होम अप्लायंसेज से निकलने वाली ब्लू लाइट का पड़ता है आपकी उम्र पर गहरा असर

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स्मार्टफोन, कंप्यूटर और होम अप्लायंसेज से निकलने वाली ब्लू लाइट का आपकी उम्र पर गहरा असर पड़ता है। इस ब्लू लाइट में ज्यादा समय तक रहने से नींद की दिक्कत और सर्केडियन जैसे डिसऑर्डर हो सकते हैं।

एक स्टडी में यह बात सामने आई है कि जब स्क्रीन आपकी आंखों की सीध नहीं होती है तब भी यह आपको नुकसान पहुंचा सकती है। ब्लू लाइट आपकी लंबी उम्र घटा सकती है या बुढ़ापे में तेजी ला सकती है।

इस बारे में एजिंग एंड मेकैनिज्म्स ऑफ डिजीज जर्नल में पब्लिश हुई स्टडी के मुताबिक LED (लाइट एमिटिंग डायोड) से निकलने वाली ब्लू वेव लेंथ मस्तिष्क की कोशिकाओं और आंखों की पुतलियों को नुकसान पहुंचाती है।

ब्लू लाइट से कैसे होता है नुकसान?

स्टडी कॉमन फ्रूट फ्लाई ड्रॉसोफिला मेलानोगैस्टर पर हुई थी। इस मक्खी का सेलुलर और डिवेलपमेंटल मेकैनिज्म दूसरे जानवरों और इंसानों की तरह होने से इसे स्टडी में शामिल किया गया था। अनुसंधानकर्ताओं ने इन मक्खियों को 12 घंटे तक ब्लू एलईडी लाइट में एक्सपोज किया, जिसकी वेवलेंथ होम अप्लायंसेज से निकलने वाली ब्लू लाइट के बराबर थी। उन्होंने मक्खियों पर उस लाइट के असर की पड़ताल की तो पाया कि लाइट से उनकी उम्र बढ़ने की रफ्तार तेज हो गई।

आंख और ब्रेन को होता है नुकसान

शोध जिन मक्खियों पर किया गया था, उनके मस्तिष्क की कोशिकाओं और आंखों की पुतलियों को एलईडी लाइट्स से नुकसान पहुंचा था। उनसे उनकी लोकोमोशन कैपेबिलिटीज यानी दीवारों पर चढ़ने की क्षमता कम हो गई थी। इनमें कुछ म्यूटेंट फ्लाई को शामिल किया गया था, जिनकी आंखें नहीं बनी थीं। आंख नहीं होने के बावजूद ब्लू लाइट के चलते उन मक्खियों में ब्रेन डैमेज और लोकोमोशन डिसऑर्डर देखा गया था। इससे पता चलता है कि लाइट आंखों पर सीधी पड़े या नहीं, यह उन्हें पूरा नुकसान पहुंचा सकती है।

मक्खियों की उम्र तेजी से बढ़ने लगी

स्टडी की लीड रिसर्चर और इंटीग्रेटिव बायोलॉजी की प्रोफेसर Jaga Giebultowicz ने बताया, ‘लाइट से मक्खियों की उम्र तेजी से बढ़ रही है यह जानकर पहले हमें काफी हैरानी हुई। हमने पुरानी मक्खियों में कुछ जींस चेक किए तो पाया कि जिन्हें लाइट में रखा गया था उनमें स्ट्रेस-रिस्पॉन्स और प्रोटेक्टिव जींस हैं। उसके बाद हमने पता लगाना शुरू किया कि आखिर लाइट में ऐसा क्या है जिससे मक्खियों को नुकसान पहुंच रहा है। फिर हमने लाइट के स्पेक्ट्रम पर गौर किया।’

स्लीप डिसऑर्डर का भी खतरा

Giebultowicz ने बताया कि नेचुरल लाइट बॉडी के सर्केडियन रिदम यानी ब्रेन वेव एक्टिविटी, हॉर्मोन प्रोडक्शन और सेल रीजनरेशन जैसी एक्टिविटीज के 24 घंटे की साइकिल को दुरुस्त रखने के लिए जरूरी होती है। यह सोने और खाने के पैटर्न तय करने में मददगार होती है। उन्होंने कहा, ‘आर्टिफिशल लाइट का एक्सपोजर बढ़ने से सर्केडियन और स्लीप डिसऑर्डर का खतरा बनता है।’ हालांकि रिसर्चर्स ने कुछ ऐसी चीजें बताई हैं जिनसे आप ब्लू लाइट के असर से खुद को बचा सकते हैं।

क्या है बचाव का तरीका?

रिसर्चर्स का कहना है कि घंटों अंधेरे में बैठे रहने से बचना चाहिए और एंबर लेंस वाले चश्मे का इस्तेमाल करना चाहिए। ये चश्मे ब्लू लाइट को आंख तक नहीं पहुंचने देते और रेटीना को सुरक्षित रखते हैं। फोन, लैपटॉप और दूसरी डिवाइसेज को ब्लू एमिशन ब्लॉक करने के लिए भी सेट किया जा सकता है।

-एजेंसियां