काठमांडू। नेपाल के चार दिवसीय दौरे पर पहुंचे भारतीय सेना के प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे की पत्नी ने काठमांडू में नेपाली गोरखा सैनिकों के परिवारों से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने गोरखा जवानों के दिए हुए गिफ्ट्स को उनकी पत्नियों को सौंपा। ये गोरखा जवान जनरल नरवणे के दिल्ली स्थित ऑफिस साउथ ब्लॉक में तैनात हैं। आर्मी चीफ की पत्नी वीणा नरवणे आर्मी वाइव्स वेलफेयर एसोसिएशन की अध्यक्ष भी हैं।
खुश दिखे गोरखा जवानों के परिवार
आर्मी चीफ की पत्नी से मिलने के बाद गोरखा जवानों के परिवार काफी खुश दिखे। कोरोना वायरस के कारण नेपाल ने अपनी सीमाएं आम जनता के लिए बंद कर रखी हैं। जिससे त्योहार के मौसम में भी कई गोरखा जवान अपने परिवार से नहीं मिल पाए हैं। ऐसे में आर्मी चीफ की पत्नी से मुलाकात कर गोरखा जवानों की पत्नियों ने खुशी जाहिर की।
तीन दिन के नेपाल दौरे पर गए थे आर्मी चीफ नरवणे
चार नवंबर को भारतीय सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे अपनी पत्नी के साथ नेपाल दौरे पर पहुंचे थे। इस दौरान नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने जनरल नरवणे को बृहस्पतिवार को एक विशेष समारोह में नेपाली सेना के जनरल की मानद उपाधि प्रदान की थी। यह दशकों पुरानी परंपरा है जो दोनों सेनाओं के बीच के मजबूत संबंधों को परिलक्षित करती है।
पीएम ओली से भी मिले जनरल नरवण
जनरल नरवणने के शुक्रवार को नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से भी मुलाकात की थी। नेपाल सेना ने बताया कि जनरल नरवणे और ओली के बीच बैठक बलुवातार स्थित उनके आधिकारिक निवास पर हुई। ओली नेपाल के रक्षा मंत्री भी हैं। प्रधानमंत्री ओली के विदेश मामलों के सलाहकार रंजन भट्टाराई के अनुसार, ओली ने कहा कि नेपाल और भारत के बीच अच्छी मित्रता है।
गोरखा जवानों के भारतीय सेना में शामिल होने पर नेपाल का विरोध
भारत से सीमा विवाद के बीच नेपाल की सरकार ने भारतीय सेना में गोरखा जवानों के शामिल होने पर विरोध जताया था। नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ज्ञावली ने कहा था कि इस समझौते के कुछ प्रावधान संदिग्ध हैं इसलिए 1947 का यह समझौता निरर्थक हो गया है। नेपाल में पहले भी गोरखाओं के भारतीय सेना में शामिल होने पर रोक की मांग उठ चुकी है।
गोरखाओं के बारे में क्या कहते थें सैम मानेकशा
गोरखाओं की बहादुरी के किस्से यूं तो दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं लेकिन भारत के पूर्व सेनाध्यक्ष सैम मानेकशा जो खुद गोरखा रेजीमेंट से थे वे इनके बारे में अक्सर कहा करते थे कि अगर कोई यह बोले कि वह मौत से नहीं डरता तो या तो वह झूठ बोल रहा है या वह गोरखा है। 1815 से लेकर आज तक नेपाली गोरखाओं का भारतीय सेना के साथ अभूतपूर्व संबंध है।
खुखरी है गोरखाओं की पहचान
गोरखा सैनिक जंग के मैदान में खुखरी की सहायता से ही दुश्मनों पर भारी पड़ते हैं। यह एक तेज धार वाली कटार होती है जो हर गोरखा सैनिक के पास हमेशा होती है। यह हथियार उन्हें ट्रेनिंग के बाद दिया जाता है। जिसका उपयोग वे युद्धकाल में दुश्मनों के खिलाफ करते हैं।
मेंटली और फिजिकली बहुत मजबूत होते हैं गोरखा
गोरखा सैनिक शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत मजबूत होगे हैं। भारतीय सेना में 42 हफ्ते की कड़ी ट्रेनिंग के बाद इन्हें पोस्टिंग पर भेजा जाता है। ये पहाड़ों पर लड़ाई में बेहद माहिर होते हैं। ये आमने सामने की लड़ाई और बिना हथियारों की लड़ाई में दुश्मनों पर भारी पड़ते हैं। इनकी कदकाठी छोटी और गठी हुई होती है।
-एजेंसियां