आधी हकीकत आधा फ़साना: आगरा की संदली मस्ज़िद जंहा जिन्नातों द्वारा मन्नत को किया जाता है पूरा…

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आगरा: ताजमहल के पूर्वी गेट पर एक ऐसी मस्जिद मौजूद है जहाँ पर हर समय बिल्लियों का डेरा जमा रहता है। इस मस्जिद को संदली मस्ज़िद यानी काली मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है। इसी मस्जिद में शाहजहां की पहली बेगम कंधारी बेगम का मकबरा बना हुआ है। लोगों का कहना है कि यह एक जिन्नती मस्जिद है और यहां मन्नत मांगने पर जिन्नातों द्वारा मन्नत को पूरा भी किया जाता है। आइए आपको बताते हैं संदली मस्जिद की क्या है पूरी कहानी।

शाहजहां की पहली बेगम का मकबरा

आगरा में वैसे तो बहुत सारी मुगलिया इमारते हैं जिन्हें देखने के लिए सात समुंदर पार से लोग खिंचे चले आते हैं। लेकिन हम आपको आज ताजमहल के पूर्वी गेट पर एक ऐसी ही इमारत के बता रहे हैं जिसे संदली यानी काली मस्जिद के नाम से जाना जाता है। इसी मस्जिद में शाहजहां की पहली बेगम कंधारी का मकबरा बना हुआ है। ये मकबरा संदली मस्जिद परिसर में मौजूद है।

इस मस्जिद को काली मस्जिद, जिन्नातों की मस्जिद और संदली मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है। इसे जिन्नातों की मस्जिद इसलिए कहते हैं क्योंकि कहा जाता है कि यहां पर जिन्नातों का साया हर वक्त रहता है। लोग उन्हें बिल्लियों के रूप में देखते और महसूस करते है। इसके साथ ही बिल्लियों से मांगी हुई मुरादें जल्द ही कुबूल होती है। इस मस्जिद में ऊपरी चक्कर का भी इलाज किया जाता है।

बिल्लियों के रहने की यह है मान्यता

शाहजहां की पहली बेग़म कांधारी की मजार पर आज भी सैकड़ों की तादात में बिल्लियां रहती हैं। ख़ास बात यह है कि बिना किसी बैर के स्वान, बिल्ली और बंदर एक साथ रहते हैं। संदली मस्जिद को शाहजहां की पहली बेगम कांधारी बेग़म की याद में बनवाया गया था। इसी परिसर में कांधारी बेगम की मजार भी है। जहां कांधारी बेगम को दफ़नाया गया था, उस परिसर में सैकड़ों की तादात में बिल्लियां रहती हैं और इन बिल्लियों के ऊपर जिन्नातों का साया माना जाता है।

कहा जाता है कि शाहजहां की सबसे बड़ी बेगम कंधारी को भोग विलास का जीवन जीना पसंद नहीं था। यही वजह थी कि शाहजहां इन्हें बेहद कम पसंद करते थे। उन्हें जानवरों से बेहद प्रेम था जिस वजह से आज भी उनकी मजार व पूरे मस्ज़िद परिसर में बिल्ली और बंदर एक साथ बड़े प्रेम से रहते हुए आपको देखने को मिल जाएंगे।

लोग मांगते हैं मुरादें

यहां के स्थानीय निवासी और मस्जिद की देखरेख करने वाले लोग बताते हैं कि लोग दूर-दूर से बिल्लियों को खाना खिलाने के लिए आते हैं। ऐसी मान्यता है कि आप का दिया हुआ खाना अगर बिल्लियां खा लेती हैं तो आपकी मुराद पूरी हो जाती है। इसके साथ ही कई सारे लोग ऐसे भी हैं जो इस मस्जिद में मन्नत के धागे की जगह पॉलिथीन बांधते हैं, बकायदा ख़त छोड़ते हैं और कुछ समय बाद उनकी मुराद पूरी हो जाती है। बाद में फिर पूरी हुई मन्नत के धागे को खोलने के लिए भी आते हैं।

डिस्क्लेमर- हमारा उद्देश्य किसी भी अंधविश्वास को बढ़ावा देना नही है । ये लेख प्रचलित किदवंती के आधार पर लिखा गया है । हम इन बातों की पुष्टि नही करते है।