देहरादून। पृथ्वी के तापमान में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी और मौसम में आ रहे बदलाव के चलते हिमालय के ग्लेशियर दुनिया के किसी अन्य हिस्सों की तुलना में तेजी से पीछे हट रहे हैं। एक स्टडी के मुताबिक 16वीं शताब्दी के बाद 360 सालों में गंगोत्री ग्लेशियर हर साल 63 मीटर पीछे खिसकता था। इसके बाद अगले 80 सालों में यह करीब 1.9 किलोमीटर पीछे खिसक गया है।
गंगोत्री ग्लेशियर से भागीरथी नदी निकलती है, जो कि आगे चलकर गंगा कहलाती है। उत्तराखंड में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने पेड़ों और झाड़ियों को देखा जो कि इसके करीब बढ़ते हैं। एल्सेवियर की ओर से ‘क्वाटरनेरी इंटरनेशनल’ में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक, एक ग्लेशियर जब पीछे हटता है तब यह ताजी बर्फ की तुलना में तेजी से पिघलता है।
इससे इस बात का पता लगाया जा सकता है कि प्रत्येक पेड़ कितना पुराना था और टर्मिनस (एक ग्लेशियर के अंत) से कितनी दूर था, तो वे ग्लेशियर की कम से कम दूरी की गणना कर सकते हैं।
स्टडी में कहा गया है कि अब तक केवल 11 हिमालय के ग्लेशियरों का ही बड़े पैमाने पर संतुलन के लिए अध्ययन किया गया है और कुछ 100 उतार-चढ़ावों की निगरानी की जा रही है। प्रमुख लेखक जयराज सिंह ने बताया कि ग्लेशियर सीधे जलवायु परिस्थितियों से जुड़े होते हैं इसलिए वे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। यह उनके आसपास उगने वाली वनस्पति से पता चलता है।
1571 के पेड़ से पुरानी स्थिति का चला पता
स्टडी में कहा गया है कि पश्चिमी हिमालय में कई ऊंचाई वाली प्रजातियां हैं। रेकॉर्ड किया गया कि सबसे पुराना पेड़ भोजबासा में हिमालयन ग्लेशियर में था, जिससे कम से कम 1571 तक की स्थिति का पता लगाया जा सकता है।
कितना पीछे खिसका ग्लेशियर, ऐसे चला पता
इस स्टडी में में कहा गया है कि 1571 से पहले भोजबासा ग्लेशियर या ग्लेशियर से मुक्त था। उस समय ग्लेशियर से यह पेड़ 1.4 किमी दूर था। अब यह 3.26 किमी दूर है। इसका अर्थ है कि ग्लेशियर 1.86 किमी चले गए हैं। स्टडी में कहा गया है कि 1571-1934 के दौरान ग्लेशियर के पिघलने की दर केवल 63 मीटर थी। तब से यह एक और 1.8 किमी पीछे हट गया है। ग्लेशियर 1957 से 1.57 किमी के बाद से तेजी से पीछे हटा, जो कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते था।
-एजेंसियां