सरस्वती नदी से जुड़ी है ‘रानी की वाव’, यूनेस्को ने दी है बावड़ियों की रानी की उपाधि

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यूनेस्को की वेबसाइट के अनुसार क्लीनेस्ट Iconic Place घोषित की गई रानी की वाव सरस्वती नदी से जुड़ी है। यूनेस्को ने इसे बावड़ियों की रानी की उपाधि दी है।

हाल ही में आरबीआई ने 100 रुपए के नोट का नया डिजाइन जारी किया है। गहरे बैगनी रंग के इस नोट की सबसे खास बात है इस पर प्रिंट ऐतिहासिक स्थल रानी की वाव।

रानी की वाव को रानी की बावड़ी भी कहा जाता है। यह गुजरात के पाटन ज़िले में स्थित एक प्रसिद्ध बावड़ी (वाव) है जिसे यूनेस्को ने चार साल पहले 2014 में विश्व विरासत में शामिल किया था। यूनेस्को की वेबसाइट के अनुसार रानी की वाव सरस्वती नदी से जुड़ी है। यूनेस्को ने इसे बावड़ियों की रानी की उपाधि दी है। इसे ग्यारहवीं सदी के एक राजा की याद में बनवाया गया था। इसकी स्थापत्य शैली और जल संग्रह प्रणाली के उत्कृष्ट उदाहरण को समझाने के लिए इसका इस्तेमाल नोट पर किया गया है। 2016 में रानी की वाव को क्लीनेस्ट ऑइकॉनिक प्लेस का खिताब भी दिया गया था।

राजा भीमदेव प्रथम की पत्नी रानी उदयमती ने यह वाव 11 सदी के उत्तरार्ध काल के दौरान बनवाई थी

रानी की वाव अहमदाबाद से लगभग 140 किलोमीटर उत्तर पश्चिमी भाग में, पाटन शहर के पास बसी हुई है, जो सोलंकी वंशजों की प्राचीनतम राजधानी हुआ करती थी। सोलंकी वंशज पहली सहस्त्राब्दी के बदलते युग के दौरान इस क्षेत्र पर शासन करते थे। राजा भीमदेव प्रथम की पत्नी रानी उदयमती ने यह वाव 11 सदी के उत्तरार्ध काल के दौरान बनवाई थी।

इस वावड़ी के निर्माण के पीछे का मुख्य कारण था पानी का प्रबंध, क्योंकि इस क्षेत्र में बहुत ही कम बारिश होती थी। पुरानी कहानियों के अनुसार इसके पीछे दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि रानी उदयमती जरूरतमंद लोगों को पानी प्रदान करके पुण्य कमाना चाहती थी। कुछ लोगों का मानना है कि यहां की शिल्पकारी देख कर इस वाव के एक मंदिर होने का भ्रम होता है।

प्राचीन जानकारों के अनुसार यह बावड़ी तक़रीबन 64 मीटर लम्बी, 27 मीटर गहरी और 20 मीटर चौड़ी है। अपने समय की सबसे प्राचीन और सबसे अद्भुत निर्माण में इस बावड़ी को शामिल किया गया है। रानी की वाव भूमिगत जल संसाधन और जल संग्रह प्रणाली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है जो भारतीय महाद्वीप में बहुत लोकप्रिय रही है। इस तरह के सीढ़ीदार कुएं का ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी से वहां निर्माण किया जा रहा है।

सात मंज़िला इस वाव में मारू-गुर्जर स्थापत्य शैली का सुं‍दर उपयोग किया गया है, जो जल संग्रह की तकनीक, बारीकियों और अनुपातों की अत्यंत सुंदर कला क्षमता की जटिलता को दर्शाता है।

रानी की बावड़ी में बहुत सी कलाकृतियां और मूर्तियों की नक्काशी की गई है जो कि भगवान विष्णु से संबंधित है। यहां भगवान विष्णु के दशावतार रूप में मूर्तियों का निर्माण किया गया है।

हिन्दू पौराणिक मान्यता के अनुसार विष्णु के दस अवतार जिनमें कल्कि, नरसिम्हा, वामन, राम, कृष्णा, वाराही और दूसरे मुख्य अवतार की कलाकृति उकेरी गई है। इसके अलावा दुर्गा, लक्ष्मी, पार्वती, गणेश, ब्रह्मा, कुबेर, भैरव, सूर्य समेत कई देवी-देवताओं की कलाकृति भी देखने को मिलती है।

जल की पवित्रता और इसके महत्व को समझाने के लिए इसे औंधे मंदिर के रूप में डिजाइन किया गया था। वाव की दीवारों और स्तंभों पर सैकड़ों नक्काशियां की गई हैं। सात तलों में विभाजित इस सीढ़ीदार कुएं में नक्काशी की गई 500 से अधिक बड़ी मूर्तियां हैं और एक हज़ार से अधिक छोटी मूर्तियां हैं। इसका चौथा तल सबसे गहरा है जो एक 9.5 मीटर से 9.4 मीटर के आयताकार टैंक तक जाता है।

इसके भीतर एक मंदिर और सीढियों की सात कतारें भी हैं जिसमें 500 से भी ज्यादा कलाकृतियां हैं। यहां स्त्री के सोलह श्रृंगार को मूर्तियों में दर्शाया गया है। बावड़ी में प्रत्येक स्तर पर स्तंभों से बना हुआ गलियारा है जो वहां की दोनों तरफ की दीवारों को जोड़ता है। इस गलियारे में खड़े होकर आप रानी के वाव की सीढ़ियों की खूबसूरती को देख सकते हैं। इन स्तंभों की बनावट देखकर ऐसा लगता है जैसे कि पत्थरों को ही कलश के आकार में ढाल दिया गया हो। इस प्रकार की शैली आप पूरे गुजरात में देख सकते हैं।

कुएं में भीतर तक जानेे पर तल में शेष शैय्या पर लेटे हुए विष्णु की मूर्ति देखने को मिलती है

रानी की वाव में नीचे अंतिम स्तर पर एक गहरा कुआं है। इसकी गहराई तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं। लेकिन आज अगर आप ऊपर से नीचे देखे तो आपको वहां पर दीवारों से बाहर निकले हुए सिर्फ कुछ कोष्ठ ही नज़र आएंगे जो कभी किसी प्रकार की वस्तु या संरचना को रखने हेतु इस्तेमाल होते थे। कुएं में भीतर तक जाने पर तल में शेष शैय्या पर लेटे हुए विष्णु की मूर्ति देखने को मिलती है।

-एजेंसी