गणगौर राजस्थान में आस्था प्रेम और पारिवारिक सौहार्द का सबसे बड़ा उत्सव है। गण (शिव) तथा गौर(पार्वती) के इस पर्व में कुँवारी लड़कियां मनपसंद वर पाने की कामना करती हैं। विवाहित महिलायें चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर पूजन तथा व्रत कर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं।
होलिका दहन के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक, 18 दिनों तक चलने वाला त्योहार है – गणगौर। यह माना जाता है कि माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं , ईसर (भगवान शिव )उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं ,माता की चैत्र शुक्ल तृतीया को विदाई होती है।
जयपुर में नहीं निकलेगी गणगौर की सवारी
जयपुर की स्थापना के बाद दूसरी बार परम्परागत गणगौर माता की सवारी कोरोना के चलते इस बार नहीं निकलेगी। राजस्थान के वैभव और रंगारंग संस्कृति के साथ ही लोकगीत-संगीत का पर्व 2 दिवसीय गणगौर महोत्सव इस बार भी नहीं मनाया जाएगा। कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते सिटी पैलेस से परम्परागत गणगौर माता की सवारी नहीं निकलेगी। जयपुर के पूर्व राजपरिवार की ओर से सिटी पैलेस परिसर में ही गणगौर माता की पूजा-अर्चना कर समृद्धि और शांति की कामना की जाएगी। दोनों दिन माता की सवारी की औपचारिकताएं सिटी पैलेस में ही होंगी। सिटी पैलेस के कर्मचारियों ने सैनेटाइजर के इस्तेमाल के साथ ही मास्क लगाकर माता को पालकी में विराजमान किया जाएगा।
गणगौर पूजन में कन्यायें और महिलायें अपने लिए अखंड सौभाग्य,अपने पीहर और ससुराल की समृद्धि तथा गणगौर से हर वर्ष फिर से आने का आग्रह करती हैं। मुख्य रूप से इस पर्व को राजस्थान के लोग मनाते हैं। इसी के साथ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और गुजरात में भी कुछ इलाकों में गणगौर व्रत रखा जाता है। गणगौर त्योहार चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है।इस साल गणगौर पूजा 15 अप्रैल 2021 को है।गणगौर पूजा होली के दिन से शुरू होकर 18 दिनों तक चलती है।
कुछ लोग इसके आखिरी दिन पूजा अर्चना करते हैं। गणगौर व्रत को कई जगहों पर गौरी तीज या सौभाग्य तीज के नाम से भी जाना जाता है। चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को ये व्रत रखा जाता है। सुहागिनें इस दिन दोपहर तक व्रत रखती हैं। पूजा के समय शिव-गौरी को सुंदर वस्त्र अर्पित करें। माता पार्वती को सम्पूर्ण सुहाग की वस्तुएं चढ़ाएं। जो सिन्दूर इस दिन माता पार्वती को चढ़ाया जाता है, उसे महिलाएं अपनी मांग में भरती हैं।इस दिन गणगौर माता को सजा-धजा कर पालने में बैठाकर शोभायात्रा निकालते हुए शाम को शुभ मुहूर्त में गणगौर को पानी पिलाकर किसी पवित्र सरोवर या कुंड में इनका विसर्जन किया जाता है। इस दिन अविवाहित लड़कियां और विवाहत स्त्रियां दो बार पूजन करती हैं। दूसरी बार की पूजा में शादीशुदा महिलाएं चोलिया रखती हैं, जिसमें पपड़ी या गुने रखे जाते हैं। गणगौर विसर्जित करने के बाद घर आकर पांच बधावे के गीत गाये जाते हैं।
गणगौर उत्सव आस्था व मनोकामना पूर्ण करने वाला व्रत है आज आगरा में गोकुलपुरा में बहुत बड़ा मेला लगता है| मेले को जनमानस को अकर्षित तो करता है परंतु काफ़ी लोग अभी भी इस प्राचीन मेले की जानकारी नहीं है। दूसरा संगठन बलकेश्वर में एक साल लगा पाए लेकिन अब सारे गणगौर उत्सव क़ोरोना की भेंट चढ़ गये| भगवान शिव व माता पार्वती से अरदास है कृपा इस महामारी से मुक्ति दिलाये| सभी विवाहित नारियों के सुहाग की रक्षा करे साथ सभी अविवाहित बालिकाओं को कमाऊँ व स्वस्थ पति दिलाये| सभी को बहुत बधाई व शुभकामनाएँ|
– राजीव गुप्ता जनस्नेही कलम से
लोक स्वर आगरा
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