स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती के हत्‍यारे अब्दुल राशिद को खुद गांधी के बयान ने ही बचाया था

Religion/ Spirituality/ Culture

हरिद्वार के प्रसिद्ध गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के संस्थापक स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती अपने जालंधर के ही रहने वाले थे। अड्डा होशियारपुर में उनका घर था। उनका जन्म 22 फ़रवरी 1856 में तलवण में हुआ था।

स्वामीजी का पारिवारिक नाम लाला मुंशी राम था। वह शहर के बड़े वकीलों में शुमार थे। आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती से उन्होंने दीक्षा ली थी। वह आज भी ऐसे पहले गैर इस्लामिक नेता हैं जिन्होंने जामा मस्जिद से दो बार लोगों संबोधित किया था। वह सर्वधर्म समाज का सपना देखते थे।

‘मोहनदास कर्मचंद गांधी को महात्मा की उपाधि देने वाले स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती के हत्यारे को खुद गांधी के बयान ने ही बचाया था। 23 दिसम्बर 1926 में जिस अब्दुल राशिद नाम के व्यक्ति ने उनकी हत्या की थी गांधी ने उसका बचाव ‘मेरा भाई’ कहकर किया था।’

अब्दुल राशिद को रंगे हाथ पकड़ा गया था लेकिन फिर भी दो साल बाद वह बरी हो गया। इसमें महात्मा गांधी का बड़ा योगदान था। गांधी ने स्वामीजी की हत्या के बाद एक मंच से कहा था कि ‘राशिद मेरा भाई है और मैं बार बार यह कहूंगा। हत्या के लिए मैं उसे दोषी नहीं ठहराता। दोषी वह लोग हैं जो एक दूसरे के खिलाफ नफरत फैलाते हैं। उसकी कोई गलती नहीं है और उसे ही दोषी ठहराकर किस का भला होगा।’ अगर किसी की वकालत खुद गांधी कर रहे हों तो कौन सा कानून आरोपी को सजा देता। गांधीजी प्रयासों से राशिद को छोड़ दिया गया। यह जानते हुए भी कि स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती उस समय देश के सबसे बड़े हिंदू धर्मगुरू थे।

किसी ने चंदा नहीं दिया तो पहले अपनी हवेली दान की

स्वामी जी गुरुकुल खोलना चाहते थे। गांव गांव जाकर चंदा मांगा लेकिन किसी ने सहयोग नहीं दिया। जालंधर में उनके पुरखों की खूब जमीन जायजाद जो थी। जिसकी मलकियत स्वामीजी के नाम थी। अपने बेटों से विमर्श के बाद सारी जमीन आर्य समाज को दान दे दी। फिर कांगड़ी के सरपंच ने गांव की सारी जमीन स्वामी जी को दान कर दी। आज उस जगह विश्व का सबसे बड़ा गुरुकुल स्थापित है। 23 दिसंबर 1926 को अब्दुल राशिद नाम के एक कट्टरवादी ने उनसे समाज सेवा पर चर्चा के लिए समय लिया। स्वामीजी उस वक्त निमोनिया से पीड़ित थे। राशिद ने लोई में छिपा रखी पिस्तौल से उनपर गोलियां दाग दीं और शहीद कर दिया। राशिद को मौके पर ही पकड़ लिया गया था।

‘दलितों को धार्मिक स्थलों में प्रवेश नहीं दिए जाने से वह बहुत आहत थे। मनुष्य का मनुष्य से ऐसा बरताव उन्हें कचोटता था। स्वामीजी ने दलितों के साथ हो रहे छूआछूत का मुखर विरोध किया और हवन यज्ञ में साथ बिठाकर सदियों से चली रही असमानता को खत्म करने का काम किया। उस समय कट्टरवादियों ने उनका विरोध भी किया लेकिन वह सामाजिक असमानता के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे।

-एजेंसी