द्वापर युग में मथुरा के राजा कंस ने युद्ध कौशल में प्रवीण कुबलियापीड़ हाथी को कृष्ण और बलराम के वध के लिए चुना था। इस परोक्ष युद्ध के लिए पहले कृष्ण और बलराम को मथुरा बुलवाया गया और फिर युद्ध हुआ। इसमें भगवान कृष्ण और बलराम ने इस मदमस्त हाथी को आसमान में उछाला और जमीन पर पटक-पटक कर मार डाला।
गर्ग संहिता में इस बात का उल्लेख है कि कंस ने कुबलियापीड़ हाथी जरासंध से बतौर उपहार हासिल किया था। इस हाथी की ये खासियत थी कि ये अपने असीम बल से अपने शत्रु को कुचल कर मार देता था। कंस ने कृष्ण और बलराम के वध के लिए इस हाथी को चुना।
अक्रूर जी के माध्यम से दोनों भाईयों को मथुरा बुलवाया और मल्लपुरा में इस मदमस्त हाथी को मदिरापान कराकर कृष्ण-बलराम के सामने छोड़ दिया। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण और बलराम ने अपना रूप दर्शाते हुए इस हाथी को सूंड़ और पूंछ से पकड़कर आसमान में उछाल दिया। जमीन पर पटकने के बाद उसके दांत उखाड़ लिए जिससे उसका वहीं वध हो गया।
कुबलियापीड़ा हाथी वध महोत्सव समिति द्वारा साढ़े पांच हजार साल पुरानी इस लीला को आज भी उत्साह के साथ जीवंत किया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण और बलराम की शोभायात्रा निकाली जाती है और प्रतीकात्मक हाथी का वध किया जाता है।
कुबलियापीड हाथी वध मेला महोत्सव समिति रजिस्टर्ड उत्तर प्रदेश के सह संयोजक अर्जुन पंडित उर्फ़ निकुन्ज द्वारा मेले में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं से कहा गया है कि सामाजिक दूरी का ख्याल रखते हुए मेले में निर्धारित स्थान पर सीमित संख्या में पहुचें और मास्क लगाकर सैनिटाइजर का प्रयोग करें आप लोग स्वस्थ्य रहेंगे तो यह मेला निश्चित रूप से और भव्य होगा।