सद्गुरु का दिवाली संदेशः दीपों का उत्सव, प्रकाश की भावना के जरिए अंधकार से ऊपर उठाने का एक मौका

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जब हम दीवाली की ओर अग्रसर हो रहे हैं, तो भारतीय योगी और ईशा फाउण्डेशन के संस्थापक, सद्गुरु जग्गी वासुदेव कहते हैं कि दीपों का उत्सव खुद को प्रकाश की भावना के जरिए अंधकार से ऊपर उठाने का एक मौका है।

एक वीडिया संदेश में सद्गुरु ने कहा, ‘इस दीवाली के लिए सभी को शुभकामनाएं। हम जिस परिस्थिति में हैं उसका ध्यान रखते हुए, अपने दीयों और पटाखों को जिम्मेदारी से जलाएं। मेरी कामना है कि प्रकाश की भावना आपको अंधकार से ऊपर उठाए। हमें समझना चाहिए कि अंधकार बस प्रकाश की अनुपस्थिति है। हमें यह भी एहसास होना चाहिए कि प्रकाश हमारी स्पष्टता का साधन है, क्योंकि हमारी आंखें ऐसी हैं कि बिना रोशनी के ये आंखें बेकार होंगी। तो रोशनी का उत्सव मनाने का मतलब है कि असल में हम स्पष्टता का उत्सव मना रहे हैं। क्योंकि जहां स्पष्टता है, वहीं बुद्धिमानी है। जहां बुद्धिमानी होती है, वहां जीवन शानदार होता है।’

‘भारत में आज बाल दिवस भी है। अगर आप अपने बचपन को देखें, तो आप पाएंगे कि आप एक शानदार बच्चे थे। उस शानदार इंसान को क्या हुआ? आपके जीवन में चाहे जो कुछ भी हो – सुंदर चीजें या भद्दी चीजें – कभी अपनी उत्कृष्टता को मत छोड़िए। दुनिया में जो होता है, वो पूरी तरह से आपका चुनाव नहीं होता, लेकिन आप जिस परिस्थिति में रहते हैं, उसके सामने अपनी उत्कृष्टता को मत छोड़िए, क्योंकि वो हमारे साथ सबसे भद्दी चीज होगी। ऐसा नहीं होना चाहिए, क्योंकि मानव चेतना से मानव समाज बनते हैं, न कि इसका उल्टा होता है। आपको खुद में स्पष्टता, बुद्धिमानी, और उत्कृष्टता लानी चाहिए, चाहे जो आपके आस-पास हो रहा हो। मेरी कामना है कि यह आपके जीवन में इस दीवाली के एक हिस्से के रूप में खिले,’ उन्होंने कहा।

सबको इस दीवाली पर हैंडलूम और जैविक कपड़ों को पहनने के लिए प्रेरित करते हुए सद्गुरु ने कहा, ‘भारत के निपुण बुनकर हमारी विविध संस्कृति के वाहक हैं। यह एकमात्र देश है जिसमें 120 अनोखी बुनाइयां हैं, जो अपने-अपने इलाकों की प्रकृति का प्रतिनिधित्व करती हैं। इस दीवाली पर, आइए हम अपनी बुनाइयों को गर्व के साथ पहनें और उन्हें जीवित रखने के लिए प्रतिबद्ध बनें।’

‘मैं आप सब से, आप भारत में हों या जहां कहीं भी हों, निवेदन करता हूं, अगर आप भारतीय हैं, तो आप जो भी कपड़े खरीदें, कृपया सुनिश्चित करें कि वे हस्तनिर्मित हों, जैविक हों, और भारत की धरती से हों,’ उन्होंने कहा।

पिछले साल, सद्गुरु ने ‘बुनाई को बचाएं’ अभियान की शुरुआत की थी ताकि पर्यावरण-अनुकूल भारतीय बुनाई की कला और विज्ञान के बारे में, और घटते हुए स्वदेशी बुनकरों की दुर्दशा के बारे में जागरूकता और दृष्यता बढ़े। यह अभियान, सिंथेटिक कपड़ों के विकल्प के रूप में, प्राकृतिक रेशों के कपड़ों को प्रोत्साहित करता है, जो स्वास्थ्यवर्धक हैं और प्रदूषण को नहीं बढ़ाते हैं।