यरुशलम की गलियों के पीछे छिपा एक पुराना हम्माम फिर से हो रहा है ज़िंदा

Cover Story

यरुशलम की गलियों के पीछे छिपा एक पुराना हम्माम फिर से ज़िंदा हो रहा है. अल-ऐन हम्माम को 1336 ईस्वी के आसपास बनाया गया था. 20वीं सदी में यह टूट-फूट गया था. अब कई साल की मरम्मत के बाद इसे फिर से तैयार किया गया है. यह सामूहिक स्नानघर 1970 के दशक की शुरुआत से ही बंद पड़ा था और बुरी हालत में पहुंच गया था.

14वीं सदी में बनाए अल-ऐन हम्माम, इसके ऊपर बने खान टंकीज़ प्लाज़ा और पास के ही अल-शिफ़ा हम्माम में बड़े पैमाने पर मरम्मत की गई है.

अल-ऐन हम्माम को इसी साल दोबारा पूरी तरह खोल दिया जाएगा. मेहमान यहां स्टीम बाथ ले सकेंगे और स्पा की दूसरी सुविधाओं का भी लुत्फ़ उठा सकेंगे.

अपने तरह का आखिरी हम्माम

1336 ईस्वी के आसपास बनाया गया यह हम्माम उन मुस्लिमों के काम आता था जो पास की अल-अक्सा मस्जिद और क़ुब्बतुल सख़रह (डोम ऑफ़ द रॉक) में प्रार्थना करने से पहले वज़ू करना चाहते थे.व्यापारी और स्थानीय लोग भी यहां नहाने आते थे. करीब एक सदी पहले यहां के घरों में पाइप से पानी की आपूर्ति सामान्य बात हो गई, तब नहाने के लिए हम्माम में बहुत कम लोग आने लगे. 20वीं सदी के मध्य में ऐसे हम्माम चलन से बाहर हो गए.

यरुशलम के कुछ होटलों ने अपने स्पा कॉम्प्लेक्स में आधुनिक स्नानघर बनाए हैं. उनके अलावा दोबारा बहाल किया गया अल-ऐन हम्माम ही यरुशलम का अकेला हम्माम बचा है. पास का अल-शिफ़ा हम्माम अब आर्ट-गैलरी और इवेंट स्पेस में तब्दील हो चुका है.

अल-क़ुद्स यूनिवर्सिटी के सेंटर फ़ॉर यरुशलम स्टडीज के डायरेक्टर अमन बशीर कहते हैं, “इसे फिर से हम्माम के रूप में ही खोलना बहुत अहम है. सांस्कृतिक धरोहरों को बचाने का यही एक तरीका है. “यहां की मरम्मत कराने और इसे फिर से चालू होने लायक बनाने में सेंटर का बड़ा हाथ रहा है.

मिलने-जुलने की जगह

रिसेप्शन रूम में लकड़ी की जालियां और लाल, सफेद और काले रंगों की योजना हम्माम की मूल शैली की याद दिलाते हैं.
मरम्मत के दौरान यहां के वास्तुशिल्प लेआउट या डिजाइन को नहीं बदला गया लेकिन रोशनी के इंतज़ाम के लिए नई लाइटिंग की गई और नये शावर लगाए गए.

यह हम्माम पहले बारिश और पहाड़ी झरने के पानी से चलता था. बारिश के पानी को जमा करने के लिए बड़े कुंड बनाए गए थे.
पहाड़ी झरने के पानी को हम्माम तक लाने के लिए शहर के बाहर से यहां तक सोते तैयार किए गए थे. मगर अब यहां का स्नानघर और फव्वारा आधुनिक पाइपलाइन पर निर्भर है.

मेहमान यहां आराम फरमा सकते हैं और स्पा का लुत्फ़ उठाने से पहले लोगों से मिल-जुल सकते हैं. यह जगह विशेष आयोजनों के लिए भी उपलब्ध है.

बशीर कहते हैं, “अतीत में इस हम्माम ने एक महत्वपूर्ण सामाजिक भूमिका निभाई है. अब हम उस भूमिका को फिर से ज़िंदा करने में मदद कर रहे हैं. पुराने शहर में इसके लिए जगह नहीं है.”

