बुढ़ापा क्या है? कहते हैं बुरी बली है. न मुंह में दांत रह जाते हैं. न पेट में आंत ठीक से काम करती है. पेट भरने के लिए या तो बदमज़ा सूप पीना पड़ता है.
या फिर हर चीज़ को नरम करके खाना पड़ता है. अब ज़िंदगी है तो जीनी ही पड़ेगी. ऐसे में बुज़ुर्गों को उनकी पसंद का खाना खिलाना, उन्हें खुश रखना, उनकी देखभाल करना नौजवानों की ज़िम्मेदारी है.
और इसी ज़िम्मेदारी को रचनात्मक तरीक़े से निभा रही है जर्मनी की कंपनी बायोज़ून. ये कंपनी बुज़ुर्गों के लिए 3D प्रिटेंड खाना तैयार कर रही है. 3D प्रिंटेड खाने का नाम सुनकर हो गए ना आप भी हैरान. माजरा क्या है चलिए आपको बताते हैं.
बायोज़ून नाम की कंपनी ने ब़ुज़ुर्गों के लिए थ्री-डी तकनीक की मदद से खाना तैयार करने का फ़ॉर्मूला तैयार किया है. यानी कंप्यूटर की मदद से बुज़ुर्गों की उम्र का ख्याल करते हुए मसाले और सभी पोषक तत्व सम्मिलित करके पहले खाने का एक ब्लू प्रिंट तैयार किया जाता है.
फिर उन्हीं मसालों और सामग्री का इस्तेमाल करके रसोई में खाना तैयार होता है. मिसाल के लिए इस कंपनी ने 3D तकनीक से पहले गोभी से रोस्टेड चिकन जैसी ड्रम स्टिक की एक तस्वीर तैयार की और फिर इसे रसोई में तैयार किया.
संतुलित भोजन
आख़िर बुज़ुर्गों का भी तो मन करता ही होगा चिकन स्टिक खाने का. लेकिन ना तो चिकन स्टिक चबाने के लिए उनके मुंह में दांत होते हैं और ना ही उसे निगलने की क्षमता. यही नहीं चिकन का प्रोटीन पचाने की क्षमता उम्र बढ़ने के साथ काम हो जाती है.
पर ब़ुज़ुर्ग साहेबान मायूस न हों. अब उनके लिए गोभी से बनी मगर चिकन ड्रम स्टिक के स्वाद वाला व्यंजन तैयार है. ये है तो गोभी की लेकिन स्वाद में चिकन ड्रमस्टिक से कम नहीं है. इस प्रोजेक्ट से जुड़े लोगों की कोशिश है कि बुज़ुर्गों को अलग-अलग स्वाद वाले संतुलित भोजन मिलते रहें जिसे वो खुशी से खा सकें.
इस दिशा में काम करने वालों को बहुत हद तक कामयाबी भी मिली है. बायोज़ून कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मैतियास क्युक का कहना है कि तजुर्बे के दौरान इस प्रोजेक्ट में हिस्से लेने वाले बुज़ुर्गों का एक किलो 700 ग्राम तक वज़न बढ़ गया था.
एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 2050 तक दुनिया में हर छठवें इंसान की उम्र 65 साल होगी. यूरोप और अमरीका में तो हर चौथा इंसान 65 साल का होगा. 80 साल के बुज़ुर्गों की संख्या तो 2050 में लगभग 43 करोड़ होगी जबकि 2019 में दुनिया भर के कुल 80 साल या इससे ज़्यादा उम्र वाले लोगों की संख्या 14 करोड़ से कुछ ही ज़्यादा थी.
बढ़ती उम्र के साथ
वर्ष 2050 तक सौ साल या इससे अधिक उम्र वाले बज़ुर्गों की संख्या तो 37 लाख तक पहुंच जाएगी. बढ़ती उम्र के साथ इंसान का पूरा शरीर कमज़ोर पड़ने लगता है. शरीर को सुचारु रूप से चलाने के लिए संतुलित भोजन खाना ही एक मात्र विकल्प है. बुज़ुर्ग चाहकर भी इस विकल्प का भरपूर इस्तेमाल नहीं कर सकते.
2009 में बेल्जियम में की गई एक रिसर्च के मुताबिक़ 75-80 वर्ष की उम्र वाले बुज़ुर्गों को खाना निगलने में तकलीफ़ थी. बढ़ती उम्र के साथ ब़ुज़ुर्गों में सूंघने की शक्ति भी कमज़ोर पड़ने लगती है. इस वजह से भी वो खाने की ख़ुशबू महसूस नहीं कर पाते. तभी तो खाना देखने या सूंघने के बाद भी खाने का मन नहीं होता.
