शरद पूर्णिमा का है वैज्ञानिक महत्‍व भी, होती है पुनर्योवन शक्ति प्राप्त

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इस वर्ष शरद पूर्णिमा 20 अक्टूबर अर्थात् आज ही है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार शरद पूर्णिमा आश्विन मास के पूर्णिमा तिथि को होता है। शरद पूर्णिमा को माता लक्ष्मी और देवताओं के राजा इंद्र की पूजा करने का विधान है। वैज्ञानिक शोध के अनुसार इस दिन दूध से बने उत्पाद का चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। इस दिन बनने वाला वातावरण दमा के रोगियों के लिए विशेषकर लाभकारी माना गया है।

ऋतु परिवर्तन को इंगित करने वाली और स्वास्थ्य समृद्धि की प्रतीक है शरद पूर्णिमा। दक्षिण भारत में इसे ही कोजागरी पूर्णिमा कहते हैं। शरद पूर्णिमा पर्व रास पूर्णिमा या कौमुदी व्रत भी कहलाता है। इसे आश्विन मास की पूर्णिमा भी कहा जाता है।

शरद पूर्णिमा को श्रीकृष्ण ने रचाया था महारास

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पूरे साल में केवल इसी दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। मान्यता है कि इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। महर्षि अरविंद महारास को दर्शन से जोड़ते हैं और उसे अतिमानस की संज्ञा देते हैं।

अध्यात्म के दृष्टिकोण से यदि हम देखें, तो महारास अलौकिक प्रेम का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। ओशो मानते हैं कि प्रेम ही सृष्टि का जन्मदाता है और नए विचारों का भी। यह सच है कि स्वस्थ शरीर में ही नए और सुंदर विचारों का जन्म होता है।

शरद पूर्णिमा को खीर का महत्व

यह भी माना जाता है कि इस रात्रि को चंद्रमा की किरणों से अमृत झरता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चांदनी में रखने का विधान है। जो शरद पूर्णिमा के अवसर पर चंद्रमा के उज्जवल किरणों से आलोकित हुई खीर का रसास्वादन करते हैं, मान्यता है कि उन्हें उत्तम स्वास्थ्य के साथ मानसिक शांति का वरदान भी मिल जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और भी आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है और इस खीर का सेवन सेहत के लिए महत्वपूर्ण बताया है। इससे पुनर्योवन शक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।

शरद पूर्णिमा का संदेश

चंद्रमा हमारे मन का प्रतीक है। हमारा मन भी चंद्रमा के समान घटता-बढ़ता यानी सकारात्मक और नकारात्मक विचारों से परिपूर्ण होता है। जिस तरह अमावस्या के अंधकार से चंद्रमा निरंतर चलता हुआ पूर्णिमा के पूर्ण प्रकाश की यात्रा पूरा करता है। इसी तरह मानव मन भी नकारात्मक विचारों के अंधेरे से उत्तरोत्तर आगे बढ़ता हुआ सकारात्मकता के प्रकाश को पाता है। यही मानव जीवन का लक्ष्य है और यही शरद पूर्णिमा का संदेश भी।

चंद्रमा से बढ़ जाता है औषधियों का प्रभाव

एक अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा पर औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। यानी औषधियों का प्रभाव बढ़ जाता है रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है।

-एजेंसी