जाना-पहचाना डिज़ाइन

अल-ऐन हम्माम में कई आकार के गुंबद हैं. वहां सुराख बने हुए हैं, जहां से नीली और पीले कांच से छनकर रोशनी अंदर आती है.
ये गुंबद ठीक वैसे ही हैं जैसे दमिश्क के स्नानघरों में हैं. यरुशलम की हिब्रू यूनिवर्सिटी के पुरातत्व विज्ञानी तौफ़ीक़ डाडली को लगता है कि सीरिया के राजमिस्त्रियों और कलाकारों ने यरुशलम आकर इनका निर्माण किया होगा.

मरम्मत के दौरान खुदाई से एक तीसरे स्नानघर का भी पता चला जो एल-ऐन हम्माम से एक भट्ठी साझा करता था.
यह तीसरा हम्माम यहूदियों के ओहेल यित्ज़ाक प्रार्थनाघर के नीचे है.

इसे अभी आम लोगों के लिए नहीं खोला गया है, लेकिन पुरातत्वविदों का कहना है कि इससे मूल ढांचे के विस्तार और उसके भव्य स्वरूप का पता चलता है.

सदियों पुरानी वास्तुकला

पत्थर और संगमरमर से बना हम्माम का मूल ढांचा बरकरार है. नहाने के लिए आने वाले मेहमान यहां सदियों पुरानी पत्थर की बेंच पर बैठकर भाप ले सकते हैं और विशाल मेहराबों और रंगीन संगमरमर से सजाए गए फर्श को निहार सकते हैं.

यरुशलम की अल-क़ुद्स यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और यरुशलम इस्लामिक वक़्फ़ में पुरातत्व विभाग के निदेशक यूसुफ़ नात्शेह कहते हैं, “इस बाथहाउस का मालिकाना कई बार बदला, लेकिन इसका मूल स्थापत्य बरकरार रहा.”

इस्लामिक वक़्फ़ खान टंकीज़ साइट और यरुशलम की दीवार वाले पुराने शहर के अन्य प्रमुख मुस्लिम स्थलों की देखरेख करता है.

लंबी और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया

स्नानघर की मरम्मत करके दोबारा खोलना आसान नहीं था. वक़्फ़ ने इसकी योजना 1980 के दशक में ही बनाई थी, लेकिन पर्याप्त पैसे नहीं जुट पा रहे थे.

नात्शेह के मुताबिक यूरोपीय संघ ने यरुशलम की सांस्कृतिक विरासत को बचाने के बड़े कार्यक्रम के तहत इसके लिए भी फंडिंग की तो काम शुरू हुआ.

हम्माम को पुराने स्वरूप में बहाल करने में पांच साल लगे. इस कार्यक्रम की निगरानी इसरायल एंटिक्विटीज अथॉरिटी ने की.

आरामगाह

अल-ऐन हम्माम के बगल का परिसर यरुशलम के कॉटन मर्चेंट्स मार्केट के ठीक सामने पड़ता है.
यह बाज़ार किसी जमाने में कपड़ा व्यापारियों का आर्थिक केंद्र हुआ करता था.

यात्री और जायरीन शहर में आने के बाद पानी और अपने ऊंटों को चारा खिलाने के लिए यहां रुकते थे. आज भी मेहमान यहां आराम कर सकते हैं.

यहां के कमरे अल-क़ुद्स यूनिवर्सिटी के अकादमिक प्रोग्राम और अरबी भाषा की पढ़ाई के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं.

छत वाली गली का बाज़ार

हम्माम की मरम्मत की परियोजना में पास के कॉटन मर्चेंट्स मार्केट को बड़ा करना और अल-अक्सा मस्जिद कॉम्प्लेक्स से खरीदारी के क्षेत्र को अलग करने वाला एक विशाल दरवाज़ा लगाना शामिल था.

छत वाली इस गली में आज भी बाज़ार लगता है, जिसमें क़ुब्बतुल सख़रह (डोम ऑफ़ द रॉक) और अल-अक्सा मस्जिद जाने वाले जायरीनों के लिए मिठाइयां, स्मृति चिह्न, प्रार्थना की चटाई और स्कार्फ जैसी चीजें मिलती हैं.

हम्माम परिसर को चलाने वाली अल-क़ुद्स यूनिवर्सिटी को उम्मीद है कि बाज़ार के व्यापारी जल्द ही तौलिए, स्पंज, साबुन और स्पा से जुड़ी चीजें भी रखने लगेंगे. इसीलिए यूनिवर्सिटी ने यहां ये सारी चीजें बेचने की अपनी कोई योजना नहीं बनाई है.
बशीर कहते हैं, “हम्माम को फिर से खोलने का मतलब बाजार का भी उद्धार करना है.”

-एजेंसियां