम हुई. सबसे ज्यादा मामले स्पेन, नीदरलैंड और फ्रांस में दर्ज किए गए हैं. 25 से 34 वर्ष की उम्र के लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं.

सर्विलांस एटलस से पूरे यूरोप में क्लैमिडिया संक्रमण के मामलों का पता नहीं चलता. हालांकि, पुष्टि किए गए मामलों की संख्या से यह साफ तौर पर जाहिर होता है कि 1990 के दशक की शुरुआत से लेकर 2019 तक संक्रमण के मामले तेजी से बढ़े. इससे संक्रमित होने वाले ज्यादातर लोगों की उम्र 15 से 24 वर्ष के बीच थी. वहीं, अगर सिफिलिस के मामले को देखा जाए, तो यह और चिंताजनक तस्वीर दिखाती है. यह बीमारी हाल के वर्षों में काफी तेजी से बढ़ी है. हालांकि, 2019 में इस बीमारी के प्रसार में अचानक गिरावट भी दर्ज की गई.

कंडोम मायने क्यों रखता है

गोनोरिया और क्लैमिडिया जैसे यौन रोगों के प्रसार को रोकने में कंडोम काफी ज्यादा प्रभावी साबित होता है. किसी लक्षण की मदद से इन दोनों रोगों की पहचान करना मुश्किल होता है. हालांकि, अगर समय रहते पता चल जाता है, तो इनका इलाज किया जा सकता है. अन्यथा, ये किसी व्यक्ति को काफी ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं. क्लैमिडिया की वजह से किसी महिला की बच्चे पैदा करने की क्षमता तक प्रभावित हो सकती है.

वहीं, सिफिलिस इन सबसे भी ज्यादा खतरनाक है. यह रोग ट्रेपोनिमा पैलिडम नामक जीवाणु के कारण होता है. अगर समय रहते इसका इलाज न किया जाए, तो इससे स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं. यह मस्तिष्क, तंत्रिका तंत्र, आंख और कान तक फैल सकता है और उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है. यह रोग कई चरणों में होता है और हर चरण में इसके लक्षण बदलते हैं.

अधिकांश जर्मन किशोर करते हैं कंडोम का इस्तेमाल

जर्मनी में कंडोम मुफ्त में नहीं मिलता है, लेकिन यहां के किशोरों और युवाओं को पता है कि इसका इस्तेमाल करना कितना जरूरी है. जर्मनी के फेडरल सेंटर फॉर हेल्थ एजुकेशन ने देश के युवाओं के बीच एक सर्वे किया था. 2020 में प्रकाशित सर्वे के नतीजों के मुताबिक, 14 से 17 साल के किशोरों में से ज्यादातर ने सेक्स के दौरान कंडोम का इस्तेमाल किया. पांच साल पहले के सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि जर्मन किशोरों के बीच कंडोम का इस्तेमाल बढ़ गया है.

अध्ययन के दौरान सर्वे में जवाब देने वाले लोगों के शिक्षा के स्तर और गर्भनिरोधक का इस्तेमाल न करने या जोखिम भरे गर्भनिरोधक उपायों पर भरोसा करने की संभावनाओं के बीच भी लिंक पाया गया. सर्वे में शामिल लोगों ने कहा कि उन्होंने स्कूल में और इंटरनेट पर यौन शिक्षा की कक्षाओं के जरिए और अपने माता-पिता से सेक्स से जुड़ी जानकारी पायी. साथ ही, प्रजनन से जुड़े स्वास्थ्य के बारे में जाना.

जरूरी है यौन शिक्षा

सभी माता-पिता के लिए यह संभव नहीं है कि वे अपने बच्चों को प्रजनन से जुड़े स्वास्थ्य और यौन संचारित रोगों के बारे में शिक्षित कर सकें. कई बार वे अपने बच्चों से इस मामले पर बात करने में सहज महसूस नहीं करते हैं. वहीं, यह जरूरी नहीं है कि ऑनलाइन प्लैटफॉर्म पर मिलने वाला कंटेंट हमेशा सही हो. यहां कई भ्रामक और गलत कंटेंट भी हो सकते हैं. ऐसे में स्कूल यौन शिक्षा देने में अहम भूमिका निभा रहे हैं.

पश्चिमी जर्मनी में 1968 में और पूर्वी जर्मनी में 1959 में यौन शिक्षा देने की शुरुआत की गई थी. आज जर्मनी के स्कूलों में यह नियम बन चुका है. जीव विज्ञान की कक्षाओं में इसके बारे में जानकारी दी जाती है. हालांकि, कुछ ही जर्मन कक्षाओं में छात्रों को एसटीडी के प्रसार और उससे जुड़े जोखिमों के बारे में बताया जाता है. उदाहरण के लिए, एक अध्ययन में पाया गया है कि अधिकांश जर्मन पाठ्यक्रमों में क्लैमिडिया का जिक्र ही नहीं है.

वहीं, पिछले 20 वर्षों से फ्रांस में मध्य विद्यालय के छात्रों के लिए यौन शिक्षा की तीन कक्षाओं में शामिल होना अनिवार्य कर दिया गया है. हालांकि, फ्रांस के दैनिक अखबार ‘ले मोंड’ की रिपोर्ट के मुताबिक, हकीकत में हर जगह इस व्यवस्था का सही तरीके से पालन नहीं किया जाता. अखबार ने एक ऑडिट के हवाले से कहा कि अलग-अलग स्कूलों, कक्षाओं और इलाकों के बीच इस मामले में काफी ज्यादा अंतर पाया गया है.

इमानुएल माक्रों ने मुफ्त कंडोम नीति की घोषणा के वक्त कहा था कि जहां तक यौन शिक्षा की बात है, तो फ्रांस इस क्षेत्र में अच्छा काम नहीं कर रहा है. उन्होंने कहा कि हकीकत सिद्धांतों से काफी अलग है. इस क्षेत्र में हमें अपने शिक्षकों को अच्छी तरह से प्रशिक्षित करने और उन्हें इस मुद्दे के प्रति फिर से संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है. इससे पहले, देश के शिक्षा मंत्री पैप न्दियाये ने कहा था कि यौन शिक्षा ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य’ कर्तव्य है. इससे कम उम्र में गर्भधारण रोकने, एसटीडी संक्रमण को कम करने और भेदभाव से मुकाबला करने में मदद मिलेगी.

Compiled: Agency