धरती की रहस्यमय धड़कन, जो हर 26 सैकेंड बाद देती है सुनाई

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क्या हमारी धरती का भी दिल है, जो हर 26 सैकेंड बाद जोर से धड़कता है।

पिछले 60 साल से धरती की इस रहस्यमय धड़कन पर शोध अध्ययन चल रहा है। 1960 के दशक में धरती के कई महाद्वीपों के भूकंप वैज्ञानिकों ने एक रहस्यमय धड़कन जैसी आवाज का पता लगाया है, जो हर 26 सैकेंड बाद सुनाई देती है। लेकिन बीते 60 साल में कोई भई यह पता लगाने में सक्षम नहीं हो सका है कि वास्तव में ध्वनि क्या है।

गर्मियों में बढ़ जाती है तीव्रता

कोलंबिया विश्वविद्यालय के लामोंट-डोहर्टी जियोलॉजिकल आर्ब्जबेटरी के शोधकर्ता जॉन ओलिवर ने 1962 में पहली बार धरती के दिल की धड़कन को सुना था। उन्होंने पता लगाया था कि यह तरंगें दक्षिणी या भूमध्यवर्ती अटलांटिका महासागर में कहीं से आती हैं और उत्तरी गोलार्ध में गर्मियों में इसकी तीव्रता अधिक होती है।

दो दशक तक खोज रही अज्ञात

इसके बाद 1980 में अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के एक भूवैज्ञानिक गैरी होलकोम्ब ने भी रहस्यमय धड़कन को सुना। उन्होंने पाया कि तूफानों के वक्त यह धड़कन काफी तेज सुनाई दी। कुछ वजहों से इन दोनों शोधकर्ताओँ की खोज करीब दो दशक तक अज्ञात रही। लेकिन कोलोराडो विश्वविद्यालय के एक छात्र बोल्टर ने एक बार फिर धरती के दिल की धड़कन को सुना और इस पर शोध करने का फैसला किया। महाद्वीपों के तटों पर लहरों की भिड़ं हो सकती है वजह

दिल की धड़कन कुछ अजीब है

कोलोराडो विश्वविद्यालय के भूकंप विज्ञानी माइक रिट्जबोलर ने हाल ही में डिस्कवर पत्रिका को एक साक्षात्कार में बताया कि जैसे ही उन्होंने तत्कालीन कोलोराडो ग्रेजुएट ग्रेग बेन्सेन के आंकड़ों को देखा तो उन्हें और उनके साथी शोधकर्ता को पता चला कि धड़कन जैसी गतिविधि कुछ अजीब है। वे काम पर लग गए और हर संभव तरीके से इन तरंगों तथा डाटा का विश्लेषण और उपकरणों से जांच करने पर पाया कि तरंगों का स्रोत अफ्रीका के पश्चिमी तट से दूरी गिनी की खाड़ी में पाया गया।

वास्वत में क्या है यह तरंग

भूविज्ञानी माइक रिट्जवोलर और उनकी टीम ने भी ओलिवर और होलकोम्ब के शोध पर गहराई से काम किया और 206 में इस रहस्यमयी तरंग पर एक अध्ययन प्रकाशित किया। लेकिन फिर भी यह समझने में नाकाम रहे कि वास्तव में यह तरंग क्या है। एक सिद्धांत का दावा है कि यह लहरों के कारण होता है, जबकि दूसरे सिद्धांत का दावा है कि यह क्षेत्र में ज्वालामुखी की गतिविधि के कारण है। लेकिन अभी तक दोनों सिद्धांत सही सिद्ध नहीं हुए हैं।