इसी वजह से बुज़ुर्ग कुपोषण या बेवजह मोटापे का शिकार हो जाते हैं. फिर दवाओं के नकारात्मक प्रभाव भी अपनी जगह काम करते हैं. एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक़ 2015 में यूरोप में 50 वर्ष के उम्र वाले कुल आबादी का पांचवां हिस्सा मोटापे का शिकार थे. और अमरीका में यही आंकड़ा 30 फ़ीसद आबादी का था.
मांसपेशियां मज़बूत करने के लिए
बढ़ती उम्र के साथ वैसे भी हमारे खाने की आदतें बदलने लगती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि खाने की बदलती आदतें हमें ज़्यादा बीमारियों की तरफ़ धकेल देती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार किसी भी बुज़ुर्ग के खाने में प्रोटीन, विटामिन, खास तौर से विटामिन-बी कॉम्पलेक्स और विटामिन-डी प्रचुर मात्रा में होना चाहिए.
ये बुज़ुर्गों में हड्डियां और मांसपेशियां मज़बूत करने के लिए ज़रूरी हैं. इसके अलावा, फ़ाइबर, खनिज-लवण, ओमेगा-थ्री फैट भी उचित मात्रा में देना चाहिए. ज़्यादा बेहतर प्रोटीन के लिए मछली और सीपदार मछली भी दी जा सकती है.
यूरोपीय देशों में हुए एक अध्ययन पता चलता है कि अक्सर 64 या उससे ज़्यादा उम्र का हर पांचवां इंसान विटामिन-डी, फ़ोलिक एसिड, कैल्शियम, आयोडीन और सेलेनियम लेता ही नहीं. बुज़ुर्ग वैसे भी एक छोटे बच्चे के समान होते हैं. उन्हें खाने के लिए मनाना और खिलाना दोनों ही एक चुनौती भरा काम है.
थ्री-डी प्रिंटिंग में लाल रंग का इस्तेमाल
अब ऐसे में इन लोगों को पोषक तत्वों से भरपूर खाना कैसे खिलाया जाए. जानकार कहते हैं कि बुज़ुर्गों को अक्सर पतला खाना दिया जाता है जो देखने में एक जैसा लगता है. इसलिए ज़रूरी है कि खाना परोसने के अंदाज़ में बदलाव किया जाए. बायोज़ून कंपनी ने इसके लिए थ्री-डी प्रिंटिंग में लाल रंग का इस्तेमाल किया.
और फिर जब खाना बनाया तो उसमें प्यूरी का इस्तेमाल करके वही रंग दिया. इससे वो व्यंजन दिलकश लगने लगा. स्वीडन में भी कुछ लोग थ्री-डी तकनीक के साथ बुज़ुर्गों के लिए खाना बनाने का काम कर रहे हैं. ये कंपनी ब्रॉक्ली, चिकन और रोटी को मिलाकर प्रोटीन का ऐसा मिक्सचर तैयार करते हैं, जिसे ओवन में गर्म करके खाया जा सकता है.
एशिया में सिंगापुर पॉलीटेक्नीक और मेसी यूनिवर्सिटी ने मिलकर थ्री-डी चिकन राइस बनाया. इसमें ब्रॉक्ली प्यूरी का इस्तेमाल किया गया. इसी की मदद से चिकन ड्रमस्टिक भी तैयार की जो कि हरी, और सफेद रंग की थी. देखने में अच्छी लग रही थी.
3D तकनीक से कई कंपनियां बुज़ुर्गों के लिए दुनिया के मशहूर पकवान तैयार कर रही हैं. हालांकि अभी ये सभी प्रयास शुरुआती दौर में हैं. कोशिश की जा रही है कि इसे कामयाबी के साथ बाज़ार में उतारा जाए. ताकि ज़्यादा से ज़्यादा बुज़ुर्गों को उनकी पसंद और ज़रुरी पोषक तत्वों से भरपूर खाना मिलता रहे.
साथ ही खाने की पैकेजिंग पर खास ध्यान दिया जा रहा है. ताकि अकेले रहने वाले बुज़ुर्ग भी आसानी से खाना गर्म करके खा सकें.
-BBC
Discover more from Up18 News
Subscribe to get the latest posts sent to your email.